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Poem। कविता। समय के समक्ष
SRIJAN.KAVITA

Poem। कविता। समय के समक्ष

समय के समक्ष जब- भिक्षुक हो जाएँ सभी विकल्प; जीवित रखना होता तब; अन्तःप्रज्ञा का ही दृढ़ संकल्प। लक्ष्य निष्ठुर हो जाते हैं जब- रातों में पहाड़ी पगडंडी -से; अपना लहू प्रपंच-मन में भर; जिजीविषा की दियासलाई से- चिमनी को जलाना होता तब। निचोड़ आँखों को स्वयं की; कामनाओं की बाती सुलगाना- जीवन-अनिवार्य प्रश्न-सा; उत्तर लिखकर भी; विकल्पहीन- असफल ही कहलाता; जबकि वह दिन-रात- वेश्या सा अपना तन-मन सुलगाता... डॉ कविता भट्ट 'शैलपुत्री'...