BNMU। सामाजिक परिवर्तन और राष्ट्र-निर्माण विषयक सेमिनार का आयोजन

मनुष्य एक सामाजिक प्राणि है। मनुष्य ही समाज का मूल है। मनुष्य पर ही समाज निर्भर करता है। जैसा मनुष्य होगा, वैसा ही समाज भी होगा। समाज का लक्ष्य मनुष्य का कल्याण है‌। सामाजिक परिवर्तन के लिए मानव-परिवर्तन और राष्ट्र निर्माण के लिए मानव-निर्माण आवश्यक है।

यह बात बीएनएमयू, मधेपुरा के कुलपति प्रोफेसर डॉ. आर. के. पी. रमण ने कही। वे सोमवार को ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में दर्शन परिषद्, बिहार द्वारा प्रायोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार में अध्यक्षीय अभिभाषण दे रहे थे। सेमिनार का विषय सामाजिक परिवर्तन और राष्ट्र-निर्माण था।

उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने भी सर्वोदय की कल्पना की है। सर्वोदय का अर्थ है सबों का उदय, सब प्रकार से उदय और सबों के द्वारा उदय। यहां सबों के उदय का अर्थ है सभी मनुष्यों, जीव-जंतुओं, पशु-पक्षियों एवं चराचर जगत का उदय। सब प्रकार से उदय का अर्थ है शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं सामाजिक सभी दृष्टि से विकास। सबों के द्वारा उदय का अर्थ है उदय या विकास में सबों की भागीदारी।

उन्होंने कहा कि भारतीय सभ्यता संस्कृति में सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया और वसुधैव कुटुंबकम् का आदर्श व्यक्त किया गया है। भारतीय ऋषि-मुनियों ने सभी मनुष्यों सहित चराचर जगत के कल्याण की कामना की है। हम वैसे समाज व्यवस्था के समर्थक रहे हैं, जिसमें सभी व्यक्तियों का समुचित विकास हो सके।

उन्होंने कहा कि हमारे संविधान में सभी नागरिकों को समान अधिकार दिया गया है। संविधान सामाजिक परिवर्तन और राष्ट्र निर्माण का सर्वोत्कृष्ट दस्तावेज है।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. रमेशचंद्र सिन्हा ने कहा कि वैश्विक स्तर पर दो सिद्धांत हैं- पूंजीवाद सिद्धांत एवं मार्क्सवाद का सिद्धांत। यह दोनों सिद्धांत एकांगी है। जीवन में मात्र हम अर्थशास्त्र को लेकर परिवर्तन नहीं ला सकते। समाज एक पक्षीय नहीं है, समाज सिर्फ आर्थिक समाज नहीं है। सामाजिक परिवर्तन के लिए समाज के सभी आयामों में परिवर्तन जरूरी है।

आयोजन के मुख्य संरक्षक दर्शन परिषद्, बिहार के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. बी. एन. ओझा ने कहा कि सामाजिक परिवर्तन और राष्ट्र निर्माण एक बड़ा चुनौतीपूर्ण प्रश्न है। इसमें युवाओं की बहुत बड़ी भूमिका है। युवा का अर्थ है नए विचार, ऊर्जा, शक्ति तथा साहस। युवाओं में बड़े-बड़े अन्याय को चुनौती देने का साहस तथा समाज एवं राष्ट्र में परिवर्तन करने की शक्ति भी होती है। वह किसी भी देश एवं समाज की रीढ़ होता है।दर्शन परिषद्, बिहार के महामंत्री डॉ. श्यामल किशोर ने कहा कि श्रेष्ठ व्यक्ति से श्रेष्ठ परिवार, श्रेष्ठ परिवार से श्रेष्ठ समाज और श्रेष्ठ समाज से श्रेष्ठ राष्ट्र निर्मित होता है। राष्ट्र के निर्माण में व्यक्ति आधारभूत तत्व होता है।

हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय, हरियाणा के डॉ. दिनेश चहल ने‌ कहा कि सामाजिक परिवर्तन एवं राष्ट्र-निर्माण युवाओं के द्वारा ही होगा। हमें भगत सिंह, सुखदेव आदि के चरित्र को अपनाना होगा, तभी हम विश्व गुरु बन सकते हैं।

दर्शनशास्त्र विभाग, पटना विश्वविद्यालय, पटना के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. पूनम सिंह ने कहा कि समाज व्यक्तियों का समूह है। व्यक्ति एवं समाज एक दूसरे के पूरक है।

उन्होंने कहा कि  परिवर्तन सत्य है, शाश्वत है। यह प्रकृति का नियम है। प्रकृति परिवर्तनशील है, तो मानव समाज इस विशाल प्रकृति का ही एक अंग है। अतः यहां भी प्रतिक्षण प्रतिपल परिवर्तन होते ही रहेंगे और होते ही रहते हैं।

कार्यक्रम में अंबेडर विचार एवं समाज कार्य विभाग, टीएमबीयू, भागलपुर के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. विलक्षण रविदास, गोरखपुर के प्रोफेसर डॉ. द्वारिकानाथ, दरभंगा के प्रोफेसर डॉ. जितेन्द्र नारायण और बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय मधेपुरा शिक्षाशास्त्र विभाग के प्रोफेसर इंचार्ज एवं बीएनमुस्टा के महासचिव प्रोफेसर डॉ. नरेश कुमार ने भी अपने विचार व्यक्त किया।

प्रधानाचार्य डाॅ. के. पी. यादव ने अतिथियों का स्वागत किया। संचालन जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर और एमएलटी कालेज, सहरसा के डाॅ. आनंद मोहन झा ने किया। धन्यवाद ज्ञापन एनएसएस समन्वयक डाॅ. अभय कुमार ने किया।

कार्यक्रम की शुरुआत असिस्टेंट प्रोफेसर खुशबू शुक्ला द्वारा प्रस्तुत मंगलाचरण के साथ हुई। इस अवसर पर असिस्टेंट प्रोफेसर डाॅ. रोहिणी, डाॅ. स्वर्णमणि, सीनेटर रंजन कुमार, शोधार्थी शोधार्थी सारंग तनय, सौरभ कुमार, अमरेश कुमार आमर, विवेकानंद, मणीष कुमार, सौरभ कुमार चौहान, गौरव कुमार सिंह, बिमल कुमार, संतोष कुमार आदि उपस्थित थे।