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Philosophy समीक्षा : “फ्रीडम फ्रॉम द नोन”

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“फ्रीडम फ्रॉम द नोन” जिद्दू कृष्णमूर्ति की एक पुस्तक है। मैरी लुटीयन्स ने इसका संपादन किया है। यह पुस्तक स्वतंत्रता की अवधारणा की खोज करती है। सच्ची स्वतंत्रता की खोज करने के लिए पाठकों को उनकी कंडीशनिंग और विश्वासों पर सवाल उठाने के लिए आमंत्रित करती है।

फ्रीडम फ्रॉम द नोन ‘ज्ञात से मुक्ति’ 1969 में प्रकाशित हुई थी। तभी से कृष्णमूर्ति की शिक्षा को समझने की दिशा में प्रारम्भिक और महत्त्वपूर्ण पुस्तक की मान्यता मिल गयी थी। मानवीय त्रासदी और जीवन की अनंत समस्याओं पर कृष्णमूर्ति ने जो कुछ कहा है उसका सार रूप में पहली बार संकलन इस पुस्तक में हुआ था।

कृष्णमूर्ति की जीवनीकार और उनकी आजीवन मित्र रहीं मेरी लुटियंस। उन्होंने इस पुस्तक को तैयार किया था। इसके संकलन के लिए उन्होंने कृष्णमूर्ति की यूरोप और भारत में दिए गए सौ से भी अधिक वार्ताओं को आधार बनाया था। स्वयं कृष्णमूर्ति ने उनसे इस पुस्तक को तैयार करने के लिए कहा था।इसका शीर्षक भी उन्होंने ही सुझाया था। पुस्तक के शब्द ज्यों-के-त्यों कृष्णमूर्ति के हैं लेकिन उनका क्रम-निर्धारण और व्यवस्थित रूप से प्रस्तुति मेरी लुटियंस की है।

लोगों की ज्ञात बाधाओं से मुक्त होने की कुंजी के रूप में यह बहुत ही सहायक है। कृष्णमूर्ति आत्म – पूछताछ और आत्म-जागरूकता के महत्व पर जोर देते हैं। वह पाठकों को अपने विचारों, भावनाओं और कार्यों को बिना निर्णय के जांचने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। इससे स्वयं को और दुनिया की गहरी समझ की दृष्टि मिलती है।

पुस्तक बाहरी कारणों पर निर्भर होने की धारणा को चुनौती देती है। व्यक्तियों को स्वतंत्र रूप से और गंभीर रूप से सोचने के लिए प्रोत्साहित करती है। कृष्णमूर्ति पाठकों को सामाजिक मानदंडों, सांस्कृतिक स्थितियों और पिछले अनुभवों के प्रभाव पर सवाल उठाने के लिए आमंत्रित करते हैं। पुस्तक उन्हें अपने स्वयं के सत्य की खोज करने का आग्रह करती है।

कृष्णमूर्ति वर्तमान क्षण में जीने के महत्व पर भी जोर देते हैं। व्यक्ति जीवन को पूरी तरह से अनुभव कर सकता है। और वो होता है अतीत के बारे में पछतावा और भविष्य के बारे में चिंताओं को दूर करने से। क्योंकि समय और उम्मीद के बोझ से मुक्त होने से यह सामने आता है।

पुस्तक में कृष्णमूर्ति भय की प्रकृति और मानव अस्तित्व पर इसके प्रभाव की खोज करते हैं। वह पाठकों को उनके भय का सामना करने, उसके मूल को समझने और उन्हें पार करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं ताकि भय-आधारित सीमाओं से मुक्त जीवन जिया जा सके।

“ज्ञात से स्वतंत्रता” आत्म-खोज में एकांत और मौन के महत्व में भी निहित है। कृष्णमूर्ति का सुझाव है कि बाहरी विकर्षणों से वापस लें और आंतरिक शांति की स्थिति पैदा करें। इससे व्यक्ति अपनी असली प्रकृति को प्राप्त कर सकता है। साथ ही गहन अंतर्दृष्टि प्राप्त कर सकता है।

पुस्तक ईमानदारी और प्रामाणिकता के साथ जीने की वकालत करती है। किसी के विचारों, शब्दों और कार्यों को संरेखित करती है। कृष्णमूर्ति का मानना है कि किसी की असली प्रकृति के साथ सद्भाव में रहने से, व्यक्ति स्वतंत्रता और संतुष्टि की गहरी भावना का अनुभव कर सकता है।

“ज्ञात से आजादी” विचारोत्तेजक पुस्तक है। यह पाठकों को उनकी मान्यताओं पर सवाल उठाने, उनकी आंतरिक दुनिया का पता लगाने और ज्ञात की सीमाओं से परे सच्ची स्वतंत्रता की खोज करने के लिए चुनौती देती है। यह अधिक प्रामाणिक और मुक्त जीवन जीने के बारे में अंतर्दृष्टि और मार्गदर्शन प्रदान करता है।

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मीडिया के सभी साथियों को बहुत-बहुत धन्यवाद युवा संसद से संबंधित विभिन्न कार्यक्रमों की रिपोर्ट प्रमुखता से प्रकाशित। मीडिया के सभी साथियों को बहुत-बहुत धन्यवाद। प्रो. बी. एस. झा, माननीय कुलपति, बीएनएमयू, मधेपुरा और प्रो. कैलाश प्रसाद यादव, प्रधानाचार्य, ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा के प्रति बहुत-बहुत आभार।

मीडिया के सभी साथियों को बहुत-बहुत धन्यवाद। कीर्ति कुम्भ (स्मरण एवं संवाद) कार्यक्रम की रिपोर्ट प्रमुखता से प्रकाशित। उद्घाटनकर्ता सह मुख्य अतिथि प्रो. बी. एस. झा, माननीय कुलपति, बीएनएमयू, मधेपुरा और मुख्य वक्ता प्रो. विनय कुमार चौधरी, पूर्व अध्यक्ष, मानविकी संकाय, बीएनएमयू, मधेपुरा के प्रति बहुत-बहुत आभार।