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Book Review पुस्तक-परिचय/ पुस्तक : साहित्य की भारतीय परंपरा लेखक : श्रीभगवान सिंह

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पुस्तक-परिचय
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पुस्तक : साहित्य की भारतीय परंपरा
लेखक : श्रीभगवान सिंह
प्रकाशक : सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली, कुल पृष्ठ-224, मूल्य : 595 रु.
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विश्वविद्यालय हिंदी विभाग, तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर (बिहार) के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. श्रीभगवान सिंह का नाम गांधीवादी समालोचकों में अग्रगण्य है। आपने गांधी को केंद्र में रखकर नौ पुस्तकों की रचना की हैं। ये हैं- ‘गांधी और दलित भारत जागरण’, ‘गांधी और हमारा समय’, ‘गांधी : एक खोज’, ‘गांधी का साहित्य और भाषा-चिंतन’, ‘तुलसी और गांधी’, ‘गांधी और अंबेडकर’, ‘गांधी और हिंदी साहित्य’, ‘गांधी के आश्रम संदेश’ और ‘गांधी और अहिंसक हिंसा’।

आपकी अन्य रचनाओं में भी गांधी-दृष्टि की स्पष्ट झलक है। इनमें ‘हिंदी साहित्य और नेहरू’, ‘आधुनिकता और तुलसीदास’, ‘आलोचना के मुक्त वातायन’, ‘समालोचना : पाठ-पुनर्पाठ’, ‘आलोचना का देशी ठाठ’, ‘बदलाव के बरक्स’, ‘साहित्य साहित्य की
भारतीय परंपरा’ प्रमुख हैं। आपके संस्मरण ‘गाँव मेरा देश’ और नाटकों ‘शकुंतला का द्रोह’, ‘यमराज की अदालत’, ‘सुकरात मरता नहीं’, और ‘बिन पानी सब सून’ के नाम शामिल हैं।

कुल मिलाकर आपने समकालीन हिंदी साहित्य में गांधी-विचार को स्थापित करने का एक स्तुत्य प्रयास किया है और इसके माध्यम से साहित्य की भारतीय परंपरा को समृद्ध करने में महती भूमिका निभाई है।

आपकी कुछ स्थापनाओं को लेकर पाठकों के बीच सहमति-असहमति हो सकती है, लेकिन आपको पढ़ते हुए हमेशा यह एहसास होता है कि आपने अपने पक्ष को बड़ी बेबाकी एवं ईमानदारी के साथ सामने लाया है, जिसे नजरंदाज करना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन भी है। यही आपका ‘देशी ठाठ’ है, जो आपके व्यक्तित्व के साथ-साथ आपके कृतित्व को भी एक विशिष्ट पहचान देती है।

बहरहाल, मैं स्नातक एवं स्नातकोत्तर की पढ़ाई के दौरान ही आपकी रचनाओं को पढ़ता रहा हूं और उसे अपने विभिन्न आलेखों एवं पुस्तकों में संदर्भित भी करता रहा हूं। मुझे गांधी से संबंधित आपकी कुछ पुस्तकों की समीक्षा करने और आपके संस्मरण ‘गांव मेरा देस’ पर केंद्रित एक चर्चा में अपनी बात रखने का अवसर भी मिला है।

इधर, पिछले दिनों भागलपुर प्रवास के दौरान आपने कृपापूर्वक मुझे अपनी पुस्तक ‘साहित्य की भारतीय परंपरा’ आशीर्वाद स्वरूप भेंट की, जिसे पढ़कर ढ़ेर सारी नई जानकारियां मिलीं और कई विभ्रमों का सहज प्रत्याख्यान भी हुआ।

प्रस्तुत पुस्तक में कुल 15 आलेखों को संकलित कर प्रकाशित किया गया है। ये सभी आलेख अलग-अलग समय में लिखे गए हैं और इनके विषय एवं संदर्भ भी भिन्न-भिन्न हैं। इसके बावजूद गहराई से देखने पर सभी आलेख ‘साहित्य की भारतीय परंपरा’ से संबद्ध एवं आबद्ध नजर आते हैं ।

पुस्तक के प्रथम अध्याय (‘साहित्य की भारतीय परंपरा’) जोकि इस पुस्तक का शीर्षक भी है में ही लेखक ने इसके औचित्य और इसकी विशिष्टताओं को बखूबी स्पष्ट किया है। लेखक का कहना है कि भारतीय साहित्य अपने आप में विशिष्ट है और यह भारत की आत्मा एवं उसकी अस्मिता का प्रकटीकरण करती है। इसमें मनुष्य- मनुष्येतर के सह-अस्तित्व और प्रकृति संग मैत्रीभाव पर जोर दिया गया है।

यहां अभी पुस्तक के अन्य अध्यायों पर अलग-अलग टिप्पणी करने का अवकाश नहीं है। इसलिए हम आप सबों के लिए इस पुस्तक की विषय सूची प्रस्तुत कर रहे हैं, जिसे देखकर सहज ही पुस्तक के महत्व का अंदाजा लगाया जा सकता है-

01. साहित्य की भारतीय परम्परा
02. साहित्य और राज्यसत्ता
03. साहित्य बनाम लोक साहित्य
04. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की लोकधर्मी साहित्य-दृष्टि
05. भारतीय साहित्य में स्त्री-सशक्तीकरण की छवियां
06. कबीर और तुलसी : पूरक या विरोधी?
07. हिन्दी रचनाशीलता में स्त्री-मुक्ति की गांधीवादी अनुगूंज
08. कामायनी और गांधी-दर्शन
09. कुबेरनाथ राय का गांधी-भाष्य
10. निर्मल वर्मा का कथेतर गद्य : अहिंसक हिंसा का प्रत्याख्यान
11. हजारी प्रसाद द्विवेदी कुछ और भी हैं ‘कबीर’ के सिवा
12. रामविलास शर्मा और हिन्दी नवजागरण की अवधारणा
13. आचार्य शिवपूजन सहाय और हिन्दी नवजागरण
14. रामवृक्ष बेनीपुरी और हिन्दी नवजागरण
15. कृष्णदत्त पालीवाल : आलोचना की तीसरी आंख
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-सुधांशु शेखर, असिस्टेंट प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, स्नातकोत्तर दर्शनशास्त्र विभाग, ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा (बिहार)

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।

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