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कविता/ भूल जाओ तकलीफ़

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जो तुमने दी
भूल जाओ तकलीफ़
जो तुम्हें मिली
पानी बहता है, बहता जाता है
झरना छलकता है
और
ओझल हो जाता है।
मैं मिट्टी मे उपजा
तुम्हारा छात्र होना चाहता था
और खोजना स्रोत ओलम्पीयन हृदय
ठण्डा टार्च सरसराते खम्भे,
काली रात में
कभी ना छूटने वाली वर्षा के बाद
कीचङ सने पांव के चिह्न
तुम मेरी आस्था और निराशा का आधार तल हो
जिसमें हजारों परिछेदिका समाहित हैं।
नदियों का नाम अभी तुम्हारे पास बचे हैं।
कितने समय तक बच पाएंगी नदियाँ।
तुम्हारे खेत बंज़र हैं।
हवा सूखी हैं।
सङक सूनसान है।
पेङ ठूठ हो गए हैं।
नल पानी को तरस गया है।
एक डरावने आवाज़ के बीच
तुम दहलीज पर खङे हो ?
बिल्कुल ख़ामोश
जैसे लेट आने पर खङे होते हैं
बच्चे गेट पर, गणित की कक्षा में ।
ओ नदी —
मुझे सिखाओ आग्रह और हठ
ताकि मैं आखिरी घङी में पात्रता रखूँ
उस विशाल डेल्टा की छाया में समाप्त होने की
जहाँ आदि और अन्त के पवित्र त्रिभुज बनते हैं।
आशीष कुमार झा
उर्फ आशीष माधव
सरस्वती विद्या मंदिर (विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षण संस्थान), रोसड़ा, समस्तीपुर, बिहार।
जन्म- 3 सितम्बर, 1988
पिता – श्री बिजय झा
माता – संयुक्ता देवी
शिक्षा-
मैट्रिक – श्रीकृष्ण उच्च विद्यालय, नयागांव, खगड़िया, बिहार
स्नातक- टी. एन. बी. कॉलेज, भागलपुर, बिहार
एम. ए. (भूगोल)- तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर, बिहार से
बी. एड., पीएचडी में अध्ययनरत
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मे आलेख एवं कविताएं प्रकाशित।
निवासी –
ग्राम- मुरादपुर, पंचायत- माधवपुर, थाना- परबत्ता, जिला – खगड़िया (बिहार)

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