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पेरेंटिंग ड्यूरिंग कोविड-19 विषयक वेबीनार आयोजित, डाॅ. रहमान ने दिया व्याख्यान

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पेरेंटिंग या पालन पोषण एक क्रिया है, जिसे माता-पिता अपने बच्चों को संभालने उनका लालन-पालन करने में अपनाते हैं। पालन- पोषण बच्चों की परवरिश और व्यस्कता में उनके स्वस्थ विकास को सुनिश्चित करने के लिए उन्हें सुरक्षा और देखभाल प्रदान करने की प्रक्रिया है। यह बात विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर मनोविज्ञान विभाग के वरिष्ठ आचार्य प्रोफेसर एम. आई. रहमान ने कही। वे शीर्षक “पेरेंटिंग ड्यूरिंग कोविड-19” विषयक एक दिवसीय वेबीनार में आमंत्रित वक्ता के रूप में बोल रहे थे। इस वेबीनार का आयोजन ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा एवं मनोविज्ञान विभाग आर. के. कॉलेज, मधुबनी के संयुक्त तत्वावधान में किया गया था।
डाॅ. रहमान ने कहा कि लंबे समय से यह धारणा चली आ रही है कि सामाजिकरण की प्रक्रिया के माध्यम से माता-पिता अपने बच्चों पर प्रत्यक्ष और शक्तिशाली प्रभाव डालते हैं।  ऐसा माना जाता है कि जब बच्चे की अच्छी परवरिश होती है, तो यह माता-पिता की साख के लिए बेहतर होता है। यदि बच्चों की परवरिश बुरी तरीकों से होती है, तो इसे माता-पिता की गलती मानी जाती है। लेकिन मनोवैज्ञानिकों ने एवं शोधार्थियों ने इस परिकल्पना को चुनौती दी है।
उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया है कि बच्चों के विकास पर जैविक प्रभावों की भूमिका अधिक है। व्यवहारिक अनुवांशिक अध्ययन से या और स्पष्ट हुआ है के गोद लिए गए बच्चे अपने व्यक्तित्व बुद्धिमता एवं मानसिक स्वार्थ जैसी बुनियादी विशेषताओं में अपने जैविक माता-पिता की तरह होते हैं।
पेरेंटिंग के महत्त्व का अध्ययन करने वाले शोधकर्ताओं ने कई मुद्दों पर जोर डाला है। बच्चों के पालन-पोषण में प्रकृति और लालन पालन का सम्मिलित प्रयास होता है। पेरेंटिंग की सबसे अधिक आवश्यकता शैशवावस्था और बाल्यवस्था के दौरान पड़ता है। किशोरावस्था को जिसकी आयु 13 से 19 वर्ष होती है। उसे तूफान और तनाव की अवस्था मानी गई है जिसमें माता-पिता की भूमिका एवं पालन पोषण के तरीकों की बड़ी अहमियत है। समकालीन अध्ययन या बताते हैं के किशोरों को अपने माता-पिता के साथ घनिष्ठ और जुड़े हुए संबंधों को बनाए रखने से लाभ होता है। माता-पिता को अपने बच्चों को सकारात्मक जोखिम लेने के लिए प्रेरित या प्रोत्साहित करते रहना चाहिए। जिन बच्चों के पास अधिकारिक माता-पिता होते हैं, वह अपने जीवन में सर्वोत्तम परिणाम देते हैं। जैसे स्कूल की सफलता अच्छे सहकर्मी कौशल उच्च आत्मसम्मान आदि। इसके विपरीत जो बच्चे माता-पिता को और स्वीकार या उपेक्षित करते हैं। वह सबसे खराब परिणाम दिखाते हैं अर्थात् वे अपराध नशीली दवाओं का प्रयोग साथियों के साथ समस्याएं उत्पन्न करना और स्कूल में असफल रहना आदि। एक अभिभावक के रूप में हम अपने बच्चों के जीवन में एक अच्छी शुरुआत देते हैं। हम उनका पोषण करते हैं। उनकी रक्षा करते हैं। उनका मार्गदर्शन करते हैं।
डाॅ. रहमान ने अभिभावकों को नसीहत दी कि बच्चों के पालन पोषण में बड़ी ही सावधानी रखें।  महामारी के दौरान माता पिता को और भी सचेत रहने की आवश्यकता है। उन्होंने सुझाव देते हुए बताया के इस महामारी जिसे कोरोनावायरस महामारी की संज्ञा दी जाती है। उसमें अभिभावक या माता पिता को सकारात्मक रहने की आवश्यकता है। उन्हें बच्चों की दिनचर्या पर पैनी दृष्टि रखनी होगी बच्चों को बुरे व्यवहार या बुरे संगत से दूर रखने की आवश्यकता पर बल देना होगा। अभी की घड़ी तनावपूर्ण है और हर व्यक्ति तनाव में जीवन व्यतीत कर रहा है। अतः तनाव का प्रबंधन करना आवश्यक है साथी साथ छोटे बच्चों को कोविड-19 से संबंधित जानकारियां सहज ढंग से देने की आवश्यकता है।
इस वेबीनार के आयोजक सचिव मिथिला विश्वविद्यालय के वरिष्ठ आचार्य प्रोफेसर अनीस अहमद थे। उसी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ आई के रॉय इस वेबीनार की अध्यक्षता कर रहे थे। आर के कॉलेज मधुबनी के मनोविज्ञान विभाग के विभाग अध्यक्ष डॉ मौर्य ने धन्यवाद ज्ञापन दिया इस वेबीनार में डॉक्टर चंद्र कला  गोस्वामी जिनका संबंध जोधपुर से है वह भी आमंत्रित वक्ता के रूप में उपस्थित थी और उन्होंने भी पेरेंटिंग पर अपने व्याख्यान को प्रस्तुत किया इस वेबीनार में देश भर से तकरीबन 200 प्रतिभागियों  ने भाग लिया।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

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भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।