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Jannayak परिवर्तन की भूमि है बिहार : मनोज कुमार

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परिवर्तन की भूमि है बिहार : मनोज कुमार

बिहार परिवर्तन की भूमि है। इसने शुरू से ही दुनिया को नई दिशा दिखाई है। अभी भी बिहार से ही दुनिया को आशा है। भटकी हुई दुनिया को बिहार ही नया रास्ता दिखा सकता है।

यह बात महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व कुलपति डॉ. मनोज कुमार ने कही। वे मंगलवार को जननायक कर्पूरी ठाकुर की सौवीं जयंती पर बिहार का नवनिर्माण का सवाल और जननायक के सपने विषयक व्याख्यान दे रहे थे।

कार्यक्रम का आयोजन राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) एवं राष्ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी) के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।

उन्होंने कहा कि आज जनता को मुद्दों से भटकने का प्रयास किया जा रहा है और कर्पूरी जैसे असली नायकों को गौण किया जा रहा है। ऐसे में हमें गांधी एवं कर्पूरी के अंतिम व्यक्ति को केंद्र में रखकर बिहार के नवनिर्माण की प्राथमिकताओं को तय करना होगा।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मुंगेर विश्वविद्यालय, मुंगेर में मानविकी संकायाध्यक्ष डॉ. अजीत कुमार ठाकुर ने कहा कि विचार परिवर्तन समाज परिवर्तन की पहली शर्त है।

अतिथियों का स्वागत दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. सुधांशु शेखर ने की।

संचालन शोधार्थी सारंग तनय ने किया। धन्यवाद ज्ञापन माया अध्यक्ष राहुल कुमार ने की।

पल्लवी राय एवं श्याम प्रिया ने प्रश्न पुछकर चर्चा को जीवंत बनाया।

दर्शन परिषद, बिहार डॉ राजीव रंजन, काजल सिंह, माधव कुमार, सारंग तनय, सौरव कुमार चौहान, प्रमोद कुमार यादव, राहुल यादव, राजेश कुमार, रोजी कुमारी, नीरज कुमार, दिल कुमार दिल आदि उपस्थित थे।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

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भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।