कविता/आखिर कहाँ हो तुम?/डॉ. दीपा

मेरे अंतर्मन में दबे,
मेरी यादों में बसे,
आखिर कहाँ हो तुम?

सुनो ना! जरा बतलाओ मुझको,
कुछ तो समझाओ मुझको,
आखिर कहाँ हो तुम?

क्यूं नींद अब आती नहीं,
क्यूं चैन मैं एकपल भी पाती नहीं,
बतलाओ ना!
आखिर कहाँ हो तुम?

आहटें तो तुम्हारी पल-पल हैं आती,
पर मैं कुछ जान ना पाती,
तुम्ही बतलाओ ना!
आखिर कहाँ हो तुम?

मेरे माझी मुझे किनारे तक पहुँचा,
मुझे नहीं है मंज़िल का पता,
बतलाओ ना!
आखिर कहाँ हो तुम?

तुम्हारी आँखों में सुंदर सपना बन,
मैं मुस्कुराऊंगी,
पर जरा बतलाओ ना!
आखिर कहाँ हो तुम?

तुमसे मिलने की चाहत में,
मैं सुधबुध भूल बैठी हूँ,
बताओ ना!
आखिर कहाँ हो तुम?

मेरे दिल-ओ-दिमाग़ में,
जो तस्वीर बस्ती है,
मैं उसको पूजना चाहती हूँ,
बताओ ना!
आखिर कहाँ हो तुम?

मेरे गीतों की लय और ताल हो तुम,
मैं उन्हें तुम संग सजाना चाहती हूँ,
बताओ ना!
आखिर कहाँ हो तुम?

बहुत उदास कर जाती हैं,
तेरी यादें इस दिल को,
अब तो मिल जाओ तुम एकबार,
जहाँ भी हो तुम,
दे दो अपना पता अब तो,
आखिर कहाँ हो तुम?

डॉ. दीपा
सहायक प्राध्यापिका
दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली