Geeta। जीवनशास्त्र है गीता : माधव तुर्मेल्ला

जीवनशास्त्र है गीता : माधव तुर्मेल्ला

गीता मात्र एक धर्मशास्त्र नहीं है। यह संपूर्ण जीवन का शास्त्र है। इसमें जीवन जीने की कला बताई गई है। यह मानवीय मूल्यों की शिक्षा देती है।

यह बात लंदन के सुप्रसिद्ध मैनेजमेंट गुरू माधव तुर्मेल्ला ने कही। वे बुधवार को गीता में प्रबंधन विषय पर लाइव व्याख्यान दे रहे थे। कार्यक्रम का आयोजन बीएनएमयू संवाद व्याख्यानमाला के अंतर्गत किया गया।

उन्होंने कहा कि गीता के संदेशों में जीवन प्रबंधन की सीख है।प्रबंधन का सबसे बड़ा सूत्र यही है कि आत्म-प्रबंधन सबसे बड़ा प्रबंधन है। जो अपने आपका प्रबंधन कर लेता है, उसके लिए दुनिया का प्रबंधन मुश्किल नहीं है। इसलिए हमें अपने आप का प्रबंधन करना चाहिए। अपने आप को नियंत्रण करना चाहिए हमें अपना प्रबंधन करना चाहिए जो आपना प्रबंधन करता है, वही दूसरे का प्रबंधन कर पाता है।

गीता का संदेह है कि अपने आपको जानो और अपने सर्वधर्म का पालन करो। हमें जो भी जिम्मेदारी मिली है, हमें उसे पूरी सत्यनिष्ठा एवं ईमानदारी के साथ पूरा करना चाहिए। यदि हम सब अपने-अपने सर्वधर्म का पालन करें, तो स्वतः सब कुछ प्रबंधित हो जाएगा।

उन्होंने बताया कि गीता निष्काम कर्मयोग की शिक्षा देती है। इसका आशय है कि हमें निरंतर कर्म करते रहना चाहिए, लेकिन फल की चिंता नहीं करनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि गीता का संदेश है कि हमें सुख-दुख, लाभ-हानि एवं जय-पराजज दोनों में समभाव रखना चाहिए। हम हमेशा सुखी नहीं रह सकते हैं और ना ही हमेशा दुखी रह सकते हैं। जीवन में लाभ और हानि आते रहते हैं, इसमें विचलित नहीं होना चाहिए।

उन्होंने बताया कि गीता हमें पीड़ित एवं उद्धारक दोनों मनोभावों से मुक्त होने की सीख देती है। हम भगवान को क्यों पुकारते हैं ? हम सोचते हैं कि हम पीड़ित हैं, भगवान हमें पीड़ा से मुक्ति दिलाएगा। गीता का कहना है कि हम न तो बेचारा बनें और ना ही उद्धारक बनें।

उन्होंने बताया कि दुर्योधन जानता था कि धर्म क्या है लेकिन उसमें उसकी प्रवृत्ति नहीं थी। वह जानता था कि अधर्म क्या है, लेकिन उससे उसकी निवृत्ति नहीं थी। यह स्थिति मानव जीवन के लिए दुखद है। हमें ज्ञान को अपने जीवन एवं जगत की बेहतरी में लगाना चाहिए।