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Covid-19। कोरोना का शिक्षा एवं समाज पर प्रभाव

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*कोरोना का शिक्षा एवं समाज पर प्रभाव विषयक व्याख्यान*

कोरोना एक वैश्विक महामारी है। इसका भारत सहित पूरी दुनिया पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। अभी इसका कोई सटिक इलाज नहीं आया है। अतः बचाव ही एकमात्र इलाज है। हमें इससे बचने के लिए सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन (एसओपी) का पालन करना चाहिए।

यह बात जंतु विज्ञान विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर और के पूर्व डीएसडब्लू एवं डाॅ. नरेन्द्र श्रीवास्तव ने कही। वे शनिवार को यू-ट्यूब चैनल बीएनएमयू संवाद पर भारत में कोरोना का शिक्षा एवं समाज पर प्रभाव विषयक लाइव व्याख्यान दे रहे थे।

उन्होंने कहा कि कोरोना का वायरस अब पूरे समाज में फैल चुका है। हमें अब इससे साथ जीना है। इस समय के अनुसार हम अपने आपको ढालें।

उन्होंने कहा कि हम सबों की यह जिम्मेदारी है कि हम स्वयं कोरोना से बचें और दूसरों को भी बचाएँ। इसके लिए समाज को जागरूक होना होगा। हम सिर्फ सरकार के भरोसे नहीं रहें और महामारी को लेकर राजनीति नहीं करें।

उन्होंने कहा कि हम सोशल डिस्टेंशिंग का पालन करें और अपना रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का प्रयास करें। अपनी दिनचर्या एवं खान-पान में भी सुधार लाएं। अश्वगंधा, गिलोय, तुलसी आदि का सेवन करें। खाने में विटामिन सी, जिंक आदि की मात्रा बढ़ाएँ। नियमित व्यायाम करें।

उन्होंने कहा कि दुख की बात है कि कोरोना संक्रमण के दौर में भी राजनीति हो रही है। उदाहरण के लिए राजनीति दवाब में दूसरे राज्यों में कार्यरत मजदूरों को वापस बिहार लाया गया। लेकिन वे कुछ दिनों बाद ही फिर वापस जा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि कोरोना के कारण काफी लोगों की नौकरी गई है। नौकरी का मतलब केवल सरकारी नौकरी नहीं होता है। सभी को सरकारी नौकरी मिलना संभव नहीं है।सरकारी क्षेत्र में बहुत कम प्रतिशत लोग कार्य करते हैं।

उन्होंने कहा कि अधिकांश लोग पब्लिक सेक्टर एवं प्राइवेट सेक्टर में काम करते हैं। हेल्थ एंड फर्मासिटिकल, नाॅलेज प्रोसेसिंग आउटसोर्सिंग, मीडिया, फाइनेंशियल सर्विस, रिटेल सेक्टर आदि प्रमुख हैं। ये काम घर से हो सकते हैं।

उन्होंने कहा कि कोरोना के कारण सभी तरह के विश्वविद्यालयों पर प्रभाव पड़ा है। लेकिन सबसे अधिक दिक्कतें राज्य विश्वविद्यालयों के लिए है। सभी राज्यों के राज्य विश्वविद्यालय आर्थिक रूप से विपन्न हैं। यहाँ सिर्फ वेतन के लिए पैसे मिलते हैं, लेकिन विकास के लिए पैसा नहीं के बराबर मिलता है।

उन्होंने कहा कि सभी विश्वविद्यालयों में एक कान्फ्रेंस हाॅल बने। जो विद्यार्थी आर्थिक रूप से अक्षम हैं, उन्हें सरकार द्वारा जीरो इंटरेस्ट पर स्मार्ट फोन देना चाहिए।

उन्होंने कहा कि कोरोना का शिक्षा एवं समाज पर काफी प्रभाव पड़ा है। लेकिन हम दृढ इच्छाशक्ति से इस प्रभाव को कम कर सकते हैं। हमें एग्रो बेस्ट इंड्रस्टिज एवं टूरिज्म को बढ़ावा देना चाहिए। इसके लिए सकारात्मक सोच, भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था और अपराधमुक्त समाज बनाना होगा।

जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर ने सभी शिक्षकों, विद्यार्थियों एवं आम लोगों से अपील की है कि वे इस व्याख्यान को सुनकर लाभ उठाएँ।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

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