Dharohar। उद्धारक की बाट जोह रहा मुगलकालीन ऐतिहासिक महल

बिहार राज्यान्तर्गत खगड़िया जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर परबत्ता प्रखंड के सौढ दक्षिणी पंचायत में एक गाँव है ‘भरतखंड’। यहाँ एक मुगलकालीन ऐतिहासिक महल है, जो “52 कोठरी, 53 द्वार” महल के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें 52 कमरे और 53 दरवाजे हैं। यह महल 5 बीघा, 5 कट्ठा, 5 धुर और 5 धुरकी के क्षेत्रफल में बना हुआ है। इस ऐतिहासिक किलेनुमा महल का निर्माण 17वीं शताब्दी में मध्य प्रदेश के सोलंकी वंश के राजा बैरम सिंह ने मुगलकालीन कारीगर मोहम्मद बरकाती मियां के हाथों करवाया था।मालूम हो कि मुंगेर का प्रसिद्ध किला भी कारीगर मोहम्मद बरकाती मियां ने ही बनाया था। इस महल के प्रांगण में चमत्कारी मंडप एवं सुरंग का भी निर्माण कराया गया था। निर्माण में राख, चूना और सुरखी का उपयोग किया गया था। इस महल को बनाने में एक से दो फिट तक के 51 प्रकार के ईटों का प्रयोग किया गया था।
इस महल की भव्यता के कई किस्से आज भी मशहूर हैं। महल की भव्यता और अनोखी कलाकृति को देखकर लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं। इस महल की तुलना जयपुर के “हवा महल” से की जाती है। स्थानीय लोग इसे बोलचाल की भाषा में ‘भरतखंड का पक्का’ भी कहते हैं। चमत्कारी मंडप के चारों खंभे पर चोट करने पर अलग-अलग तरह की मनमोहक आवाज सुनाई देती हैं, जो अभी भी लोग महसूस करते हैं। महल के प्रांगण में रानी के लिए स्नान करने का तालाब, महल से मंदिर तक जाने के लिए सुरंग, दीवारों पर की गई सुन्दर चित्रकारी और अद्वितीय नक्काशी है।
इस महल को’भूलभुलैया’ के नाम से भी जाना जाता है। महल में अंदर जाकर बाहर निकलने पर यह पता नहीं चलता है कि किस द्वार से प्रवेश किए और किस द्वार से निकले। अभी भी दूर-दूूर से लोग महल को देखने आते हैं। महल के नायाब नक्काशी दृश्य को देखकर अविस्मरणीय सुखद अनुभूति होती है।
पूर्व में यहां महल द्वार पर एक शिलापट्ट भी था, जिसमें निर्माण तिथि अंकित होने के साथ-साथ कलाकारों के द्वारा महल के बारे में सारी बातें अंकित की गई थीं। इसमें इस महल की पौराणिकता का प्रमाण मिलता था। कलाकारों द्वारा बनाए गए नक्शे एवं चित्र आज भी लोगों को प्राचीन कला से रूबरू कराते हैं।
इस महल के कुछ ही दूरी पर गंगा नदी, शिव मंदिर और प्राचीन दुर्गा मंदिर भी है। बताया जाता है कि प्राचीन काल में भरतखण्ड गाँव का नाम बटखण्ड था। यहाँ बौद्ध भिक्षु आकर तप और साधना करते थे। लेकिन दुख की बात है कि कई अवशेष अब खंडहर में तब्दील होकर जमींदोज होने के कगार पर आ गए हैं। ऐतिहासिक महत्व की दृष्टि से प्रसिद्ध यह महल उद्धारक की बाट जोह रहा है। इस धरोहर को संरक्षित करने और पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए कई बार अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों द्वारा पर्यटन विभाग को पत्र लिखा गया। महल निरीक्षण के लिए कई बार इतिहासकार और पुरातत्ववेत्ता आए। लेकिन शासन-प्रशासन की उपेक्षा के कारण अब तक न तो इस परिसर को पर्यटक क्षेत्र ही घोषित किया गया और न ही इसके विकास एवं संरक्षण के लिए कोई कदम उठाया गया है। इससे आमलोगों में क्षोभ है। इस धरोहर को नई पहचान मिलने की सदियों पुरानी आस भरतखण्ड गाँव सहित जिलेवासियों को है।भरतखण्ड ग्रामवासी डॉ. चण्डिका प्रसाद मिश्र, प्रवीण आनंद, गुडडू आचार्या, मिट्ठू मिश्रा, सुमित चौधरी, निर्भय मिश्रा, लड्डू बाबू, उमेश यादव, सोनू यादव, संजय मंडल आदि ने भरतखंड की इस ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण एवं संवर्धन की माँग की है। भारतीय जनता पार्टी के खगडिया जिला उपाध्यक्ष सह विधान पार्षद प्रतिनिधि श्री अरुण कुमार शर्मा उर्फ लड्डू शर्मा ने सांसद को वर्ष 2017 में एक पत्र लिखकर इस ऐतिहासिक भरतखण्ड के महल का जीर्णोद्धार की मांग किये थे। वर्ष 2017 में खगड़िया सांसद चौधरी महबूब अली कैसर जी ने इस ऐतिहासिक धरोहर को बचाने के लिए बिहार सरकार के पर्यटन विभाग के मंत्री श्री प्रमोद कुमार जी को पत्र लिखकर जीर्णोद्धार की मांग किया था।
सांसद चौधरी महबूब अली कैसर जी का कहना है कि इस धरोहर के जीर्णोद्धार के लिए बिहार सरकार, केंद्र सरकार और पर्यटन विभाग को पत्र लिखा गया है। उम्मीद है क्षेत्रवासियों को जल्द ही सुखद समाचार प्राप्त होगा। साहित्यकार डॉ. कामाख्या चरण मिश्र जी कहते हैं कि यह महल खगड़िया ही नहीं, बिहार के लिये गौरवशाली अतीत है। बिहार राज्य के ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण धरोहरों में से एक है। दुर्भाग्यवश वर्तमान समय में उपेक्षित है। इस महल को संरक्षित किये जाने की आवश्यकता है जिससे आने वाली पीढ़ी भी अपने क्षेत्र के इतिहास के बारें में अवगत हो सके। वर्ष 2005 में मैंने पोस्टकार्ड के माध्यम से कई बार विभिन्न समाचार पत्रों में लिखा था।
रिपोर्ट- मारूति नंदन मिश्र,                   नयागाँव, खगड़िया, बिहार