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Yoga बीएनएमयू : पीजी डिप्लोमा इन योग समिति की बैठक 8 जुलाई, 2022 को

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*बीएनएमयू : पीजी डिप्लोमा इन योग समिति की बैठक 8 जुलाई, 2022 को*

भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा में प्रस्तावित पीजी डिप्लोमा इन योग अर्थात् योग में स्नातकोत्तर डिप्लोमा कार्यक्रम समिति की बैठक 8 जुलाई को सुनिश्चित है। इसकी अध्यक्षता समिति की अध्यक्षा सह प्रति कुलपति प्रो. (डाॅ.) आभा सिंह करेंगी। कुलपति प्रो. (डाॅ.) आर. के. पी. रमण के निदेशानुसार कुलसचिव प्रो. (डाॅ.) मिहिर कुमार ठाकुर ने बैठक की अधिसूचना जारी कर दी है।

जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर ने बताया कि 23 दिसंबर, 2020 को संपन्न विद्वत परिषद् की बैठक में योग में पीजी डिप्लोमा का पाठ्यक्रम, नामांकन अध्यादेश एवं परीक्षा विनियम आदि को अंतिम रूप देने हेतु एक समिति गठित की गई है। इसमें प्रति कुलपति प्रो. (डाॅ.) आभा सिंह को अध्यक्ष और उप कुलसचिव (अकादमिक) डाॅ. सुधांशु शेखर को सचिव की जिम्मेदारी दी गई है।

समिति में नव नालंदा महाविहार, नालंदा में दर्शनशास्त्र के प्रो. (डाॅ.) सुशीम दुबे, योग एवं स्वास्थ्य विभाग, देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार (उत्तराखंड) के प्रो. (डाॅ.) सुरेश वर्णवाल एवं श्री श्री विश्वविद्यालय, कटक के प्रो. (डाॅ.) बी. आर. शर्मा बाह्य विशेषज्ञ-सदस्य के रूप में शामिल किए गए हैं।

मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो. (डाॅ.) उषा सिंहा, दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष शोभाकांत कुमार, निदेशक (शैक्षणिक) प्रो. (डाॅ.) एम. आई. रहमान एवं परीक्षा नियंत्रक आर. पी. राजेश भी समिति में शामिल हैं।

डाॅ. शेखर ने बताया कि योग का सदियों से मानव जीवन में काफी महत्व रहा है और आधुनिक जीवन में भी इसकी उपयोगिता बढ़ती जा रही है। उन्होंने कहा कि योग एक विज्ञान है, जिसे सीखने के लिए योग्य एवं प्रशिक्षित शिक्षक की जरूरत होती है। योग का प्रशिक्षण हासिल कर योग एयरोबिक्स इंस्ट्रक्टर, योग थेरेपिस्ट, योग इंस्ट्रक्टर, योग टीचर, थेरेपिस्ट एंड नैचूरोपैथ्स, रिसर्च ऑफिसर के तौर पर काम किया जा सकता है। शिक्षण संस्थान, रिसर्च सेंटर, स्वास्थ्य केंद्र, जिम, हाउसिंग सोसाइटियाँ, कार्पोरेट घराने, टेलीविजन चैनल आदि भी योग प्रशिक्षक हायर करते हैं। जाने-मानी हस्तियाँ भी प्राइवेट योग इंस्ट्रक्टर हायर करते हैं। उन्होंने बताया कि योग कोर्स में निष्णात विद्यार्थियों को भारत के अलावा विदेशों में भी कार्य करने का अवसर मिल सकता है। आज दुनियाभर में भारत के योग शिक्षक-प्रशिक्षक की माँग बढ़ी है। एक अध्ययन के अनुसार भारत में तीन लाख योग प्रशिक्षकों की आवश्यकता है।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।

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