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Film सुशांत सिंह राजपूत का संदिग्धावस्था में निधन। बिहार में शोक की लहर। बीएनएमयू के कुलपति ने जताया शोक। ##sushant Singh Rajpoot @ Bollywood

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आज 14 जून, 2020 को बॉलीवुड से बिहार के लिए एक बेहद दुखद खबर आई है। मशहूर एक्टर सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) अब हमारे बीच नहीं रहे। बताया जा रहा है कि उनका बांद्रा (मुंबई) में अपने घर में संदिग्धावस्था में निधन हो गया। नौकर ने फोन कर पुलिस को जानकारी दी।

सुशांत का जन्म जनवरी 1986 में बिहार के पूर्णिया जिले के महीदा में हुआ था।  ‘किस देश में है मेरा दिल’ नाम के डेली सोप में काम किया। एकता कपूर के Zee TV पर प्रसारित हुए धारावाहिक ‘पवित्र रिश्ता’ से पहचान मिली।
फिल्मों में  ‘काय पो छे!’ से कदम रखा. इसमें  मुख्य अभिनेता थे।फिर ‘शुद्ध देसी रोमांस’ में वाणी कपूर और परिणीति चोपड़ा के साथ दिखे थे। 

 

क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी की बायोपिक में भी उनका किरदार निभाया था। नीरज पांडे द्वारा निर्देशित इस फिल्म ने सौ करोड़ का कलेक्शन किया था।

फिल्म सोनचिड़िया और छिछोरे जैसी फिल्मों में नजर आ चुके थे। उनकी आखिरी फिल्म केदारनाथ थी, जिसमें वे सारा अली खान के साथ दिखे थे। अपकमिंग फिल्म किजी और मैनी थी। इस फिल्म का कुछ समय पहले फर्स्ट लुक भी रिलीज हुआ था। काय पो छे, शुद्ध देसी रोमांस, पीके, डिटेक्टिव व्योमकेश बख्शी, एमएस धोनी: अनटोल्ड स्टोरी, राब्ता, वेल्कम टू न्यू यॉर्क, केदारनाथ, सोनचिड़िया, छिछोरे, ड्राइव और दिल बेचारा उनकी प्रमुख फिल्में हैं।

  

अपने चचेरे भाई छातापुर के विधायक नीरज कुमार सिंह बबलू और भाभी बिहार विधान परिषद् की नूतन सिंह हैं। 

 

 

 

उन्होंने कुल देवी-देवता, ग्राम देवता और ऐतिहासिक बाबा बरूनेशवर मंदिर में पूजा अर्चना की थी।

 

 

सुशांत सिंह राजपूत 17 सालों के बाद अपने पैतृक गांव बड़हरा कोठी प्रखंड के मलडीहा गांव गए थे।

 

 

सुशांत सिंह राजपूत चौथम प्रखंड के बोरने गांव पहुंचे थे, यहीं उनका ननिहाल है। 

उस दौरान सुशांत सिंह राजपूत नाव के सहारे ननिहाल पहुंचे थे।

 

ननिहाल बोरने में प्रसिद्ध मनसा देवी मंदिर है। यहीं पर उनका मुंडन हुआ था।

 

बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के कुलपति प्रोफेसर डाॅ. ज्ञानंजय द्विवेदी ने सुशांत सिंह राजपूत के असमय निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। उन्होंने कहा है कि यह पूरे बिहार के लिए एक बेहद दुखद खबर है। बिहार को ऐसे प्रतिभावान अभिनेता की जरूरत थी। उन्होंने बताया कि कुछ महीनों पूर्व जब सुशांत बिहार आए थे, तो उन्होंने अखबारों में भी उनके बारे में पढ़ा था। उन्हें यह विश्वास नहीं हो रहा है कि सुशांत अब हमारे बीच नहीं रहे। कुलपति ने सुशांत की आत्मा की शांति हेतु प्रार्थना की है। साथ ही ईश्वर से यह भी प्रार्थना की है कि वे उनके परिजनों और चाहने वालों को इस असह्य दुख को सहन करने की शक्ति प्रदान करे।

सिंडिकेट सदस्य डाॅ. जवाहर पासवान ने सुशांत के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। उन्होंने बताया कि उनकी अक्सर सुशांत के भाई विधायक नीरज कुमार सिंह बबलू से सुशांत के बारे में चर्चा होती थी। उन्हें सुशांत से काफी आशाएँ थीं। उनके असमय निधन से पूरे बिहार और विशेषकर कोसी एवं सीमांचल क्षेत्र को अपूर्णीय क्षति हुई है।

जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर ने बताया कि उन्होंने लाॅकडाउन में क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी की बायोपिक देखी। इसमें सुशांत सिंह ने धोनी की भूमिका में काफी प्रभावित किया था।

सीनेटर रंजन यादव ने कहा कि सुशांत सिंह राजपूत ने बाॅलीवुड में बिहार का परचम लहराया। उनके असमय निधन से बिहार ने अपना एक होनहार लाल खो दिया है। इससे पूरा बिहार और विशेषकर युवा वर्ग मर्माहत है। 

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

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भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।