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निकाली गई फाइलेरिया उन्मूलन अभियान रैली*

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*निकाली गई फाइलेरिया उन्मूलन अभियान रैली*

ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में सेहत केंद्र और राष्ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी) के संयुक्त तत्वावधान में फाइलेरिया उन्मूलन अभियान के अंतर्गत एक जागरूकता रैली का आयोजन किया गया।

 

*संक्रमण रोग है फायलेरिया*

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रधानाचार्य प्रो. कैलाश प्रसाद यादव ने कहा कि फाइलेरिया प्रायः संक्रामक उष्ण कटिबंधीय रोग है। यह परजीवी द्वारा फैलता है। इसके उन्मूलन के लिए टीकाकरण शुरू किया गया है।

विकास पदाधिकारी प्रो. ललन प्रसाद अद्री ने कहा कि भारत सरकार एवं बिहार सरकार द्वारा फाइलेरिया उन्मूलन हेतु कई प्रयास किए जा रहे हैं। हम सबों को इन प्रयासों में अपनी सक्रिय भागीदारी निभानी चाहिए।

दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि सभी जगह सर्वजन की दवा पिलाओ अभियान चलाया जा रहा है। फायलेरिया की दवा पूरी तरह सुरक्षित है। इसलिए नि:संकोच दवाई लें और दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करें। सभी लोग स्वयं दवा पीएं एवं अपने परिजनों को भी दवा खाने के लिए प्रेरित भी करें।

मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. शंकर कुमार मिश्र ने कहा कि फाइलेरिया की दवा खाने के बाद किसी-किसी को जी मिचलाना, चक्कर या उल्टी आना, सिर दर्द, खुजली की शिकायत हो सकती है। ऐसा शरीर में फाइलेरिया के परजीवी होने से हो सकता है, जो दवा खाने के बाद मरते हैं।‌ ऐसी प्रतिक्रिया कुछ देर में स्वतः ठीक हो जाती है।

एनसीसी पदाधिकारी लेफ्टिनेंट गुड्डु कुमार ने कहा कि फीलपांव यानी हाथी पांव से से बचाव के लिए सबसे पहले अपने आस-पास को साफ-सुथरा रखें एवं पानी इकट्ठा ना होने दें। समय-समय पर भी कीटनाशक दवा का छिड़काव करें।

इस अवसर पर शोधार्थी सौरभ कुमार चौहान, प्रशिक्षक अभिषेक राय, एयूओ आदित्य रमन, यूओ अंकित कुमार, यूओ अनंत कुमार झा, यूओ नीतीश कुमार, एसजुटी वाणी कुमारी, एसजीटी खुशी कुमारी, राजीव कुमार, ब्रजनंदन कुमार, राज नंदन कुमार, केशव कुमार, राहुल कुमार, दिव्यज्योति कुमारी, मुनचुन कुमारी, गौरब कुमार, राजू कुमार, विमल कुमार, आलोक कुमार, अनिसा गुप्त, नैना कुमारी, शुक्रिया कुमारी, अनु कुमारी, नीतीश कुमार, मोनू कुमार, अमृत कुमार अंशु आदि उपस्थित थे।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।

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