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Mrityudand aur Manvadhikar मृत्युदंड और मानवाधिकार
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Mrityudand aur Manvadhikar मृत्युदंड और मानवाधिकार

19. मृत्युदंड और मानवाधिकार संप्रति ‘गैंग रेप’, ‘आतंकी हमले’ एवं ‘आॅनर-किलिंग’ जैसी घटनाओं में शामिल अभियुक्तों को ‘मृत्यदंड’ देने की माँग ज़ोर पकड़ रही है। इसके समर्थकों का कहना है कि ऐसे जघन्य अपराधों को रोकने का एकमात्रा तरीका ‘मृत्युदंड’ ही हो सकता है।1 ऐसे लोगों का यह भी कहना है कि क्रूर अपराधियों के साथ सख्ती बरतना चाहिए और उनसे ‘जैसे को तैसा’ वाला बर्ताव करना चाहिए। सामान्यतः कानूनी न्याय भी इस बात का समर्थक है कि अपराधी को उसके द्वारा किए गए कुकृत्य के बराबर दंड दिया जाए, यही अपराध रूपी बीमारी का कारगर इलाज है। ब्रेडले, हीगेल, कांट एवं मैकेंजी जैसे दार्शनिकों ने भी ऐसे कठोर इलाजों का समर्थन किया है।2 मैकेंजी के शब्दों में, ”समाज से अपराध का निराकरण तभी संभव है, जबकि अपराधी अपने अपराध का दंड प्राकृतिक एवं तार्किक रूप में अपनी क्रिया के परिणाम के रूप में देखता है।“3 इस तरह ‘मृत्युदंड’...