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Bhartiy Samvidhan aur Manvadhikar भारतीय संविधान और मानवाधिकार
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Bhartiy Samvidhan aur Manvadhikar भारतीय संविधान और मानवाधिकार

15. भारतीय संविधान और मानवाधिकार ”मैं महसूस करता हूँ कि संविधान कितना भी अच्छा क्यों न हो, यदि वे लोग, जिन्हें संविधान को अमल में लाने का काम सौंपा जाए, खराब निकलें, तो निश्चित रूप से संविधान भी खराब सिद्ध होगा। दूसरी ओर, संविधान चाहे कितना भी खराब क्यों न हो, यदि वे लोग, जिन्हें संविधान को अमल में लाने का काम सौंपा जाए, अच्छे हों, तो संविधान अच्छा सिद्ध होगा। संविधान पर अमल केवल संविधान के स्वरूप पर निर्भर नहीं करता। संविधान केवल विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसे राज्य के अंगों का प्रावधान कर सकता है। राज्य के उन अंगों का संचालन लोगों पर और उनके द्वारा अपनी आकांक्षाओं तथा अपनी राजनीति की पूर्ति के लिए बनाए जाने वाले राजनैतिक दलों पर निर्भर करता है। कौन कह सकता है कि भारत के लोगों और उनके राजनैतिक दलों का व्यवहार कैसा होगा? जातियों तथा संप्रदायों के रूप में हमारे पुराने शत्राुओं...
Bhumandalikaran aur Bhartiy Vikalp भूमंडलीकरण और भारतीय विकल्प
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Bhumandalikaran aur Bhartiy Vikalp भूमंडलीकरण और भारतीय विकल्प

12. भूमंडलीकरण और भारतीय विकल्प महात्मा गाँधी द्वारा हिंद-स्वराज’ में कहा है, ”यह सभ्यता ऐसी है कि अगर हम धीरज धरकर बैठे रहेंगे, तो इसकी चपेट में आए हुए लोग खुद की जलाई हुई आग में जल मरेंगे। ... यह सभ्यता दूसरों का नाश करने वाली और खुद भी नाशवान है।“1 उनकी इस भविष्यवाणी के संकेत आज हर तरफ दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में इस तथाकथित भूमंडलीकरण से उत्पन्न चातुर्दिक संकटों के समाधान की दिशा में भी गंभीरतापूर्वक काम करने की जरूरत महसूस होने लगी है। इस क्रम में भारतीय चिंतन की ओर ध्यान जाना स्वभाविक है। भारतीय चिंतन सार्वभौमिक एवं सर्वकालिक है और आधुनिक संदर्भों में भी इसकी प्रासंगिकता, उपादेयता एवं स्वीकार्यता बढ़ती जा रही है। भूमंडलीकरण के भारतीय विकल्प को निम्न बिंदुओं में आसानी से समझा जा सकता हैऋ पण् समग्र विकास या सर्वोदय: भूमंडलीकरण का सबसे अहम मुद्दा हैऋ ‘विकास’, लेकिन दुर्भाग्य से इसे संकुचि...
Bhumandalikaran aur Bhartiy Sabhyta भूमंडलीकरण और भारतीय सभ्यता
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Bhumandalikaran aur Bhartiy Sabhyta भूमंडलीकरण और भारतीय सभ्यता

11. भूमंडलीकरण और भारतीय सभ्यता हम जानते हैं कि प्राकृतिक संपदाओं और मानव संसाधनों की प्रचुरता के कारण भारत को ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था। मगर, पश्चिमी सभ्यता के झंडाबरदारों ने इसे सपेरोें, लूटेरों, जटाजूट वाले संन्यासियों, धर्मांधों, गरीबों एवं असभ्यों का देश कहकर ही प्रचारित किया। यह एक औपनिवेशिक दृष्टि थी, जिसे भारत के कई नवशिक्षित बुद्धिजीवियों ने भी बौद्धिकता एवं प्रगतिशीलता के अहंकार में अपनाया था। तब गाँधी ने इस औपनिवेशिक दृष्टि के साथ-साथ ऐसे बुद्धिजीवियों के मानसिक दिवालियेपन को भी ‘हिंद-स्वराज’ में झकझोरने की कोशिश की थी। ‘हिंद-स्वराज’ में गाँधी ने यह दिखाने का प्रयास किया है कि हिंदुस्तान पश्चिमी सभ्यता के कारण ही गुलाम हुआ है और हिंदुस्तान की दुर्दशा के लिए अंग्रेजी राज से अधिक अंग्रेजी (पश्चिमी) सभ्यता जिम्मेदार है। इसलिए, यदि हम भारतीय पश्चिमी सभ्यता के माया-जाल से निकलकर ...