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NMM पांडुलिपियों के कारण ही विश्वगुरु है भारत : डॉ. श्रीधर बारीक

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*पांडुलिपियों के कारण ही विश्वगुरु है भारत : डॉ. श्रीधर बारीक*

भारत पांडुलिपियों के मामले में दुनिया का सबसे समृद्ध राष्ट्र है। इसी समृद्धि के कारण भारत को विश्वगुरु माना जाता है। अतः यदि भारत को विश्वगुरु बनाए रखना है, तो हमें अपनी पांडुलिपियों का संरक्षण एवं संवर्धन करना होगा।

यह बात मिशन के समन्वयक (कार्यशाला) डॉ. श्रीधर बारीक ने कही। वे तीस दिवसीय उच्चस्तरीय राष्ट्रीय कार्यशाला के दूसरे दिन मिशन के उद्देश्य एवं कार्य पर व्याख्यान दे रहे थे।

उन्होंने बताया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई भारत की पांडुलिपियों के ज्ञानतत्‍व की खोज, प्रलेखन, संरक्षण एवं उसके प्रचार-प्रसार के लिए हमेशा चिंतित रहते थे। इसी उद्देश्य से फरवरी 2003 में संस्‍कृति मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत संचालित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र ने राष्‍ट्रीय पांडुलिपि मिशन परियोजना की शुरुआत की गई। यह मिशन भारत की विशाल पांडुलिपि संपदा की खोज करने और इसे परिरक्षित करने में जुटा है।

उन्होंने कहा कि भारत में अनुमानत: दस मिलियन पांडुलिपियां हैं, जो विश्‍व में सबसे बड़ा संग्रह है। इनमें विभिन्‍न प्रकार के विषय-वस्‍तु, संरचना तथा सौंदर्य, लिपियां, भाषाएं, सुलेख, उद्बबोधन एवं दृष्‍टांत हैं। एक साथ मिलकर वे भारत के इतिहास, सभ्यता- संस्कृति, विरासत एवं विचार की ‘स्‍मृति’ का निर्माण करते हैं।

उन्होंने बताया कि यह मिशन विश्‍वविद्यालयों, पुस्‍तकालयों, मंदिरों, मठों, मदरसों, विहारों और निजी संग्रहों में रखी पांडुलिपियों के आंकड़ों का संग्रह करता है। इसने अपनी वेबसाइट पर डिजिटल संग्रह, पांडुलिपियों के राष्ट्रीय डेटाबेस की भी स्थापना की है। साथ ही पांडुलिपि संसाधन केंद्र (एमआरसीएस), पांडुलिपि संरक्षण केंद्र (एमसीसी), पांडुलिपि साथी केंद्र (एमपीसी) और पांडुलिपि संरक्षण केंद्र (एमसीपीसी) शामिल हैं।

उन्होंने बताया कि मिशन के माध्यम से आठ करोड़ पेज का डिजिटलाइजेशन हो चुका है। साथ ही एक सौ बीस पांडुलिपियों का प्रकाशन हो चुका है। पांडुलिपि-संरक्षण से संबंधित कार्यशालाओं एवं सेमिनारों का निरंतर आयोजन किया जा रहा है।

इस अवसर पर केंद्रीय पुस्तकालय के प्रोफेसर इंचार्ज डॉ. अशोक कुमार, उप कुलसचिव अकादमिक डॉ. सुधांशु शेखर, पृथ्वीराज यदुवंशी, सिड्डु कुमार, डॉ. राजीव रंजन, अंजली कुमारी, त्रिलोकनाथ झा, सौरभ कुमार चौहान, अमोल यादव, कपिलदेव यादव, शंकर कुमार सिंह, अरविंद विश्वास, रश्मि कुमारी आदि उपस्थित थे।

आयोजन सचिव डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि कार्यशाला में नई दिल्ली, इलाहाबाद, वाराणसी, पटना, दरभंगा, भागलपुर, मोतिहारी आदि जगहों से विषय विशेषज्ञ भाग लेंगे। भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के भी कुछ विशेषज्ञ व्याख्यान देंगे।

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भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।

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