NMM ऐतिहासिक संपदा है पांडुलिपि : डॉ. श्रीधर बारीक

*ऐतिहासिक संपदा है पांडुलिपि : डॉ. श्रीधर बारीक*

पांडुलिपि को हस्तप्रति, हस्तलिपि, हस्तलेख, पांडुलेख, लिपिग्रंथ, मातृकाग्रंथ, मसौदा एवं। मेनुस्क्रिप्ट भी कहते हैं। मेनुस्क्रिप्ट लैटिन (ग्रीस) शब्द मोनिटा से बना है, जो रोमण पौराणिक कथाओं में धन की देवी (लक्ष्मी) का नाम है। जाहिर है कि जिसके पास पांडुलिपियां हैं, उसके पास लक्ष्मी का वास होता है।

यह बात मिशन के समन्वयक (कार्यशाला) डॉ. श्रीधर बारीक ने कही। वे तीस दिवसीय उच्चस्तरीय राष्ट्रीय कार्यशाला के तीसरे दिन शुक्रवार को पांडुलिपि के महत्व पर प्रकाश डाल रहे थे।

*हस्तलिखित ऐतिहासिक दस्तावेज है पांडुलिपि*

उन्होंने बताया कि पांडुलिपि एक हस्तलिखित ऐतिहासिक दस्तावेज है। यह किसी एक व्यक्ति या अनेक व्यक्तियों द्वारा लिखी हो सकती है। लेकिन प्रिंट किया हुआ या किसी अन्य विधि से किसी दूसरे दस्तावेज से नकल करके तैयार सामग्री को पांडुलिपि नहीं कहते हैं। प्रारंभ में पांडुलिपियों को चर्मपत्र पर तैयार किया जाता था। फिर ताड़ के पत्ते एवं कागज का उपयोग शुरू हुआ।

*पांडुलिपि का संरक्षण जरूरी*
उन्होंने बताया कि पांडुलिपियां हमारी ऐतिहासिक संपदा के साथ-साथ बौद्धिक विरासत भी है। पांडुलिपियों का न केवल ऐतिहासिक वरन्, सामाजिक, आर्थिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्व भी है।

उन्होंने कहा कि पांडुलिपियों का संरक्षण एवं संवर्धन हमारा युगधर्म है। जैसे हम आपनी धन-संपत्ति को चोरों एवं लुटेरों से बचाते हैं, वैसे ही हमें अपने पांडुलिपियों को भी नष्ट होने से बचाना चाहिए।

*रासायनों के प्रयोग में सावधानी आवश्यक*
उन्होंने बताया कि आधुनिक युग में पांडुलिपियों के संरक्षण के रासायनिक विधि काफी प्रचलित है। इस विधि में तीन तरह के विष का प्रयोग होता है। गंध विष के गंध से कीड़े संरक्षित वस्तु के नजदीक नहीं आते हैं और स्पर्श विष के संसर्ग में आने से एवं भोज्य विष खाने से कीड़े मर जाते हैं। लेकिन कालांतर में कीड़े अपनी प्रतिरोधक शक्ति बढ़ा लेते हैं और फिर उन पर रासायनों का प्रयोग निष्फल होने लगता है। जहरीले रासायनों का संरक्षित पांडुलिपियों एवं उससे जुड़े मनुष्यों पर भी कुप्रभाव पड़ता है। अतः पांडुलिपि संरक्षण हेतु रासायनों के प्रयोग में सावधानी आवश्यक है।

*सस्ती एवं सुरक्षित है प्राकृतिक विधियां*

उन्होंने बताया कि उन्होंने बताया कि भारत में पांडुलिपि-संरक्षण की कई प्राकृतिक विधियां हैं, जो काफी सस्ती एवं सुरक्षित हैं। इनके अंतर्गत लौंग, दालचीनी, काली मिर्च, सूखा अदरक, शरीफा के बीज, नीम, तंबाकू के सूखे पत्ते, कपूर आदि का विभिन्न रूपों में प्रयोग किया जाता है।

इस अवसर पर केंद्रीय पुस्तकालय के प्रोफेसर इंचार्ज डॉ. अशोक कुमार, उप कुलसचिव अकादमिक डॉ. सुधांशु शेखर, पृथ्वीराज यदुवंशी, सिड्डु कुमार, डॉ. राजीव रंजन, अंजली कुमारी, त्रिलोकनाथ झा, सौरभ कुमार चौहान, अमोल यादव, कपिलदेव यादव, शंकर कुमार सिंह, अरविंद विश्वास, रश्मि कुमारी आदि उपस्थित थे।

*होंगे कुल एक सौ बीस व्याख्यान*
आयोजन सचिव डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि कार्यशाला में पांडुलिपि विज्ञान एवं लिपि विज्ञान से संबंधित कुल एक सौ बीस व्याख्यान निर्धारित हैं। इसमें नई दिल्ली, इलाहाबाद, वाराणसी, पटना, दरभंगा, भागलपुर, मोतिहारी आदि से आए विषय विशेषज्ञ विभिन्न आयामों पर प्रकाश डालेंगे। भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के भी कुछ विशेषज्ञ भी व्याख्यान देंगे।