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कविता/ मैं लिखती हूँ/ डॉ. दीपा

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मैं लिखती हूँ वही,
जो मेरे हृदय में होता है।

मैं लिखती हूँ,
अपनी भावनाओं को,
आवाज़ देने के लिए।

मैं लिखती हूँ,
खुद के लिए,
किसी को झुठलाने के लिए नहीं।

मैं लिखती हूँ,
क्योंकि लिखना नियति है मेरी,
किसी को आजमाने के लिए नहीं।

मैं लिखती हूँ,
क्योंकि इसी में सुख है मेरा,
किसी प्रतिस्पर्धा में नहीं।

मैं लिखती हूँ,
अपने हृदय की वीणा को,
साधने के लिए,
किसी को खिन्न करने के लिए नहीं।

मैं लिखती हूँ,
आत्मविभोर होने के लिए,
किसी को रूष्ट करने के लिए नहीं!

डॉ. दीपा
सहायक प्राध्यापिका
दिल्ली विश्वविद्यालय

 

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