Seminar। शिक्षा, समाज एवं शांति। डॉ. रोहिणी बाई एस

शिक्षा उसका अर्थ स्वरूप तथा महत्व : शिक्षा के आदान-प्रदान की प्रक्रिया अतीत काल से चली आ रही है। वास्तव में शिक्षा के अभाव में मानव की प्रगती निश्चेष्टता हो जाती है और और उसमें तथा अन्य प्राणियों में बहुत थोड़ा अन्तर रह जाता है। इस प्रकार की शिक्षा के मानव के लिए आवश्यक ही नहीं ,वरन उसके जीवन की आधारशीला माना गया है।

शिक्षा का अर्थ(Meaning of education) : एजुकेशन का शाब्दिक अर्थ अंग्रेज़ी भाषा में Education शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द Education से हुई है। Education शब्द का निर्माण E और catum से हुआ है।E का अर्थ है अन्त और Catum का अर्थ है आगे बढ़ना। इस प्रकार शाब्दिक अर्थ में शिक्षा बालक की आन्तरिक शक्तियों या प्रतिमा को बाहर निकालने की प्रक्रिया है,न कि ऊपर से ज्ञान को लादना।

शिक्षा का व्यापक अर्थ : व्यापक अर्थ में शिक्षा जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया है। जीवन में प्रत्येक क्षण में व्यक्ति कुछ न कुछ सीखता रहता है। व्यक्ति के संपर्क में आनेवाले विभिन्न व्यक्ति उसे कुछ न कुछ शिक्षा या अनुभव प प्रदान करते रहते हैं।इन अनुभवों के द्वारा ही धीरे धीरे व्यक्ति विभिन्न प्रकार के भौतिक, सामाजिकऔर आध्यात्मिक वातावरण से सामंजस्य स्थापित कर लेता है।

शिक्षा का संकुचित अर्थ : संकुचित अर्थ में शिक्षा से अभिप्राय शिक्षा संस्थाओं में थोड़े वर्षों की होने वाली पढ़ाई या प्रशिक्षण से है। इसमें किसी निश्चित व्यक्तियों द्वारा कुछ निश्चित साधनों में पाठ्यक्रम की शिक्षा दी जाती है।इस प्रकार शिक्षा अध्यापन या निदेर्श या औपचारिक शिक्षा के रूप में प्रकट होती है।

शिक्षा का विश्लेषणात्मक अर्थ : शिक्षा के विश्लेषणात्मक अर्थ को स्पष्ट करने के लिए उसके अर्थ सम्बन्धी विभिन्न तत्वों पर विचार करना चाहिए। शिक्षा बालक की जन्मजात शक्तियों के विकास से संबंधित है। शिक्षा एक गतिशील प्रक्रिया है। शिक्षा एक दि्मुखी प्रक्रिया है।

समाज का अर्थ : मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। अतः वह अपने को समाज से प्रुथक नहीं रख सकता। उसके अस्तित्व के लिए समाज अनिवार्य है।
शिक्षा और समाज का सम्बन्ध : शिक्षा का स्वरूप, समाज के स्वरूप के अनुरूप होता है। शिक्षा समाज की आवश्यकताओं, आकांक्षाओं, मान्यताओं, मांगों आदि के अनुरूप होती है।

1. प्राचीन योरोपीय समाज में शिक्षा का स्वरूप धार्मिक था।

2. मध्यकालीन योरोपीय समाज में छात्रों की जिज्ञासा को सन्तुष्ट नहीं किया जाता है।

3. आधुनिक योरोपीय समाज में तर्क पर आधारित शिक्षा प्रदान की जाती है।

4. लोकतंत्रीय समाज में बालक को अपनी रुचि के अनुसार शिक्षा ग्रहण करने का अवसर प्रदान किया जाता है।

5. प्राचीन भारतीय समाज मे जाती तथा कर्म के आधार पर शिक्षा प्रदान की
जाती थी।

6. मध्यकालीन भारतीय समाज मे शासक धर्म, संस्कृति एवं विचारों के आधार पर शिक्षा प्रदान की जाती थी।

7. आधुनिक भारतीय समाज में किसी भी जाति का व्यक्ति किसी भी प्रकार की शिक्षा प्राप्त कर सकता है।

शिक्षा और समाज के सम्बन्ध स्पष्ट करते हुए बी़ एच बोंड ने लिखा है, “समाज और शिक्षा का एक दूसरे से पारस्परिक कारण और परिणाम का सम्बन्ध है। किसी भी समाज का सवरै उसकी शिक्षा प्रणाली के स्वरूप को निर्धारित करता है और इस प्रणाली का स्वरूप, समाज को निर्धारित करता है।

शिक्षा का समाज पर प्रभाव : शिक्षा का समाज पर बड़ा प्रभाव पड़ता है शिक्षा समाज को निम्नप्रकार से प्रभावित करती हैं।

1. प्रत्येक समाज के अपने रीति रिवाज, परमपराएऐ, नैतिकता, विश्वास, धर्म, नियम, साहित्य आदि होते हैं। तिनकों उस समाज ने अति प्राचीन काल में लेकर आज तक अर्जित किया है। शिक्षा इस सामाजिक संस्कृति एवं सभ्यता को आनेवाली पीढ़ी को हस्तांतरित करतूत है। वह इस कार्य को शिक्षा संस्थाओं के माध्यम से करती है। यदि वह ऐसा न करें तो समाज का अस्तित्व सम्भव नही होगा।

2. शिक्षा, समाज को सततशीलता ही प्रदान नहीं करती है।वह समाज के सदस्यों को योग्य बनाती है कि वे समाज में प्रकट होने वाले दोषों को दूर कर सकें और उसके समक्ष नवीन विचारों तथा आदर्श को र सकें।साथ ही समाज क उसकी मांगों, आवश्यकताओं आदि के अनुकूल ढाल सके।

3. शिक्षा, समाज का सुधार ही नहीं करती है वरन् सामाजिक नियंत्रण भी करती है। शिक्षा सामाजिक नियंत्रण के एक महत्वपूर्ण शस्त्र के रूप में कार्य करती है।यह सामाजिक अव्यवस्था को कायम करती है।

4. शिक्षा सामाजिक परिवर्तन में साम्यता प्रदान करती है शिक्षा द्वारा समाज के सदस्यों में विवेक, उचित अनुचित में अन्तर करने की क्षमता , मूल्यों का विकास तथा आदर्श को निर्धारित करने की शक्ति का विकास किया जाता है। समाज के सदस्य उक्त गुणों में युक्त होकर सामाजिक परिवर्तन लाते हैं। सुशिक्षित व्यक्ति ही समाज में परिवर्तन ला सकता है। अतः शिक्षा, सामाजिक परिवर्तन के लिए महत्वपूर्ण कार्य करती है

शिक्षा समाज एवं शांति :  समाज शिक्षा को प्रभावित करता है। समाज का स्वरूप और शांति भविष्य को निर्धारित करता है। इसीलिए अधिनायकवादी तथा जनतंत्रीय समाजों में शिक्षा के स्वरूप भिन्न होते हैं। लोकतनत्रीय समाज अपने सदस्यों को शिक्षा के समान अवसर प्रदान करते हैं।

सामाजिक परिवर्तनों का शिक्षा पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। जैसे जैसे सामाजिक दशाओं में परिवर्तन होता जाता है वैसे वैसे शिक्षा का स्वरूप भी परिवर्तन होता जाता है। सामाजिक के परिवर्तन के फलस्वरूप शांति और सुधार होता है।

समाज को राजनीतिक दशाओं का शिक्षा पर प्रभाव पड़ता है।इस बात की पुष्टि परतंत्र तथा स्वतंत्र भारत की शिक्षा प्रणाली से हो जाती है। परतंत्र भारत में अंग्रेजी सरकार भारतीय जनसमूह को शिक्षित करने की पक्ष में नहीं थी। इस कारण उसने जनशिक्षा की ओर ध्यान नही दिया। परन्तु स्वतंत्र भारत मे देश के समस्त व्यक्तियों को शिक्षित करने के लिए अवसर प्रदान करना अपना उद्देश्य निर्धारित किया।

शिक्षा पर समाज की आर्थिक दशाओं का बड़ा व्यापक प्रभाव पड़ता है। समाज की आर्थिक स्थिति पर ही शिक्षा की स्थिति और शांति निर्भर करती है। यदि समाज क्रुषि प्रधान क्रुषि शिक्षा पर बल दिया जाएगा। साथ ही वह शिक्षा के अधिक अवसर नहीं प्रदान कर पायेगा। यदि समाज उद्योग प्रधान है तो विभिन्न व्यवसायों की शिक्षा पर बल दिया जाएगा।साथ ही समाज शिक्षा शान्ति के लिए अधिक अवसर प्रदान करने में सफल होगा। -डॉ. रोहिणी बाई एस
शिक्षा एम. ए., 1991, मैसूर यूनिवर्सिटी 1991, बी. एड. 1992.                                       एम. फिल. 1997, बेंगलूर यूनिवर्सिट
पीएच. डी. 2003, बेंगलूर यूनिवर्सिटी २००३
अनुभव 28 वर्ष
प्रर्धानाचार्य, 015-2019,
रामयय कालेज आफ आट्र्स साईंस एंड कामृस बेंगलूर।  राममय ममयमममकालेज आफ आट्र्स साईंस डिग्री कालेज में प्रोफेसर हैं।