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Srijan-Samvad हिंदी काव्यलोचन क व्यावहारिक संदर्भ’ पुस्तक की भूमिका।

‘हिंदी काव्यलोचन क व्यावहारिक संदर्भ’ पुस्तक की भूमिका   प्रस्तुत पुस्तक के अधिकतर आलेख गत दस-बारह वर्षों की कालावधि में विभिन्न शोध-पत्रिकाओं तथा पुस्तकों में प्रकाशनार्थ लिखे गये हैं। कुल बाईस आलेखों में मात्र दो – 'मात्रिक छन्द तथा हिन्दी काव्य' एवं 'रहीम के काव्य-वाङ्मय में लोकतत्त्व' अद्यावधि अप्रकाशित हैं। प्रायः सारे आलेख अनुप्रयुक्त, अर्थात् व्यावहारिक आलोचना के उदाहरण बन पड़े हैं। अलग-अलग संदर्भ में लिखित इन आलेखों का व्याप्ति-क्षेत्र छन्द से लेकर आलोचना तक है तो प्राचीन कवि स्वयंभू से लेकर आधुनिक कवि हीरा प्रसाद हरेन्द्र तक। इनमें से कुछ आलेख सम्मानित व पुरस्कृत भी हुए हैं। संकलन के प्रथम आलेख में मात्रिक छन्द के क्रमिक विकास के साथ-साथ उसके स्वरूप, महत्त्व तथा हिन्दी कवियों में लोकप्रियता के विविध कारणों पर विचार किया गया है। दूसरी प्रस्तुति का नाम है 'पाठकवादी आलो...