विश्व पुस्तक दिवस (23 अप्रैल)विशेष…….
*युवा साहित्यकार राठौर ने बुके नहीं बुक को बनाया मिशन*
आज जब दुनिया डिजिटल दुनिया की कैद में है जहां तैरती अंगुलियों के नीचे सूचनाएं सुगमता पूर्वक प्राप्त होती हैं वहां किताबों का महत्व प्रभावित हुआ है।फोन और इंटरनेट की दुनिया में लोग कहीं न कहीं किताबों से दूर हुए हैं डिजिटल और ऑनलाइन क्लासों ने इस दूरी को और बढ़ाया है।नई पीढ़ी का तकाजा भी है कि डिजिटल दुनिया में तेजी से सूचनाओं का आदान प्रदान होता है।ऐसे में युवा साहित्यकार हर्ष वर्धन सिंह राठौर ने बुके नहीं बुक की एक ऐसी पहल की शुरुआत की है जिसमें लोगों से मुलाकात में बुके की जगह बुक से अभिनंदन किया जाता है।कोई आयोजन हो अथवा मुलाकात किताबें अभिनंदन का जरिया बन गई है।
*आकर्षक ही नहीं प्रभावकारी है यह पहल*
साहित्यकार सह युवा सृजन पत्रिका के प्रधान संपादक हर्ष वर्धन सिंह राठौर बताते हैं कि यह पहल आकर्षक होने के साथ साथ प्रभावकारी भी है एक ओर जहां बुके की कीमत अधिक होती है वहीं उपयोग छणिक अक्सर लोग साथ ले जाना भी जरूरी नहीं समझते वहीं बुक कम कीमत में उपलब्ध भी हो जाती है और उसका महत्व दीर्घकालिक है जिसे लोग बहुत सम्हाल कर रखते भी।जिससे छोटे स्तर पर ही सही लोगों को पढ़ने को उत्साहित और जागृत भी किया जाता है।राठौर बताते हैं कि पुस्तकें जीवन पथ की सबसे बड़ी मार्गदर्शक और सहपाठी है।
*विश्व पुस्तक दिवस पुस्तकों की रचना और अध्यन को करता है प्रेरित*
राठौर बताते हैं कि हर साल विशेष थीम और संकल्प के साथ 23 अप्रैल को मनाए जाने वाला विश्व पुस्तक दिवस का एकमात्र उद्देश्य यही है कि पुस्तकों की रचना और उसका अध्यन हर दौर में जीवंत रख इसके महत्व को बरकरार रखा जा सकता है ।विश्व पुस्तक दिवस पुस्तकों से जुड़ी हर बिंदुओं पर चिंतन , मनन और विमर्श का प्लेटफार्म देता है।विश्व पुस्तक दिवस -2025 का थीम *अपने तरीके से पढ़ें* पुस्तकों की आजाद दुनिया की आजाद उड़ान को दर्शाती हैं।