Story। एक नज़र (एक प्रेम कथा)। डॉ. दीपा ‘दीप’ सहायक प्राध्यापिका हिंदी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली

स्नेहा एक गांव की लड़की थी। स्नेहा बचपन से ही बेहद खूबसूरत थी। गोल चेहरा, गोरा रंग, बड़ी-बड़ी भूरी आँखें, काले घुँघराले बाल जो उसकी सुंदरता को और बढ़ाते। वो बिल्कुल अपनी माँ पर गयी थी। उसकी माँ बहुत ही सुंदर थी। वो बहुत गरीब परिवार से थी। उसकी नानी दूसरों के घर बर्तन साफ करने का काम करती थी। उसके नाना दारू पीकर उसकी नानी को पीटा करते थे। उसके पाँच मामा थे, उसकी मम्मी उनमें सबसे बड़ी थी। वो सुडौल शरीर की थी। गोरा रंग, काले घुँघराले बाल, मोटी-मोटी नशीली आँखें। जिधर निकलती लोग,लोग बस देखते रह जाते। उनका नाम कृष्णा था। उनके स्कूल में केवल लड़कियां ही पढ़ती थी। जब वे नवीं कक्षा में  पढ़ती थी तो स्कूल से घर तक उनका आना मुश्किल हो जाता, लड़के पीछा करते-करते घर तक चले आते और वो अपने मुँह को किताब से छिपाकर शर्म से जल्दी – जल्दी घर पहुंचने की कोशिश करती। पढ़ाई करना दूभर हो गया था। गरीबी हर तरह से असहाय बना देती है। घर के आंगन के बाहर मेन गेट पर एक टूटा सा दरवाजा था, चाहर दीवारी बहुत छोटी थी बाहर से आते जाते लोग घर के अंदर झांकते। इतना ही नहीं घर के बाहर से जब कोई बारात गुजरती बाराती पानी पीने के बहाने घर के अंदर ताड़ते। बुरी नज़र से देखते। वो बेहद शर्मीली और सीधी-साधी थी। अपनी गरीबी को ध्यान में रखकर कभी किसी तरह की कोई मांग नहीं करती। अपनी माँ का काम में हाथ बटाती। एक दिन स्कूल से आते हुए किसी ने उसकी आँखों में रेत फेंक दिया। वो भागते हुए घर पहुंची। किंतु माँ को कुछ नहीं बताया कहीं वो पढ़ाई न छुड़ा दें। उसकी माँ बहुत अच्छी ड्रॉइंग करती थी। अपनी ही शक्ल को शीशे में देखकर हूबहू बना लेती थी। जिसकी प्रशंसा स्कूल में भी होती थी। एक दिन जब वो स्कूल से लौट रही थी तो एक लड़के ने उसकी तरफ इशारा करते हुए कहा कृष्णा कल इतने बजे मिलना। इस बात को स्कूल की किसी लड़की ने क्लास टीचर से कह दिया। क्लास टीचर ने प्रेयर हॉल में सभी स्टूडेंट्स के सामने इस बात के लिए उसे अपमानित किया। उस दिन वो रोती हुई घर आई और अपनी मम्मी से कहा कि वो अब नहीं पढ़ेंगी। एक लड़के ने उनका नाम लेकर मिलने का इशारा किया और किसी लड़की ने ये बात टीचर को बता दी, जबकि उसकी कोई गलती नहीं थी, वो तो उसे जानती तक नहीं थी। उसने उसका नाम किसी से पूछकर ये गंदी हरकत की और टीचर ने सब बच्चों के सामने उससे बिना कुछ पूछे उसे डाँटा और उन सबके सामने उसका मजाक बना दिया। अपनी सफ़ाई देने का अवसर तक नहीं दिया। उस दिन मां के समझाने पर भी उसने स्कूल जाने से मना कर दिया। और नवीं कक्षा की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। उस समय ग्यारहवीं कक्षा के बाद सीधा कॉलेज शुरू होता था। अब वो घर में अपनी मम्मी का हाथ बटाती। उनकी मां बाहर दूसरों के घर झाड़ू पोंछा, साफ-सफाई का काम करती और वो अपने घर का सारा काम। अपने पाँचों भाइयों को संभालती पर वो खुश थी कि अब पूरी तरह से अपनी मां का हाथ बटा पाती है। पिता रोज पीकर घर लौटते और लोगों का बहुत सारा कर्जा भी सिर पर कर लिया था। घर तक गिरवी रख दिया। उनकी मम्मी कुछ कहती तो उनके पिता यानी स्नेहा के नानाजी उन पर हाथ उठाते मारते पीटते और वो बेचारी रो धोकर सो जाती जैसे तैसे साहूकार से प्रार्थना कर पैसा चुकाने की मौहलत मांगी। और थोड़ा थोड़ा करके उसका पैसा चुका दिया। स्नेहा की मम्मी को गाना-गाने और सुनने का बहुत शौक था। उसकी मम्मी की आवाज़ बहुत सुंदर थी। उन्होंने अपने मामाजी से कहकर एक रेडियो मंगा लिया। रेडियो को वो जान से ज़्यादा संभालकर रखती। घर के सारे काम वो गाते गुनगुनाते ही निपटाती। एक दिन रेडियो खराब हो गया और उसकी मम्मी बहुत दु:खी हो गयी। भाई को पास की दुकान पर रेडियो ठीक कराने के लिए भेज दिया। लेकिन उसने उसे ठीक करने के पैसे लेने से इनकार कर दिया। भाई ने आकर बताया तो स्नेह की मम्मी ने उसे वापिस उसके पैसे देकर आने को कहा। उस दिन के बाद वो रेडियो ठीक करने वाला उसके नानाजी को दारू पिलाता और घर आकर बैठ जाता स्नेहा की मम्मी को घूरता। जब वो घर से निकलती तो उसके पीछे पीछे हो लेता। एक दिन उसकी मम्मी अपने नानाजी के यहां गयी, नानाजी के घर के पास एक सिनेमा हॉल था। वे घर के सभी सदस्यों सहित स्नेहा की मम्मी की भी टिकिट ले आये। हॉल से जब बाहर निकले तो उस रेडियो ठीक करने वाले दूकानदार को वहां देखा। और अपनी ममेरी बहनों को सब बताया। रिश्तेदारी में कहीं जाती तो लोग पीछे लग जाते। सुंदरता उनके लिए अभिशाप बनी थी। अब उनके लिए रिश्ते आने लगे। कोई कहता अच्छा घर हैं कई गाय-भैंसें हैं। तभी नानी बोल पड़ती मेरी बेटी की गांव में शादी नहीं करूंगी न ही वो गाय भैंस का काम करेगी। उसने यहां नहीं किया वहां कैसे करेगी ।
तभी एक दिन स्नेहा की बड़ी बुआ उसकी नानी के घर उसके पापा का रिश्ता लेकर पहुंची की लड़का सरकारी नौकरी पर है। आपकी बेटी खुश रहेगी। स्नेहा की नानी ने सोचा कि मैंने इतने दु:ख देखें हैं मेरी बेटी सरकारी नौकरी वाले के साथ ब्याही जाएगी, कम से कम खुश तो रह पाएगी। खुशी खुशी उन्होंने इस रिश्ते के लिए हाँ कर दी। जैसे तैसे शादी तय हो गयी। इसी बीच स्नेहा के मामाजी जो कि अंडे की दुकान लगाते थे। एक दिन दुकान लगाते हुए गरम-गरम अंडे का भगोना उनकी छाती पर गिर गया। स्नेहा की नानी को जैसे ही पता चला वो भागी भागी आयी और उन्हें अस्पताल ले गयी। स्नेहा की मम्मी बहुत दु:खी थी। नानी मामाजी के साथ अस्पताल में रहती उनका ध्यान रखती और स्नेह की मम्मी घर संभालती। इसी बीच स्नेहा की बड़ी बुआ आयी और उसके नानाजी से कहने लगी कि रिश्ते को तीन साल हो गए हैं अगर जल्दी शादी नहीं की तो मेरे भाई के लिए रिश्तों की कमी नहीं है। कई नौकरी लगी हुई लड़कियों और ऊंचे घरानों से रिश्ते आ रहे हैं हम वहां कर देंगे। अस्पताल में जब ये खबर उसकी नानी को मिली तो वो घबरा गयी कि अब क्या करें। उनके पास तो एक पैसा नहीं वो शादी का खर्च कैसे संभालेंगी। उन्होंने हिम्मत की और घर पहुंचकर साहूकार से कर्ज लेकर विवाह तय कर दिया। उस समय सतमेल मिठाई का जमाना था। अगर कोई विवाह में इसका प्रावधान करता था तो बहुत ही मान सम्मान की बात समझी जाती थी। इतना ही नहीं विवाह के बाद अगले दिन तक पूरी बारात वहीं रुकती और उनकी खूब आवभगत की जाती। स्नेहा की नानी ने अपनी हैसियत से कहीं ज़्यादा अच्छा करने की पूरी कोशिश की। ले देकर विदाई का समय आ गया। दहेज़ में नानी ने उसकी मम्मी को रेडियो भी दिया। साईकिल आदि जो चीजे उस समय प्रचलन में थी वो उन्होंने अपनी हैसियत के मुताबिक दी। अब स्नेहा की मम्मी अपने ससुराल पहुँच गयी। सारी औरतें उनका मुँह देखने आयी। जो आता उनकी सुंदरता की तारीफ करता। बल्कि लोगों ने तो इतना तक कहा कि बहु बिल्कुल हेमामालिनी जैसी लाया है। आस पड़ोस से सभी औरतें उनका मुँह देखने आई। किन्तु उसकी दादी ने उसकी मम्मी का मुंह नहीं देखा। बाहर की औरतें कहती कि बहू तो बहुत सुंदर लाई है। पूरे गांव में कोई नहीं। उसकी दादी उसके पापा को प्यार नहीं करती थी और उसकी मम्मी गरीब घर की थी इसलिए वो भी उनके मन नहीं भायी।
उसकी मम्मी उसकी दादी से बहुत डरती बल्कि कांप जाती उनके सामने। उसके पापा भी छः भाई थे और दो बुआ थी उसकी। उसके पापाजी ने मज़दूरी करके अपनी पढ़ाई की। दादाजी कम उम्र में चल बसे थे। घर पर ताने मिलते इसलिए जल्दी जो भी नो
नौकरी मिली वो पकड़ ली और साथ -साथ नाईट स्कूल में पढ़ाई जारी रखी। अपनी शादी का खर्च खुद उठाया। अपने दोनों भाइयों की शादी की। किन्तु उसकी दादी के वो कभी मन नहीं भाये। जैसे उसके रोज उसकी मम्मी के साथ झगड़ते हुए उन्हें पीटते हुए वो देखती। एक दिन जब छोटे चाचा की शादी हुई उससे पहले दादी ने कहा तू किराये पर रह यहां जगह नहीं है। उसके पापा उसी दिन  उन सब को लेकर दादी के घर के सामने ही खाली पड़े एक मकान को किराए पर लेकर रहने लगे। क्योंकि दोनों चाचाओं की शादी तो हो गयी थी किन्तु कोई भी कमाता नहीं था। तो उसके पापा उसकी मम्मी को बताए बिना ही जिस दिन तन्ख्वाह मिलते आधी तनख्वाह दादी को पहुंचा देते। इस पर भी दादी, ताईजी और छोटी बुआ हमेशा ही उनसे लड़ती और उनपर हाथ उठती। उसकी नानी दूसरों के घर बर्तन माँजती हैं साफ़ सफाई करती हैं बात बात पर उन्हें ताने देती। क्योंकि वो गरीब घर से थी तो अपनी मम्मी को कुछ न बताती। जब उसके मामा आते उसके ताऊजी सब उनका मजाक उड़ाते। उन पर हंसते। उसके पापा जब भी उसकी मम्मी को फ़िल्म दिखाने लेकर जाते उसकी बड़ी ताईजी उसकी दादी के कान भर देती और क्लेश करा देती। उसके पापा ने उसकी मम्मी को फिर ले जाना ही बंद कर दिया। एक रोज उसकी मम्मी आटे की चक्की पर आटा पिसवाने के लिए गयी तो चक्की वाले ने उनका हाथ पकड़ लिया। उन्होंने घर आकर बताया झगड़ा हुआ। सुंदरता के उन्हें बहुत दुष्परिणाम भुगतने पड़े। दादी और सब ताने देने लगे ये ही मुँह उघाड़कर खड़ी हो गयी होगी। इसने ही कुछ किया होगा।
स्नेहा भी अपनी मम्मी की तरह बेहद सुंदर थी। स्नेहा बहुत शांत स्वभाव की थी। उसके पिता सरकारी नौकरी करते थे। जब वह मात्र 6 वर्ष की थी वे बेहद बीमार हो गये। स्नेहा के तीन छोटे भाई थे वही उनमें बड़ी थी। पिता के बीमार होने पर मम्मी को उनके साथ अस्पताल में रहना पड़ा। चारों बच्चों को उनकी दादी और ताऊजी के परिवार के पास छोड़कर उसकी मम्मी पापा के साथ अस्पताल चली गयी। उसके पिता को स्वस्थ होने में कई महीने लगे। इस बीच उसे ताऊजी के परिवार में कई बार ताने सहने पड़ते की उसकी माँ उन्हें उनके ऊपर छोड़कर चली गयी। खाना खाते समय ताऊजी की बेटी उसकी बड़ी बहन कई बार ताने मारती। स्नेहा के कोमल हृदय पर ये सब बातें बहुत ठेस पहुंचाती। उनपर बोझ न बने इसलिए स्नेह अपनी ताईजी का घर के काम में हाथ बटा देती। उनके साथ दूर जंगल में लकड़ी लेने जाना, गोबर के उपले (कण्ठे) पाथने जाना, सुबह उनके साथ उठकर घर में झाड़ू लगा देना। जितना वो करने में सक्षम थी वो पूरी कोशिश करती की ताऊजी-ताईजी को खुश रख सके। कईबार ताऊजी की बड़ी बेटी यानी उसकी बहन ताने देती की तेरी माँ तेरे बाप को मार देगी। स्नेहा का हृदय अंदर ही अंदर ये सब सुन रोने लगता। उम्र से ज़्यादा सोचने लगी। स्कूल से आकर ताईजी की बेटी जो कॉलेज में पढ़ती थी, उससे गृह कार्य से सम्बन्धित कोई सवाल पूछती तो वो झड़प देती। एक बार उसकी बहन कहीं से पहली बार थ्रेड चलाना सीखकर आई। आकर स्नेहा से कहा इधर आ। स्नेहा चली गयी उसे तो थ्रेडिंग का मतलब भी नहीं पता था, बड़ी बहन ने अपनी प्रैक्टिस उसी पर शुरू कर दी। और उसकी एक आई ब्रो पर काफी लंबा कट आ गया। दर्द हुआ लेकिन बच्ची थी उसे तो आभास भी नहीं था कि ये कट जीवनभर के लिये उसकी आई ब्रो की शेप खराब कर गया।
उसके पापा घर ठीक होकर आ गए। अब घर उसे घर लगने लगा। उसके पापा ने नोकरी जॉइन कर ली। सब ठीक ठाक चल रहा था लडाई झगड़ा तो जैसे आम बात हो गयी थी दादी और बुआ की। एक दिन मेरा सबसे छोटा भाई पलँग से गिर गया। और उसके सिर में काफी चोट आई। उसके सिर में पानी भर गया मम्मी को उसके लेकर अस्पताल रहना पड़ा। इधर दादी और बुआ  स्नेहा को ताने देती की तेरी माँ ने तेरी भाई की ये हालात की है। ये सब सुनकर बहुत गुस्सा आता लेकिन बच्ची थी सुनने के अलावा वो आखिरकार कर भी क्या सकती थी। खाने खाते समय ताने हर समय ताने ही ताने। एक दिन गुस्से में आकर घर की सफाई खुद करने लगी, पोंछा लगाना नहीं आता था। दादी ने डाटा। वो अपने पापा के कपड़े धोने की कोशिश करने लगी छोटे छोटे हाथों से। ब्रश लगाते हुए छाला पड़ गया। जब स्नेह के पापा ने देखा तो उसे हटाकर वो खुद कपड़े धोने लगे।
एक दिन जब स्नेहा के पिताजी और उसकी  मम्मी उसके भाई के साथ अस्पताल में थी,वो स्कूल से आई और बच्चों के साथ अपने किराये के मकान की छत पर खेलने चली गई। वहां एक आदमी रहता था। खाली छत पर सब बच्चों के साथ वो भी खेलने लगी। सब बच्चे नीचे जाने लगे तो पीछे से उस आदमी ने जिसे स्नेहा अंकल कहती थी आवाज़ दी और अपने रूम में बुला लिया। वो छोटी बच्ची जो मात्र सात वर्ष की थी, बिना कुछ सोचे समझे चली गयी। स्नेहा के अंदर आते ही उस आदमी ने दरवाजे की कुंडी लगा ली। स्नेहा तब भी कुछ न समझी। लेकिन जब उस आदमी ने उसके साथ जबरदस्ती करनी चाही उसे कुछ समझ ही नहीं आया। वो स्मूच करने की कोशिश कर रहा था इससे पहले और कुछ करता दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी और उसे दरवाजा खोलना पड़ा। स्नेहा बाहर निकल आई। उसे उसकी स्मूच वो एहसास गंदा तो लगा लेकिन उसकी समझ कुछ नहीं आया। मम्मी भी नहीं थी। लेकिन वो गन्दा एहसास उसे हमेशा खलता पर किसीसे कुछ नहीं कह पाई क्योंकि कुछ समझ ही नहीं पा रही थी उस छोटी उम्र में। बात पुरानी होती गयी पर वो गंदा एहसास उसे गन्दगी का एहसास कराता। दिन बीतते गये।
जब वो स्कूल से आने के बाद खेलने के लिए जाती तो कुछ किशोर लड़के उसे बुलाते उसे छेड़ते। कोई कहता पप्पी दे, कोई आंख मरता। ये सब बातें खलती और उसने अपने पापा को बताया कि कुछ लड़के ऐसे करते हैं जब वो खेलने जाती है तो ।उसके पिताजी ने उन लड़कों को अपने भाई के लड़के के साथ जाकर डाँटा। सुंदर होना शायद उसके लिए भी अभिशाप था।
स्कूल के बाहर एक दुकान थी।दुकानदार लड़कियों को फ्री में समान देकर उनके साथ बदतमीजी करता था। एक दिन उसके साथ भी उसने ऐसा कुछ करना चाहा। पर उसने फ्री के समान का लालच नहीं किया बल्कि दूसरी लड़कियों को भी मना किया। एक दिन ये बात प्रिंसीपल तक पहुंचीं। तो उन सभी लड़कियों की बहुत पिटाई हुई। उसने उन लड़कियों से कहा कि स्कूल में बताया जाता है न कि अनजान आदमी से कुछ नहीं लेना चाहिए। मैंने समझाया पर तुम मानी नहीं।
स्नेहा गांव की रहने वाली थी इसलिए वहां शौच की व्यवस्था नहीं थी। सुबह 5 बजे उठकर मम्मी के साथ अंधेरे में बाहर शौच के लिए जाती। कईबार लोगों की बुरी नज़रे उन्हें घूरते हुए दिखती और वो मुहँ नीचे कर लेती।
दोपहर में कभी कई बार वो अपने चाचा के घर की तरफ जाती तो रास्ते में एक आदमी हमेशा उसे घूरता और गंदी गंदी हरकतें करता। उसकी वो गंदी नज़र उसका जीभ को घूमना, आँखे फड़फड़ाकर उसे देखना,उसे खलता वो रोते रोते घर जाती। एक दिन फिर यही घटना घटी और स्नेहा ने  रोते हुए अपने चाचा को बताया कि आपके पड़ोस का वो आदमी गंदी नज़र से देखता है, जीभ घुमाता है, रास्ते में खड़ा हो जाता है। तो स्नेहा के चाचा ने कहा उसने तुझे हाथ लगाया, स्नेहा ने कहा नहीं पर गंदी गंदी हरकतें करता है। तो उसके चाचा ने कहा भगवान ने आंख देखने को दी हैं तो वो देखेगा ही, तुम क्या किसीको रोक लोगी। ये सुनकर स्नेहा के पैरों तले जमीन खिसक गई और वो रोते हुए घर पहुँची और अपनी माँ को सब बताया। वो उसे चुपकराती और प्यार से उसका सिर अपनी गोद में लेकर उसके बालों को सहलाती थोड़ी देर में स्नेहा नॉर्मल हो गयी और सो गयी।
अब वो दसवीं कक्षा में थी। उसके पिताजी ने उसका ट्यूशन लगाया । जहां पर केवल एक वही लड़की थी और सारे लड़के थे उस बैच में। वो सुंदर थी लड़के भी हमउम्र थे। वो किसीसे बात न करती। लेकिन रोजाना वो लड़के कुछ न कुछ करते और उसकी उनसे नहीं बनती। उसके जीवन  के कडुवे अनुभवों के कारण उसे लड़के बिल्कुल पसंद नहीं थे। उसके स्कूल के टाइम पर ट्यूशन का एक लड़का ज्यादातर दिखाई देता उसकी क्लासमेट ने ये बात क्लास में फैला दी। उसे पता चला तो वो अपनी मम्मी को लेकर उस लड़की का घर ढूंढ़ते ढूंढ़ते पहुंची। उसकी मम्मी ने उस लड़की को समझाया बेटा आप लोग पढ़ने जाते हो या ये सब करने। शाम को टयूशन पर जाते ही स्नेहा ने उस लड़की का सारा गुस्सा उस लड़के पर निकाल दिया। लड़के की कम्पलेंट टयूशन टीचर से की। लेकिन लड़के ने उफ्फ तक न की।चुपचाप उसकी और टयूशन सर की डांट सिर नीचा करके सुनता रहा। एक दिन स्नेहा की डायरी में किसी लड़के ने आई लव यू लिख दिया। स्नेहा को गुस्सा आया उस लड़के को खूब सुनाया । लेकिन वो बिना कुछ जवाब दिए सिर नीचा किये सुनता रहा। स्नेहा की लिखावट बहुत सुंदर थी। जो उस लड़के को बहुत पसंद थी। जब कॉपी चेक होती वो उठाकर देखता क्योंकि उसकी लिखावट बहुत गन्दी थी। सभी बच्चे पास हो गए। दसवीं के बाद वो लड़का कभी नहीं दिखा सुनने में आया उसने स्नेहा के गांव की जगह अपने गांव में बारहवीं तक स्कूल खुल जाने के कारण वहीं एडमिशन ले लिया।
स्नेहा को लड़कों से बहुत नफरत हो चली थी। वो गर्ल्स स्कूल में पढ़ी थी। जब वो ग्यारहवीं में थी तो उसके मामाजी के यहां एक दो लड़के रेंट पर इंजिनीरिंग की पढ़ाई कर रहे थे।
एक दिन एक बाबा भीक्षा मांगता हुआ घर में बैठ गया। उसकी आवाज़ सुनकर दोनों में से एक लड़का लाल आंखे किये गुस्से में बाहर निकाला और स्नेहा की नानी से बोला क्या आंटीजी इन लोगों के चक्कर में आप क्यों पड़ती हैं,इनका काम ही लोगों को पागल बनाना होता है। उसकी वो नज़र स्नेहा की आंखों में घर कर गयी। वो जितने दिन वहां रही उसने देखा कि वो लड़के सारा दिन पढ़ते रहते और आसपास इतनी सुंदर लडकियों के होते हुए भी कभी लड़कियों को नहीं ताकते। उनका फोकस एकमात्र उनकी पढ़ाई पर था। स्नेहा उस लड़के को कभी भूल ही नहीं पाती उसकी वो आंखें उसके दिल में घर कर गयी। उसे लगा कि ये केवल अट्रैक्शन है और कुछ नहीं और वो उससे छोटी है कुछ हो भी नहीं सकता कम से कम चार साल का डिफरेंस। कुछ समय बाद वो लड़के रूम खाली करकर चले गए। उस रूम में उसके छोटे मामा शिफ्ट हो गए। जब उस रूम को देखती तो उसे याद करती उसे जिसे सिर्फ एकबार और लास्ट बार उसने अपनी नानी पर गुस्सा करते देखा।
दिन बीतते गए स्नेहा बारहवीं में आ गयी। उसके मम्मी के दूर के भाई जो उन लड़कों के साथ इंजिनीरिंग कर रहे थे स्नेहा से बहुत स्नेह करते थे। क्योंकि उनके यहां कोई भी लड़की ज़्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी ज़्यादा से ज़्यादा आठवीं या नौवीं तक। जब वो आती वो बहुत खुश होते  उसके लिए पेन, नोटबुक, तरह -तरह की मोटीवेशनल बुक्स लाकर देते। स्नेहा के लिए खुद अपने हाथों से आईसक्रीम बनाते। जितने दिन स्नेहा वहाँ रहती उसे पढ़ाते। बचपन से वो स्नेहा के शाय नेचर, उसके सीधेपन, उसकी मासूमियत के कारण उसे बहुत प्यार करते थे। और बड़ी होते होते उनका स्नेह उसके प्रति और प्रगाढ़ हो गया था।
एक दिन स्नेहा ने उन्हें बचपन की हर घटना को रोते रोते उन्हें बयां कर दिया। उसने बचपन में इतना कुछ सहा ये सुनकर उनकी भी आँखें नम हो गयी और वो उसे और भी स्नेह और दुलार करने लगे। स्नेहा को लगा उसे एक दोस्त मिल गया। उसके उन मामाजी को उसमें अपना बचपन दिखाई देने लगा। उन्होंने बड़े संघर्षों से लोगों की गाड़ियां साफ करके, ट्यूशन पढ़ाकर अपनी पढ़ाई अपने घर की जिम्मेदारियां सम्भाली थी।
एक दिन स्नेहा ने अपना वो राज़ भी खोल दिया जो किसीकी सिर्फ एक नज़र पर आकर रुक गया था। उसने कहा कि वो उन दोनों में से एक लड़के को पसंद करती है उसे एक बार ही देखाभर है। ज़िन्दगी में इतने गन्दे लोग देखे की कोई इतना अच्छा भी हो सकता है,जिसे कोई मतलब नहीं कि कितनी सुंदर लड़कियां आसपास है। जो सिर्फ अपने लक्ष्य के अलावा किसीको इम्पोर्टेन्ट नहीं समझता। मुझे उसकी यही बात भा गयी। शुरू में सोचती थी कभी शादी करूंगी तो वो लड़का ऐसा ही होना चाहिए लेकिन धीरे-धीरे लगा कि उसके अलावा कोई नहीं हो सकता। उसके मामाजी से पहली बार उसे उसका नाम पता चला। अपने मामाजी से कहने लगी आदित्य वो बोले हाँ। तो बोलने लगी कितना सुंदर नाम है ना मामाजी,उनपर सूट करता है।उन्होंने स्नेहा को समझाया बेटा ये केवल आकर्षण है, जो इस उम्र में स्वाभाविक है। फिर स्नेहा ने उन्हें कहा कि मुझे भी यही लगा था। लेकिन जब अब तक उसे नहीं भूल पाई जिसे सिर्फ एकबार देखा। तो लगा कि उसके जैसा कोई और हो ही नहीं सकता, सारी दुनिया भूखी घूम रही है।
उसके मामाजी ने उसे बताया कि वो दिल्ली आया हुआ है और यू पी एस सी की तैयारी कर रहा है। ये सुनकर उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था।  उसने अपने मामाजी से उसे एकबार मिलाने की जिद्द की,रो-रोकर। उन्होंने इस पर स्नेहा से कहा ठीक है लेकिन तुम्हे फिर उसकी बात माननी होगी। स्नेहा ने भी उछलते हुए कहा ठीक है। अगले दिन उसके मामाजी उसे सीखा पढ़ाकर लाये। उसने भी कहा ये अट्रैक्शन और कुछ नहीं,जो इस उम्र में किसीको भी किसीके प्रति भी हो सकता है।
स्नेहा ने आदित्य से कहा कि मुझे तो न नाम पता था, न ये की आप कहाँ के हैं। बस मन को आपकी सादगी,तथा औरों से हटकर आपको देखा और ये सब दिल के किसी कोने को छू गया। इस पर आदित्य ने अपना होस्टल का नम्बर, अपना होम टाउन नम्बर और उसके जीजाजी जो कि डिप्टी कमिश्नर थे उनके नम्बर दे दिए की कभी कोई काम हो तो इनसे बात कर सकते हो।
स्नेहा फिर अपने मामाजी के साथ जाकर एसटीडी से कॉल करने लगी। जब आदित्य आई लव यू बोलता वो फूले न समाती। आदित्य ने उसे कहा कि तुमने जो पत्र मुझे लिखा तुम्हारी लिखावट बहुत सुंदर है, तुम बहुत एक्टिव हो। ये शब्द सुनकर स्नेह की खुशी का ठिकाना नहीं था जैसे उसे सब कुछ मिल गया हो।
एक दिन स्नेहा फिर अपने मामाजी के साथ आदित्य से फोन पर बात करने गयी। आदित्य ने कहा कि मुझे तुम्हारे मामाजी के सामने तुम्हारा बात करना अच्छा नहीं लगता। ये बात स्नेहा को अजीब लगी लेकिन प्रेम ने इसे महत्व नहीं दिया।
छुट्टियां खत्म होने पर स्नेहा अपने गांव लौट आयी। वहां वो उसे एसटीडी से जाकर कॉल करती वो स्टूडेंट थी इसलिए ज़्यादा पैसे नहीं होते। आदित्य ने कहा कभी अपने मामाजी के बिना मिलो ।मुझे उनके साथ तुमसे मिलना अच्छा नहीं लगता। स्नेहा ने कहा मैं भी तो आपको एकबार देखने भर से प्यार कर बैठी फिर आप अकेले मिलकर क्या तय करेंगे। ये बात स्नेह को खल गयी उसने अपने मामाजी को ये बात बतायी तो उन्हें भी आदित्य का अकेले मिलने बुलाना ठीक नहीं लगा। स्नेहा के अनुभव ने उससे कहा कि ये भी वैसा ही है क्या मैं इसे गलत समझी शायद। थोड़ी सी देर में बिल का पर्चा हाथ में।
एक दिन अपनी कजिन के साथ स्नेहा फिर एसटीडी बूथ पर गयी। उस दिन  जो उससे बात कर रहा था उसकी आवाज़ आदित्य जैसी नहीं लगी। उसने उसे आई लव यू कहा लेकिन वो आवाज़ उसे किसी अजनबी की आवाज़ लगी। बहुत जोर देने पर उसने कहा कि आदित्य होम टाउन लौट गया है। फिर वो समय आया कि आदित्य भी अपने होम टाउन लौट गया।
आदित्य का लैंडलाइन नम्बर उसका घर का एड्रेस सब स्नेहा को ज़ुबानी याद था। उसने उसके होम टाउन कॉल किया एसटीडी कॉल थी, किसी आदमी ने फोन उठाया उनके पूछने पर स्नेहा ने उन्हें अपना नाम बताया और आदित्य से बात कराने का निवेदन किया।स्नेहा की धड़कनें बढ़ रही थी की आदित्य के आने से पहले उसके हाथ में जो सौ का नोट है वो भी कम ना पड़ जाए।
आदित्य आया बैक ग्राउंड में सांग बज रहा था आ अब लौट चलें। स्नेहा ने भारी आवाज़ में कहा लौट आइये न। पर उसका कोई जवाब नहीं था। इतनी से वार्तालाप में ही दो सौ रुपये एसटीडी कॉल का बिल आया क्योंकि इसबार कॉल लोकल नहीं एसटीडी थी। एसटीडी वाले भैया को सौ रुपये थमाकर सौ रुपये अभी लाई कहकर भागती हुई स्कूल टीचर के पास आई उन्हें भी मामाजी की तरह स्नेहा के जीवन से सम्बंधित प्रत्येक बात पता थी। वो भी स्नेहा से बेहद प्यार करती थी। स्नेहा ने कहा मैम कल लौटा दूंगी। उन्होंने कहा कोई ज़रूरत नहीं स्नेहा ने कहा मैम इतना काफी है कि आपने मेरी मदद की। और अगले दिन वो पैसे स्नेहा ने लौटा दिए। ये आदित्य से उसकी आखिरी बात थी।
स्नेहा ने अपने दूर के रिश्ते की मासी को ये सब बताया। और ये भी कहा कि वो जा चुका है। बस एक बार मिली । और उसके बाद तो शायद कभी नहीं। उसकी मासी ने ये बात सब जगह फैला दी। सब पूछते कब से चक्कर चल रहा था। स्नेहा मन ही मन मासी पर बहुत गुस्सा हुई कि जो न यहां है ना भी आएगा ।उसके लिए उन्होंने मेरा विश्वास तोड़कर सबकी नजरों में शर्मिंदा कर दिया।
स्नेहा के मन को ठेस पहुंची और उसने घर में रखी सारी मेडिसिन और बाहर जाकर नींद की गोलियां जो एक प्रिस्क्रिप्शन पर लिखी लेकर खा ली। इतनी देर में उसका कज़िन घर पहुँचा उसकी हालत देखकर समझ गया उसे वोमेटिंग कराई। डॉक्टर के पास लेकर जाया गया। वो बच तो गयी किन्तु अंदर ही अंदर मर गयी। स्कूल छोड़ने की ठान ली। जाना बंद कर दिया। आदित्य नहीं तो कुछ नहीं और उसकी वजह से बदनाम होकर जीना अब उसे गवारा न था।
[28/05, 10:50 am] Deepa Kaimwal Delhi: टीचर्स ने अपने घर उसके पैरेंट्स को बुलाकर समझाया कि वो अच्छी स्टूडेंट है उसे पढ़ाई न छोड़ने दें।  जैसे तैसे उसे स्कूल भेजा जाने लगा। बारहवीं की बोर्ड की परीक्षा पास थी। उसने ठान लिया जो पढ़ लिया पढ़ लिया पहले किन्तु अब वो कुछ नहीं पढ़ेगी चाहे फैल हो जाये। परीक्षा हुई रिजल्ट आया वो पास हो गयी अच्छे अंकों से। टीचर्स ने कहा पहचानों खुद को बिना पढ़े इतना अच्छा किया जो पढ़ती तो कितना बेहतर कर पाती।
घर के पास के कॉलेज को-एड में एडमिशन कराया गया। स्नेहा एक दिन के लिए गयी और वहां उसकी एक सहेली ने उससे कहा कि उसके दोस्त को तुम अच्छी लगी वो तुमसे दोस्ती करना चाहता है। स्नेहा गुस्से में अपनी क्लास की तरफ बढ़ी पहला दिन कोई टीचर नहीं हर क्लास में, ग्राउंड में लड़के लडकियां हाथ में हाथ डालकर एक दूसरे से सटकर बैठे हुए थे।
स्नेहा ने अपने पिता से कहा कि मुझे इस कॉलेज में नहीं पढ़ना। आप मुझे किसी गर्ल्स कॉलेज में एडमिशन दिला दीजिये। इस कॉलेज का माहौल मुझे अच्छा नहीं लगा मैं लड़को के साथ नहीं पढ़ सकती। इस कॉलेज से बेहतर है कॉरेस्पोंडेंस में एडमिशन दिला दीजिये।
उसके पिता ने उसका एडमिशन एक गर्ल्स कॉलेज जिसमें अभी सीट बाकी थी करा दिया।
वो कॉलेज उसके गांव से बहुत दूर था रोज सुबह छः बजे निकलना और शाम को पांच बजे घर पहुंचना। किसीसे कोई फालतू बात न करना घर से कॉलेज, कॉलेज से घर। उसकी फ्रेंड्स के बॉयफ्रेंड थे वो उसे उनसे मिलाना चाहती पर वो हमेशा यह कहकर मना कर देती की मुझे ये सब पसंद नहीं।
कॉलेज की परीक्षा आयी उससे दौरान उसने ट्यूशन जॉइन किया। ट्यूशन पढ़ाने वाले सर को उससे प्यार हो गया। वो उसके लिए रिंग लेकर आया और एक घर भी खरीद लिया। लेकिन स्नेहा ने उसे मना कर दिया। उसके सर की आंखों में आंसू आ गए। इस पर स्नेहा ने उनसे कहा कि वो किसीसे प्यार करती थी और करती रहेगी वो उसे कभी नहीं मिलेगा लेकिन फिर भी वो किसी से शादी नहीं करना चाहती। क्योंकि वो उसे कभी नहीं भूल सकती।
उसके बाद स्नेहा ने बीच में ट्यूशन छोड़ दिया इस दौरान वो ट्यूशन सर भी वो जगह छोड़कर चले गए। कॉलेज टाइम में कई लोगों ने उसे प्रपोज़ किया। लेकिन उसे आदित्य के अलावा कोई समझ नहीं आया।
कॉलेज खत्म हुआ पिता के कहने पोस्ट ग्रेजुएशन में एडमिशन हुआ। इसबार क्लास में लड़के थे जिसका कोई विकल्प नहीं था। स्नेहा किसीसे कोई बात न करती। सिर्फ एक दो लड़कियां जो उसकी अच्छी दोस्त बन गयी थी। फिर घर से कॉलेज, कॉलेज से घर।
एक दिन स्नेहा क्लास में बैठ नोट्स बना रही थी तभी एक बिछड़ा हुआ चेहरा उसके सामने आया। जिसे देखकर वो सहसा बोल उठी की प्रशांत तुम! जिसपर प्रशांत ने उससे पूछा और कहा तुम पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही हो। स्नेहा को सारी बातें एकदम याद आयी। ये लड़का कितने आराम से बिना गलती के मेरी डांट, ट्यूशन सर की डांट सुनता था। जबकि इसकी कभी कोई गलती नहीं थी सब उन बदतमीज़ लड़को की वजह से था जो उसके दोस्त थे।
स्नेहा को अपनी गलती का एहसास हुआ और माफी मांग ली। और प्रशांत से पूछने लगी कि तुम यहाँ कैसे? इस पर प्रशांत ने जवाब दिया अभिनव जो तुम्हारा क्लासमेट है मेरा बेस्ट फ्रेंड है, इसीसे मिलने आया था अचानक तुम पर नज़र पड़ी। पर तुम तो इतनी सुंदर थी अब  इतनी कमजोर कैसे हो गयी। तुम्हे याद है एक दिन तुम्हे चक्कर आ रहे थे तुम्हे किसीने बस में बिठाया था, वो मैं ही था। स्नेहा ने कहा वो तुम थे। मैंने नींद की पील्स ली हुई थी, मुझे काफी महीने नींद नहीं आती थी। और डॉक्टर ने मुझे ये स्लीपिंग पिल्स लिख थी। मेरी आँखें नींद न आने से पत्थर हो चली थी। उस दिन मुझे तब नींद नहीं आयी तो मैंने कई पिल्स ले ली थी। लेकिन उसके बाद मैंने वो छोड़ दी ताकि मुझे उनकी लत न लग जाये।
कॉलेज क्लासेज खत्म हो गयी थी। प्रशांत ने स्नेहा से कहा कि घर चल रही हो,दोनों के गांव आसपास थे ।स्नेहा के साथ उसकी सहेली भी थी जो प्रशांत के गांव की थी वो अंदर ही अंदर मुस्कुरा रही थी। स्नेहा ने कहा कि क्या खिचड़ी पक रही है दिमाग में। उसने कहा तू तो किसी लड़के से ना बात करती थी न उनकी तरफ देखती थी फिर ये मेरे गांव का ही मिला। स्नेहा ने उसका चेहरा भाप लिया और कहा ऐसा कुछ नहीं है। ये तो टयूशन पर मेरे साथ दसवीं में, तबसे आज मिला है। फिर मेरी वजह से इसकी बहुत इंसल्ट हुई इसलिए आज सॉरी बोलने के लिए मैने उससे बात की,नहीं तो नहीं करती।
प्रशांत ने बस में स्नेहा का टिकट ले लिया। स्नेहा ने उसके पैसे उसे लौटा दिए। प्रशांत को ये अच्छा नहीं लगा। लेकिन स्नेहा ने कहा उसे ये सब पसंद नहीं। प्रशांत ने बताया वो थोड़ी देर में उतर जाएगा। उसके पिता एडमिट हैं हॉस्पिटल में उन्हें स्टंट डले हैं। उसकी आँखों में अपनी पिता के लिए अत्यंत प्रेम और नमी छिपी थी।
अगले दिन लंच टाइम में प्रशांत फिर स्नेहा की क्लास में गया। स्नेहा ने उसे उसके दोस्त से बातें करते देख लिया था पर वो उसे इग्नोर कर रही थी। प्रशान्त स्नेहा की तरफ आया और उससे लंच के लिए पूछने लगा। स्नेहा ने कहा वो घर से खाना लाती है। बाहर का नहीं खाती।  इस पर प्रशांत ने कहा में भी घर से लंच लाता हूँ क्योंकि सुबह जॉब पर निकल जाता हूँ और उसके बाद लाइब्रेरी मैं जाकर कम्पटीशन की तैयारी करता हूँ। फिर दोनों बाहर आकर लंच करते हैं। कुछ देर बाद दोनों लाइब्रेरी में पढ़ने बैठ जाते हैं। और प्रशांत दवाई लेने के लिए स्नेहा से पानी मांगता है।
स्नेहा उसे पानी दे देती हैं।
अब हर रोज लंच के समय प्रशांत स्नेहा को साथ लंच करने के लिए कहता। बड़ी हिम्मत करके प्रशांत ने स्नेहा से पूछा कि तुम नींद की गोलियां क्यूं लेती थी। उस दिन जब तुम्हे बस में बिठाया तुम्हे होस भी नहीं था मुझे भी नहीं पहचान पाई। तुम इतनी सुंदर थी, ये क्या हाल बना लिया। मैं तुम्हे पसंद करता था। पर तुम जब देखी बरसती रहती थी हिम्मत ही नहीं हुई। तुम्हारा गोरा चेहरा, तुम्हारी मोटी आंखें बहुत याद आती थी। लेकिन उस दिन तुम्हे उस हाल में देखकर मुझे बहुत दुख हुआ।
स्नेहा प्रशांत की बातें सुन उमड़ पड़ी, उसकी आँखों में नमी थी, उसने प्रशांत से कहा कि मैं किसी और से प्यार करती हूं। पर ये एक तरफा रहा। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता अब की वो करता है कि नहीं। लेकिन मुझे उसके अलावा किसी की चाह नहीं। उनकी तो शायद अब तक शादी भी हो गयी होगी क्योंकि मैं अब 21 की हूँ तो वो 25 के हो गए होंगे।
प्रशांत ने स्नेहा से पूछा कितनी बार मिली थी उससे। स्नेहा ने जवाब दिया एक बार वो भी मामाजी के साथ। जब मैं बारहवीं में थी। अच्छा कितनी बार बात हुई, स्नेहा ने कहा यही कोई दस बार,आज से सात साल पहले ही मिली और आखिरी बार बात हुई।
प्रशांत ने कहा कोई तुम्हे प्यार न करें फिर भी कोई उसे इतना प्यार कैसे कर सकता है। प्रशांत ने कहा मुझे उसका नम्बर दो मैं उससे बात करूंगा और बताऊंगा कि कोई लड़की तुमसे कितना प्यार करती है। स्नेहा ने मना किया लेकिन उसने भी सोचा शायद इस बहाने वो कैसे हैं जान पाए। और उसने प्रशांत को आदित्य का नम्बर दे दिया। प्रशांत ने उससे बात की और उसने बताया कि उसने तो स्नेहा को पहले ही समझाया था ऐसा कुछ नहीं है। और अब तो मेरी शादी हो गयी है एक बच्चा भी है।
प्रशांत ने स्नेहा को बताया कि आज उसकी बात उससे हुई है। और वो एक आईएएस हो गया है।  उसके मन में तुम्हारे प्रति कोई भाव नहीं। तभी स्नेहा ने कहा कि मैंने तो खुद कहा था कि ये एक तरफा प्रेम हैं जिसमें मैंने अपना शरीर और स्वयं को खो दिया। उसके आलावा हर पुरुष भूखा नज़र आया। बचपन गन्दा, स्कूल गए टीचर गंदा, कॉलेज गए प्रोफेसर गन्दा सब भूखे भेड़िये।एक इसकी पहली नज़र थी जिसने मुझे ये एहसास कराया कि सब पुरुष एक जैसे नहीं होते। इसने भी अकेले मिलने को कहा तो एकबार के लिए लगा ये भी वही है बस मैंने ही गलत समझा।लेकिन प्रेम कब किसीकी सुनता है जिसे चाहता है उसमें कोई कमी नज़र ही नहीं आती।
आंखें हर पल उसकी तलाश करती हैं। उसे देखना, उसे सोचना चाहती हैं। पता है प्रशांत प्रेम बहुत पवित्र भाव है। अगर वो सच्चा होता है तो उससे सुखद एहसास कोई नहीं होता।
तभी प्रशांत ने कहा कि तुम तो बहुत अच्छा लिखती हो उसके लिए कभी कुछ लिखा। स्नेहा ने कहा हाँ। उसे पढ़कर ही उसने मेरी लिखावट और मेरी आवाज सुनकर मेरी आवाज की तारीफ की थी। उससे अपनी तारीफ सुनकर ही लगा कि मेरी आवाज, मेरी लिखावट सुंदर है। पर शायद वो सब भी उसके आई लव यू की तरफ मुझे भरमाने भर के लिए था। मुझे आज भी याद है मेरी वो पहली कविता जो मैंने उसके लिए लिखी थी….

शीर्षक : तुम ही तो हो!

ज़र्रे ज़र्रे में तुम हो बसे,
धरती-आकाश,
तुम्ही तो हो।

पंछियों की चहचहाहट,
कोयल की मधुर आवाज़ से,
मिलती दिल को जो राहत,
तुम्ही तो हो।

मेरी आँखों,
मेरे दिल-ओ-दिमाग में जो बसा,
तुम्ही तो हो।

मैं जो सपना देखती हूँ,
उसकी सुंदर तस्वीर,
तुम्ही तो हो।

तुम्हे देखकर,
इन होंठो पर है जो आ जाती,
वो मधुर मुस्कान,
तुम्ही तो हो।

मेरा दोस्त, मेरा प्रिय,
कोई और नहीं,
तुम्ही तो हो।

मेरे गीतों की गुनगुनाहट,
उनकी लय और ताल,
अंदर तक जो छू जाए,
वो सुधबुधाहट,
वो बुदबुदाहट,
तुम्ही तो हो।

मेरे ज़ज़्बातों का पता,
मेरे जीवन की कथा,
वो सुंदर दास्तां,
जिसे मैं जीना चाहती हूँ,
वो कोई और नहीं,
तुम्ही तो हो!

मेरे दिल में जो मूरत है,
मैं जिसको पूजती हूँ,
वो सिर्फ और सिर्फ,
तुम्ही तो हो!

मेरी आँखों की चमक,
मेरे चेहरे की रंगत,
जिसकी संगत से आ जाती,
मेरे जीवन में रंगत,
वो कोई और नहीं,
सिर्फ और सिर्फ,
तुम ही तो हो।

मैं जिसको देख खो जाती,
जिसकी बातों में खो जाती,
वो तुम्ही तो है।

मेरे हाथों की लकीरों में न सही,
पर मेरे जीने की वज़ह,
तुम्ही तो हो।

मेरी आँखों की गहराई,
मेरी आत्मा की सच्चाई,
मेरे अन्तःस्थ में है जो बसी,
वो सूरत,
तुम्ही तो हो।

मेरी मन्ज़िल,
मेरा साहिल, मेरी पहचान,
मेरा सब कुछ,
और कोई नहीं,
तुम्ही तो हो।

पर प्रशांत इस बात का सदा दु:ख रहेगा की मेरे भाव उस तक न पहुंच सके। वो मेरी तरह असमर्थ रह गये। उनके हृदय पटल पर दस्तक नहीं दे सके। ये जीवन अधूरा, निर्रथक रह गया।
स्नेहा मैं तुमसे कभी नहीं कह पाया लेकिन तुम्हे जब मैंने पहली बार एक नज़र देखा था, तो ये मन भी तुम्हारी मासूमियत देख तुम्हारे प्रति आकर्षित हो गया था। तुम बिल्कुल अलग थी और हो । तुम्हारा उसके प्रति अटूट प्रेम देखकर मेरा तुम्हारे प्रति, सम्मान और बढ़ा है। आज की लड़कियों से तुम बिल्कुल अलग हो तुम्हारी सादगी ही तुम्हारी सुंदरता है। जीवन में इतना कुछ देखने के बाद यहां तक पहुँचना हर किसी के बस की बात नहीं है।
अगर तुम हाँ कहो तो मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ। स्नेहा ने कहा कि प्रशांत मैं किसीसे शादी नहीं कर सकती,मैं उसके अलावा किसी को भी नहीं चाह सकती। मुझे बचपन से ही सेक्स से नफरत है। मैं किसी के साथ नहीं जुड़ सकती। और किसी की ज़िन्दगी बर्बाद नहीं कर सकती। मेरा प्रेम उसके प्रति भी निश्छल था, कोई गंदगी नहीं थी, वो पाक और पवित्र था।
प्रशान्त अब स्नेहा से आत्मिक  रूप से जुड़ गया था। उसे लगा कि एक न एक दिन वो भी उसके प्यार को पहचानेगी। प्रशांत के दो साल की प्रतीक्षा के बाद जब उसने फिर से स्नेहा को प्रपोज़ किया तो स्नेहा ने कहा मुझे छुए बिना रह पाओगे। मुझे सेक्स फीलिंग्स नहीं है। प्रशांत ने कहा जब तक तुम नहीं चाहोगी वादा करता हूँ ,नहीं छू वूं गा।स्नेहा ने इसके बाद हाँ करने से पहले एक और शर्त रखी कि अगर वो रिश्ता लेकर उसके माता- पिता के साथ आएगा,उसके माता-पिता मान जाएंगे तो उसे कोई आपत्ति नहीं होगी। प्रशांत स्नेहा के घर रिश्ता लेकर तो गया किन्तु स्नेहा के पिता ने साफ इंकार कर दिया। उनसे साफ शब्दों में मना कर दिया। दो वर्ष और बीत गए पर प्रशांत ने भी किसी और से शादी नहीं कि।
अब स्नेहा एक बैंक में मैनेजर हो चली थी। स्नेहा के पिता की तबीयत खराब हो गयी और प्रशांत उसके पिता के साथ स्नेहा के पिता को देखने आया और एकबार फिर दोनों के रिश्ते की बात की।  उनकी नाज़ुक हालात को देखकर सभी ने दबाव बनाया और वो तैयार हो गये। शादी हो गयी। प्रशान्त स्नेहा की इतनी केअर करता कि स्नेहा उसे बेहद प्यार करने लगी। दोनों के दो बच्चे हो गए। प्रशांत ने कभी स्नेहा के मन को आघात नहीं पहुँचने दिया, हमेशा उसकी हर इच्छा का सम्मान किया। उसका हमेशा साथ दिया।
स्नेहा की कज़िन ने उसका फेसबुक एकाउंट बनाया। कुछ समय बाद एक दिन उस आदित्य की फ्रेंड रिक्वेस्ट आई। जिसे देखकर स्नेहा की खुशी का ठिकाना न था। उसने प्रशांत से पूछा और प्रशांत ने एक्सेप्ट करने के लिए कहा। आदित्य ने उसे चाय पर बुलाया। स्नेहा खुश थी कि प्रशांत के साथ जायेगी। आज 20 वर्ष बाद प्रशांत के आने की उसे बेहद खुशी थी उसने सोचा हम दोनों के परिवार हैं और हम दोनों उनमें खुश हैं अब कम से कम हम अच्छे दोस्त तो हो ही सकते हैं।

डॉ. दीपा ‘दीप’
सहायक प्राध्यापिका
हिंदी विभाग,
दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली