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गुरुतुल्य अग्रज डॉ. अनिल ठाकुर के असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में चयनित होने पर बहुत-बहुत बधाई।

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गुरुतुल्य अग्रज डॉ. अनिल ठाकुर के असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में चयनित होने पर बहुत-बहुत बधाई।

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परम आदरणीय गुरूतुल्य अग्रज डॉ. अनिल ठाकुर का चयन असिस्टेंट प्रोफेसर (अर्थशास्त्र) के रूप में मुंगेर विश्वविद्यालय, मुंगेर के लिए हुआ है। इसके लिए मैं उन्हें बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। काफी विलम्ब से ही सही बड़े भाई को विश्वविद्यालय की मुख्यधारा में स्थान मिलना मेरे लिए अत्यंत ही प्रसन्नता की बात है।

मालूम हो कि कुछ दिनों पूर्व ही जब मेरे सहोदर भाई हिमांशु का भी चयन असिस्टेंट प्रोफेसर (दर्शनशास्त्र) के रूप में बी. आर. अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फर के लिए हुआ है और स्वयं मेरा दिसंबर 2016 में असिस्टेंट प्रोफेसर (दर्शनशास्त्र) के रूप में बी. बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के लिए हुआ था। लेकिन डॉ. ठाकुर के चयनित होने पर आज मुझे उस दोनों दिनों से कहीं अधिक खुशी हो रही है।

 

वास्तव में डॉ. ठाकुर का चयन मेरे लिए एक व्यक्तिगत उपलब्धि है। आप मेरे जैसे कई युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत रहे हैं और मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूं कि आपने दर्जनों वरिष्ठ जनों को असिस्टेंट प्रोफेसर से एसोसिएट प्रोफेसर एवं प्रोफेसर और यहां तक की कुलपति तक बनने में अकादमिक रूप से सहयोग दिया है। भले ही आप कभी उसका गुमान नहीं रखते हैं और न ही किसी-से-किसी भी तरह की बेजा मदद की उम्मीद ही रखते हैं।

पुनः आदरणीय अग्रज डॉ. अनिल ठाकुर को बहुत-बहुत बधाई और उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना।

आज आप सभी मुझे भी बधाई दे सकते हैं।

-सुधांशु शेखर, असिस्टेंट प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, स्नातकोत्तर दर्शनशास्त्र विभाग, ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा (बिहार)

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।

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