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NMM उत्तर भारत में बेहद लोकप्रिय रही है कैथी लिपि : डॉ. भवनाथ झा

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*उत्तर भारत में बेहद लोकप्रिय रही है कैथी लिपि : डॉ. भवनाथ झा*

कैथी उत्तर भारत की बेहद सरल, अत्यंत लोकप्रिय एवं द्रुत गति से लिखी जाने वाली ऐतिहासिक लिपि है। इसका उपयोग मैथिली, अंगिका, भोजपुरी, मगही, उर्दू एवं हिंदी से संबंधित कई अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को लिखने के लिए किया जाता रहा है। यह लिपि पूरे उत्तर भारत और इसके अलावा मॉरिशस, त्रिनिदाद, सूरीनाम, फिजी आदि देशों में भी प्रचलित रही है।

यह बात विशेषज्ञ वक्ता सह महावीर मंदिर, पटना से प्रकाशित पत्रिका धर्मायण के संपादक डॉ. भवनाथ झा (पटना) ने कही। वे शनिवार को’पांडुलिपि विज्ञान एवं लिपि विज्ञान’ पर आयोजित तीस दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में प्रतिभागियों को संबोधित कर रहे थे। यह कार्यशाला राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली के सौजन्य से केन्द्रीय पुस्तकालय, बीएनएमयू, मधेपुरा में आयोजित हो रही है।

*जीवन के हर क्षेत्र में प्रयुक्त होती थी कैथी लिपि*

उन्होंने कहा कि उत्तर भारतीय समाज में कैथी लिपि का काफी महत्व है। हमारे जीवन के सभी क्षेत्रों में इस लिपि का प्रयोग किया जाता था। इस लिपि में नियोजित गतिविधियों और लिखी एवं छपी हुई सामग्रियों की बहुतायत है। इस लिपि में वाणिज्यिक लेनदेन, प्रशासनिक आदेश, न्यायादेश, पत्राचार, व्यक्तिगत रिकॉर्ड एवं साहित्यिक रचनाओं की बहुलता है।

*जन लिपि थी कैथी*
उन्होंने बताया कि कैथी लगभग एक हजार वर्षों तक उत्तर भारत की जन लिपि या लोक लिपि रही है। जब देवनागरी प्रचलित नहीं थी, तो कैथी में ही साहित्य, कविता, नाटक, उपन्यास आदि लिखे गए हैं। बिहार में लोक गीत, सूफी गीत और तंत्र-मंत्र की पुस्तकें भी कैथी लिपि में लिखी जा चुकी हैं।हमारा अधिका़श लोक साहित्य कैथी में है। इसी लिपि में लोकगीत, लोकगाथाएँ एवं आम जनता से जुड़ी लिखित रचनाओं की पांडुलिपियाँ मिलती हैं।

*कैथी के हैं दो रूप*

उन्होंने बताया कि कैथी के दो रूप हैं-एक दस्तावेज़ी कैथी एवं दूसरा मानक कैथी।दस्तावेज़ी कैथी का प्रयोग व्यापारिक एवं सरकारी दस्तावेजों में हुआ है। इससे भिन्न एवं स्पष्ट मानक स्वरूप में जो कैथी लिपि है उसका व्यवहार साहित्यिक पाण्डुलिपियों में हुआ है। अतः हमें पुराने दस्तावेज़ों को पढ़ने के लिए दस्तावेज़ी कैथी और ज्ञान-विज्ञान एवं साहित्य के क्षेत्र में आगे काम करने के लिए हमें साहित्यिक कैथी सीखने की जरूरत है।

इस अवसर पर केंद्रीय पुस्तकालय के प्रोफेसर इंचार्ज डॉ. अशोक कुमार, उप कुलसचिव अकादमिक डॉ. सुधांशु शेखर, पृथ्वीराज यदुवंशी, सिड्डु कुमार, डॉ. राजीव रंजन, डॉ. संगीत कुमार, जयप्रकाश भारती, त्रिलोकनाथ झा, नीरज कुमार सिंह, लूसी कुमारी, रुचि कुमारी, स्नेहा कुमारी, रश्मि कुमारी, अरविंद विश्वास, अमोल यादव,‌ सौरभ कुमार चौहान, अंजली कुमारी, मधु कुमारी, ब्यूटी कुमारी, रवींद्र कुमार, बालकृष्ण कुमार सिंह, कपिलदेव यादव, शंकर कुमार सिंह आदि उपस्थित थे।

आयोजन सचिव डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि यदि इस क्षेत्र में कैथी लिपि के कोई जानकार हों, तो वे केंद्रीय पुस्तकालय के प्रोफेसर इंचार्ज से संपर्क कर सकते हैं। उनको विशेषज्ञ के रूप में आमंत्रित किया जाएगा।

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