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Jannayak जयंती पर याद किए गए जननायक कर्पूरी ठाकुर

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जयंती पर याद किए गए जननायक कर्पूरी ठाकुर
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जननायक कर्पूरी ठाकुर सादगी एवं त्याग की प्रतिमूर्ति थे।

वे एक अति सामान्य परिवार से आगे बढ़कर बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे और लोगों ने उन्हें जननायक की उपाधि से विभूषित किया।

यह बात बीएनएमयू, मधेपुरा के कुलपति डॉ. आर. के. पी. रमण ने कही।

वे मंगलवार को जननायक कर्पूरी ठाकुर की सौवीं जयंती पर आयोजित समारोह में उद्घाटन कर्ता के रूप में बोल रहे थे।

कार्यक्रम का आयोजन यूथ ऐसोसिएशन (माया) के तत्वावधान में विश्वविद्यालय अतिथिशाला परिसर में कर्पूरी प्रतिमा स्थल पर किया गया।

कुलपति ने कहा कि कोई जन्म से महान होते हैं, किसी पर महानता लाद दी जाती है।

लेकिन कुछ लोग अपने कर्म से महान होते हैं।

कर्पूरी वैसे ही नेता थे, जिन्होंने संघर्ष करते हुए अपना एक मुकाम हासिल किया।

कुलपति ने कहा कि कर्पूरी सादगी, कर्मठता एवं ईमानदारी के प्रतिनिधि थे। वे सिद्धांतों पर जीते थे और कहीं भी बेबाक होकर अपनी बात रखते थे।

कुलपति ने कहा कि कर्पूरी का संदेश है कि अधिकार के लिए लड़ना सीखो। पग-पग पर अड़ना सीखो। जीना है, तो मरना सीखो।

इस अवसर पर मुख्य मुख्य अतिथि कुलसचिव डॉ. मिहिर कुमार ठाकुर ने कहा कि कर्पूरी ठाकुर जनजन के नेता थे।
उनके विरोधी दलों के सदस्य भी उनका सम्मान करते थे।

इस अवसर पर पूर्व कुलसचिव प्रो. सचिन्द्र ने कहा कि हमें देश में सभी प्रकार की तानाशाही का विरोध करना चाहिए।

पूर्व सीसीडीसी डॉ. अमोल राय ने कहा कि कर्पूरी जाति नहीं, बल्कि जमात के नेता हैं।

माया के अध्यक्ष राहुल यादव ने कहा कि 17 फरवरी को कर्पूरी ठाकुर की पुण्यतिथि से प्रतिमा निर्माण का कार्य शुरू किया जाएगा।

इसमें समाज के सभी वर्गों से सहयोग अपेक्षित है।‌‌

कुलपति के निजी सहायक शंभू नारायण यादव ने कहा कि कर्पूरी मात्र पिछडों के नेता नहीं थे, बल्कि वे पूरे समाज एवं राष्ट्र के नेता थे।

कार्यक्रम का संचालन उप कुलसचिव (स्थापना) डॉ. सुधांशु शेखर ने किया।

धन्यवाद ज्ञापन माया के संरक्षक तुरबसु बंटी ने किया।

उन्होंने तानवी इंटरप्राइजेज की ओर से कर्पूरी प्रतिमा के निर्माण हेतु तत्काल ग्यारह हजार रुपए का चेक प्रदान किया।

इस अवसर पर कुलानुशासक डॉ. बी. एन. विवेका, आईक्यूएसी निदेशक डॉ. नरेश कुमार, एसएनआरकेएस कालेज, सहरसा के प्रधानाचार्य डॉ. अशोक कुमार सिंह, केपी कॉलेज, मुरलीगंज के प्रधानाचार्य डॉ. जवाहर पासवान, विकास पदाधिकारी डॉ. ललन प्रसाद अद्री, भाजपा जिलाध्यक्ष स्वदेश कुमार, भाजपा नगर अध्यक्ष अंकेश गोप, वार्ड पार्षद अजय ठाकुर, पी. यदुवंशी, अनंत प्रताप, पाण्डेय जी, माया के कोषाध्यक्ष सुधांशु कुमार, रोहित कुमार, प्रभात कुमार, अजय कुमार, अमित बलटन, रमण कुमार सहित बड़ी संख्या में गणमान्य लोग उपस्थित थे।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

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भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।