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शिक्षा के सिरमौर रहे भारत में चिंतनीय पहले छात्र तलाशते थे शिक्षक, अब शिक्षक तलाशते हैं छात्र।

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राष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर राठौर की कलम से…..
*शिक्षा के सिरमौर रहे भारत में चिंतनीय पहले छात्र तलाशते थे शिक्षक, अब शिक्षक तलाशते हैं छात्र,,,,,*

राष्ट्रीय शिक्षा दिवस महज स्वतंत्र भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री, ख्यातिप्राप्त कवि,लेखक,पत्रकार,स्वतंत्रता सेनानी अबुल कलाम आजाद को याद करने और श्रद्धांजलि अर्पित करने मात्र का दिन नहीं है बल्कि राष्ट्रपिता गांधी के सिद्धांतों पर चलने वाले विपुल प्रतिभा के धनी मौलाना अबुल कलाम आजाद द्वारा आजाद भारत में शिक्षा की रखे नींव पर तैयार वर्तमान समय पर मंथन का भी है। आज शिक्षा के मायने बदल गए हैं।कभी के विश्व गुरु रहे भारत में आज आलम यह है कि छात्रों द्वारा शिक्षक खोजने के बजाय शिक्षकों द्वारा छात्रों को विभिन्न प्रकार से तलाशा जा रहा है।आज शिक्षा पूर्ण रूप से बाजार कि वस्तु सी बन गई है। शिक्षा की लौ समाज के आखिरी पायदान के लोगों तक ईमानदारी से नहीं पहुंच पा रही।आज के दौर में शिक्षा में खर्च बहुत बढ़ा है केंद्र और राज्य सरकार बजट का बड़ा हिस्सा शिक्षा पर खर्च का दावा करती है लेकिन स्तर उतना ही गिरा है इसको सुधारने की जरूरत है और यह तभी संभव है जब केंद्र व राज्य सरकार इसे अपने सर्वोच्च प्राथमिकता में लेगी।

*2008 से शुरू राष्ट्रीय शिक्षा दिवस शैक्षणिक गतिविधियों को देता है बढ़ावा*

भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद की जयंती पर भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा 2008 से राष्ट्रीय शिक्षा दिवस मनाने की शुरुआत हुई इस दिन विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन होता है *शिक्षा जहां इंग्लिश में एजुकेयर ,एजुकेर, एडुको और एजुकेटम से मिलकर बना है वहीं संस्कृत में शिक्ष धातु में अ प्रत्यय लगाकर बना है ।* शिक्षा के सम्बंध में जहां नेल्सन मंडेला ने कहा कि शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिसका उपयोग आप दुनिया बदलने में कर सकते हैं वहीं प्रख्यात विचारक अरस्तू ने कहा कि शिक्षा की जड़े कड़वी हैं लेकिन फल मीठा है। *शिक्षा के जनक के रूप में जान डेवी* को याद किया जाता है।शैक्षणिक सिध्दांत और व्यवहार में उनका योगदान महत्वपूर्ण है।सही मायने में कहे तो शिक्षा पूरा अर्थ समझ,कौशल,दृष्टिकोण प्राप्त करने की प्रक्रिया व्यक्ति को बौद्धिक रूप से विकसित कर समाज में उनकी भूमिकाओं के लिए साकार रूप देना ही है।शिक्षा का मुख्य लक्ष्य व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास है।

*विश्व पटल के मजबूत राष्ट्र होने बाद भी शिक्षा में बहुत पीछे है भारत*

विश्व स्तर पर आबादी में पहले,क्षेत्र में सातवें ,शक्ति में अग्रणी पंक्ति में शामिल भारत शिक्षा के मामले टॉप तीस देशों में भी नहीं आता ।सर्वाधिक दुखद कभी के विश्व विख्यात,नालंदा,तक्षशिला विश्वविद्यालय देने वाले भारत का विश्व के सर्वश्रेष्ठ शैक्षणिक संस्थानों में स्थान तो छोड़िए 200 में भी स्थान सही से नहीं मिलना शर्मसार कर हमारी शिक्षा व्यवस्था पर प्रश्न उठा जाता है।इसका मूल कारण भारतीय शिक्षा व्यवस्था का कई समस्याओं से जूझना भी है जिसमें शिक्षकों की प्रशिक्षण की गुणवत्ता में कमी,डिजिटल शिक्षा का स्तर कम होना,शिक्षा सामग्रियों का पर्याप्त न होना,और विभिन्न स्तरों पर असमानता आदि है,मुख्यतः रोजगार परक न होना भी।औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा के पक्षधर भारत में वर्तमान में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के सहारे कमियों को दूर करने और नए सिरे से सुधारने की कोशिश है।14 साल के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा का प्रावधान,बिहार में महिला और एस सी, एस टी के छात्रों को निःशुल्क शिक्षा सराहनीय कदम है।

*हर साल राष्ट्रीय शिक्षा दिवस विशेष थीम के साथ होती है विशेष योजना*

राष्ट्रीय शिक्षा दिवस महज अपने पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद को याद करने का ही दिन नहीं है बल्कि थीम निर्धारित कर कुछ खास करने के संकल्प का भी दिन था।यूं तो राष्ट्रीय शिक्षा दिवस मनाने की शुरुआत 2008 में ही हो गई लेकिन इसे खास बनाने के लिए थीम विशेष राष्ट्रीय शिक्षा दिवस मनाने की शुरुआत भी हुई।साल 2015 में पहला थीम दिया गया वैश्विक शिक्षा विकास एजेंडा -2030 का लक्ष्य,यह कारवां जारी है इस साल 2024 का सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा दिवस का थीम *सीखने के अधिकार का जश्न* दिया है।वहीं अंतराष्ट्रीय शिक्षा दिवस के अंतर्गत इस साल का वैश्विक थीम *स्थाई शांति के लिए शिक्षा* को रखा गया।कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि बात भारत की हो या विश्व पटल की सब एक स्वर में शिक्षा को सभी समस्याओं का समाधान ही नहीं मानते बल्कि समाज,राष्ट्र ,दुनिया के विकास के ताले की चाबी भी स्वीकार करते हैं। शिक्षा देने और लेने में सरकार और समाज ईमानदार बनें यही राष्ट्रीय शिक्षा दिवस और मौलाना अबुल कलाम आजाद के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

शुभकामनाओं सहित सबों को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस की हार्दिक बधाई।

 

*हर्ष वर्धन सिंह राठौर*
*शोधार्थी,इतिहास,
बीएनएमयू*
*प्रधान संपादक*
*युवा सृजन पत्रिका*

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

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