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भारतीय राष्ट्रबोध में अंतर्निहित है वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना : राज्यपाल

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*माननीय राज्यपाल ने किया विजयश्री स्मृति व्याख्यानमाला का उद्घाटन*
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भारतीय राष्ट्रबोध में अंतर्निहित है वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना : राज्यपाल

भारतीय आध्यात्मिक चिंतन में संपूर्ण चराचर जगत में एकत्व का आदर्श प्रस्तुत किया गया है। हमारी मान्यता है कि एक ही परमात्मा सभी मनुष्यों, मनुष्येतर प्राणियों एवं चराचर जगत में आत्मा के रूप में विद्यमान है। इसलिए हमारी आध्यात्मिकता लोगों के बीच किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं करती है।

यह बात बिहार के राज्यपाल राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खां ने कही। वे 27 फरवरी, 2025 (गुरुवार) को पटना विश्वविद्यालय, पटना के ऐतिहासिक जयप्रकाश नारायण अनुषद भवन में प्रो. विजयश्री की स्मृति में 21वाँ प्रो. (डॉ.) विजयश्री स्मृति व्याख्यानमाला में उद्घाटनकर्ता सह मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। राष्ट्रबोध विषयक इस व्याख्यानमाला का आयोजन भारत विकास विकलांग न्यास के सेवा एवं संस्कार प्रकोष्ठ, पटना तथा दर्शनशास्त्र विभाग, पटना विश्वविद्यालय, पटना के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।

राज्यपाल ने कहा कि भारतीय संस्कृति सदियों पुरानी है। हमारे सांस्कृतिक राष्ट्रबोध में वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना अंतर्निहित है। हम भारत को इसलिए सशक्त बनाना चाहते हैं, ताकि वह आवश्यकता पड़ने पर संसार के कल्याण हेतु अपना योगदान दे सके।

*मनवबोध है भारतबोध*
इस अवसर पर मुख्य वक्ता दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली के प्रो. सुधीर सिंह ने कहा कि भारतबोध मनवबोध है। भारत पूरी दुनिया में धनबल एवं शैन्यबल के कारण नहीं, बल्कि सांस्कृतिक मूल्यों के लिए जाना जाता है। यह हमारी हजारों वर्षों की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है।

उन्होंने कहा कि भारतीय राष्ट्रबोध मानवीय मूल्यों पर आधारित है। हम मानवता आधारित सत्ता के माध्यम से ही वर्ष 2047 में विकसित भारत बना सकेंगे।

कार्यक्रम की अध्यक्षता न्यास के महासचिव प‌द्मश्री विमल जैन ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर जो शिक्षा दी जा रही है, वह राष्ट्रबोध के विपरित है। इसलिए भारत को सही मायने में भारत बनाने के लिए शिक्षा-व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन की जरूरत है।

आशीर्वचन देते हुए रामकृष्ण मिशन आश्रम, मुजफ्फरपुर के सचिव स्वामी भावात्मानंद ने कहा कि भारतीय राष्ट्रवाद धर्मतत्व या आत्मतत्व से अनुप्राणित है।

इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि पटना विश्वविद्यालय, पटना के कुलपति प्रो. अजय कुमार सिंह ने कहा कि भारत प्राचीन काल से ही एक राष्ट्र रहा है।‌‌ यहां के लोगों में शुरू से ही इस भूमि के प्रति प्रेम रहा है।

सम्मानित अतिथि मगध विश्वविद्यालय, बोधगया के कुलपति प्रो. एस. पी. शाही ने कहा कि राष्ट्रबोध ही राष्ट्र की आत्मा है। राष्ट्रबोध के बिना समाज एवं राष्ट्र मुर्दा है।

अतिथियों का स्वागत दर्शनशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रो. (डॉ) राजेश कुमार सिंह ने किया। संचालन असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. विजेता ने किया। दर्शन परिषद्, बिहार की कोषाध्यक्ष प्रो. वीणा कुमारी ने प्रो. विजयश्री का संक्षिप्त परिचय दिया। उन्होंने बताया कि सुप्रसिद्ध दार्शनिक प्रो. रमेशचंद्र सिन्हा की धर्मपत्नी प्रो. (डॉ.) विजयश्री पटना विश्वविद्यालय, पटना में दर्शनशास्त्र की विदुषी शिक्षिका थीं।आपने डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर से स्नातक, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी से स्नातकोत्तर तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज से डी. फिल्. (पीएचडी) की उपाधि प्राप्त की थी। छात्र जीवन में आपको सेन्टर ऑफ एडवान्स स्टडीज, बीएचयू द्वारा ‘नेशनल फेलोशिप’ प्रदान की गयी थी। ‘यूजीसी फेलोशिप’ के अन्तर्गत इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शोध कार्य किया।

प्रो. विजयश्री को अध्यापन कार्य के दौरान शोध-कार्य हेतु विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी), नई दिल्ली ने ‘शार्ट टर्म फेलोशिप’ तथा भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद (आईसीपीआर), नई दिल्ली ने ‘रेजीडेन्स फेलोशिप’ प्रदान की। आपने ‘विटगिंस्टाइन के वैश्लेषिक धर्म-दर्शन’ पर कार्य किया। विभिन्न शोध पत्रिकाओं में आपके अनेक स्तरीय लेख प्रकाशित हैं।‌ ‘महात्मा गाँधी का धर्म-दर्शन’, ‘आगमन तर्कशास्त्र’ एवं ‘ समकालीन भारतीय चिंतक’ आपकी प्रकाशित पुस्तकें हैं।

प्रो. विजयश्री ने अखिल भारतीय दर्शन-परिषद् की संयुक्त मंत्री के रूप में दर्शनशास्त्र के उन्नायन में महती भूमिका निभाई। प्रो. सिन्हा द्वारा आपकी स्मृति में लगातार 21 वर्षों से प्रो. (डॉ.) विजयश्री व्याख्यानमाला का आयोजन किया जा रहा है।

इसके पूर्व कार्यक्रम का उद्घाटन राज्यपाल सह कुलाधिपति श्री आरिफ मोहम्मद खां ने विधिवत दीप प्रज्ज्वलित कर किया। राज्यपाल एवं अन्य अतिथियों का अंगवस्त्रम्, पुष्पगुच्छ एवं स्मृतिचिह्न भेंटकर सम्मान किया गया।

इस अवसर पर भारत विकास विकलांग न्यास के चेयरमैन देशबंधु गुप्ता, नालंदा खुला विश्वविद्यालय, पटना के कुलपति प्रो. रविन्द्र कुमार, पटना विश्वविद्यालय, पटना के पूर्व कुलपति प्रो. के. सी. सिन्हा, मगध विश्वविद्यालय, बोधगया की पूर्व कुलपति प्रो. कुसुम कुमारी, बीएचयू, वाराणसी के प्रो. डी. एन. तिवारी, दर्शनशास्त्र विभाग, पटना विश्वविद्यालय की पूर्व अध्यक्ष प्रो. रत्ना चौधरी एवं सेवानिवृत्त प्राध्यापक प्रो. एन. पी. तिवारी, दर्शन परिषद्, बिहार की अध्यक्ष प्रो. पूनम सिंह, उपाध्यक्ष द्वय‌ प्रो. अभय कुमार सिंह एवं प्रो. शैलेश कुमार, महासचिव डॉ. श्यामल किशोर, संयुक्त सचिव द्वय प्रो. किस्मत कुमार सिंह एवं डॉ. सुधांशु शेखर, आरएसएस के क्षेत्र कार्यवाह डॉ मोहन सिंह, विद्यार्थी परिषद के पूर्व क्षेत्रीय संगठन मंत्री निखिल रंजन, प्रो. अमीता जायसवाल, डॉ. लक्ष्मी नारायण, डॉ. किरण कुमारी, डॉ. कुमकुम रानी, डॉ. जियुउल हसन, डॉ. मुकेश कुमार, डॉ. स्नेहलता कुसुम, डॉ. कीर्ति चौधरी, सत्यम पब्लिकेशन के प्रोपराइटर डॉ. नीरज प्रकाश, शोधार्थी सौरभ कुमार चौहान (मधेपुरा) सहित बड़ी संख्या में शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।

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मीडिया के सभी साथियों को बहुत-बहुत धन्यवाद युवा संसद से संबंधित विभिन्न कार्यक्रमों की रिपोर्ट प्रमुखता से प्रकाशित। मीडिया के सभी साथियों को बहुत-बहुत धन्यवाद। प्रो. बी. एस. झा, माननीय कुलपति, बीएनएमयू, मधेपुरा और प्रो. कैलाश प्रसाद यादव, प्रधानाचार्य, ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा के प्रति बहुत-बहुत आभार।

मीडिया के सभी साथियों को बहुत-बहुत धन्यवाद। कीर्ति कुम्भ (स्मरण एवं संवाद) कार्यक्रम की रिपोर्ट प्रमुखता से प्रकाशित। उद्घाटनकर्ता सह मुख्य अतिथि प्रो. बी. एस. झा, माननीय कुलपति, बीएनएमयू, मधेपुरा और मुख्य वक्ता प्रो. विनय कुमार चौधरी, पूर्व अध्यक्ष, मानविकी संकाय, बीएनएमयू, मधेपुरा के प्रति बहुत-बहुत आभार।