Search
Close this search box.

BNMU पराक्रम दिवस समारोह। याद किए गए सुभाषचन्द्र बोस। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में है सुभाषचंद्र बोस का विशिष्ट स्थान : प्रधानाचार्य

👇खबर सुनने के लिए प्ले बटन दबाएं

पराक्रम दिवस समारोह

याद किए गए सुभाषचन्द्र बोस
——
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में है सुभाषचंद्र बोस का विशिष्ट स्थान : प्रधानाचार्य

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में हमारे सैकड़ों महापुरुषों ने अपने-अपने ढंग से योगदान दिया है। इसमें नेताजी सुभाषचंद्र बोस का योगदान विशिष्ट है और यह भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है।।

यह बात टी. पी. कालेज, मधेपुरा के प्रधानाचार्य डॉ. कैलाश प्रसाद यादव ने कही। वे सोमवार को सुभाषचंद्र बोस जयंती सह पराक्रम दिवस के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। यह कार्यक्रम राष्ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी), राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित हुआ।

उन्होंने कहा कि सुभाषचन्द्र ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई गति दी। उनके द्वारा दिया गया नारा हम तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा आज भी देश में नया जोश भर देता है। इतिहास में स जीवन हम सबों के लिए प्रेरणादायक है।

राष्ट्रवादी थे सुभाष

समारोह के विशिष्ट अतिथि अर्थपाल मिथिलेश कुमार अरिमर्दन ने कहा कि सुभाषचन्द्र बोस सच्चे राष्ट्रवादी थे। उनके लिए देश प्रथम एवं सर्वोपरि था। उन्होंने देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। हमें देश के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों को आगे बढ़ाने की जरूरत है।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए जनसंपर्क पदाधिकारी डॉ. सुधांशु शेखर ने कहा कि सुभाषचन्द्र बोस एक महान विचारक, वीर योद्धा एवं लोकप्रिय जननायक थे। उनका पराक्रम, त्याग एवं बलिदान हम सबों के लिए प्रेरणादायी है।

उन्होंने कहा कि सुभाष पूरे देश में काफी लोकप्रिय थे। उनकी लोकप्रियता की ही बानगी थी कि महात्मा गांधी के न चाहने के बावजूद वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हो गए।

उन्होंने कहा कि सुभाषचन्द्र बोस और गांधी के बीच वैचारिक मतभेद था। इसके बावजूद दोनों एक-दूसरे का सम्मान करते थे। सुभाषचंद्र बोस ने ही सबसे गांधी को राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया और गांधी ने भी सार्वजनिक रूप से सुभाष की देशभक्ति को अतुलनीय बताया।

धन्यवाद ज्ञापन करते हुए एनसीसी पदाधिकारी
लेफ्टिनेंट गुड्डू कुमार ने कहा कि आजादी की लड़ाई में सैकड़ों महापुरुषों ने योगदान दिया है। इन महापुरुषों में सुभाषचन्द्र बोस अद्वितीय हैं। उनके बगैर आजादी का इतिहास अधूरा है। उन्होंने कहा कि भारतीय सेना पर आज भी सुभाषचन्द्र बोस के आजाद‌‌ हिंद फौज की छाप है। हमारे कई बटालियन का नाम उससे संबंधित है।

इसके पूर्व कार्यक्रम की शुरुआत में सभी अतिथियों एवं विद्यार्थियों ने सुभाषचन्द्र बोस के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पांजलि की।

इस अवसर पर मेघा कुमारी, अंजनी कुमारी, ममता कुमारी, प्रिया, पल्लवी, बादल, अंशु कुमारी, अनु प्रिया, सत्यम कुमार, मोहन कुमार, कैलाश कुमार, रुस्तम कुमार, सालेंद्र कुमार, अंकित कुमार, शिव राज कुमार, सत्यप्रकाश कुमार, ललन कुमार, गौरव कुमार, आंनद कुमार, पप्पू कुमार, अभिमन्यु कुमार, नीतीश कुमार, अमरदीप कुमार, गौरव कुमार, बेचैन कुमार, मोनू कुमार रणवीर कुमार आदि उपस्थित थे।

टी. पी. कालेज, मधेपुरा के शिक्षाशास्त्र विभाग में एम. एड. प्रशिक्षु के छात्रों के बीच सुभाषचन्द्र बस के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से संबंधित भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इसमें पूजा कुमारी, विद्यासागर मिजा एवं मणिप्रभा रानी ने क्रमशः प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान प्राप्त किया। इसमें ज्योति कुमारी, सुरभी स्नेहल, रश्मी कुमारी, प्रतिभा
कुमारी, स्नेहलता कुमारी, रिंकी कुमारी एवं सोमा कुमारी को प्रोत्साहन पुरस्कार दिया गया।

इस अवसर पर पर्यवेक्षक डॉ. शैलेश यादव, प्रधानाचार्य डॉ. कैलाश
प्रसाद यादव, अर्थपाल डॉ. मिथिलेश कुमार अरिमर्दन, डॉ. अमित कुमार, डॉ. ललन कुमार, कुंदन कुमार सिंह, डॉ. कुंजन लाल पटेल, डॉ. विनित राज आदि उपस्थित थे।

READ MORE

बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

[the_ad id="32069"]

READ MORE

बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।