BNMU शिव का एक नाम उमेश/उमेश्वर भी है

शिव का एक नाम उमेश/उमेश्वर भी है

आज रविवार है, अर्थात् श्रावण मास का प्रथम दिवस। इस माह को शिवाराधन का माह भी कहते हैं। इस माह में आस्थावान स्त्री-पुरुष विशेष वन्दन-पूजन करते हैं। मैं इसी बहाने ‘शिव’ के विविध नामों का क्रमश: व्याकरणिक विश्लेषण करूँगा। अब तक मैं उनके छह नामों पर विमर्श कर चुका हूँ। आज मैं उनके उमेश/उमेश्वर नाम पर विचार करना चाहूँगा।

उमेश/उमेश्वर :
उमा+ईश= उमेश का सामान्य अर्थ होता है – हिमवान् और मेना (मैनाक) की पुत्री उमा का ईश, अर्थात् पति। सन्धि की भाषा में यहाँ गुण स्वर सन्धि है। आद्गुणः (1/6/87) सूत्र के अनुसार, ‘‘अवर्णादचि परे पूर्वपरयोरेको गुण आदेश: स्यात्। उपेन्द्र:/गंगोदकम् ,अर्थात् अवर्ण से अच् परे होने पर पूर्व और पर – दोनों स्थानों में एक गुण आदेश हो; यथा- उपेन्द्र और गंगोदक। दूसरे शब्दों में अ और आ को आत् कहते हैं। अ या आ के ठीक बाद इ या ई आए तो ‘ए’ होता है, अ या आ के परे उ या ऊ आए तो ‘ओ’ होता है, अ या आ के परे ऋ आए तो ‘अर्’ होता है; जैसे- देव+इन्द्र = देवेन्द्र, देव+ईश = देवेश, सूर्य+उदय = सूर्योदय, जल+ऊर्मि = जलोर्मि, देव+ऋषि =देवर्षि, महा+ऋषि= महर्षि।
ध्यातव्य है कि ‘उमेश’ में ‘आ’(उमा) के परे ‘ई’ का प्रयोग हुआ है। इसलिए, उपरिलिखित सूत्र के अनुसार यहाँ ‘उमेश’ के रूप में सन्धि हुई है।
समास की दृष्टि से ‘उमेश’ षष्ठी तत्पुरुष का उदाहरण है। द्रष्टव्य – षष्ठी (2/2/8), अर्थात् सुबन्तेन प्राग्वत्। राज-पुरुषः। षष्ठ्यन्त का सुबन्त के साथ समास हो। राज-पुरुषः में ‘राज्ञः’ इस षष्ठ्यन्त का ‘पुरुषः’ नामक सुबन्त के साथ समास हुआ है। ‘राजपुरुषः’ का लौकिक विग्रह राज्ञः पुरुष और अलौकिक विग्रह ‘राजन् ङ्स् पुरुष सु है।
इसी सूत्र के आधार पर ‘उमेश:’ का लौकिक विग्रह ‘उमायाः ईश:’ (उमा का ईश) होगा, जबकि अलौकिक विग्रह उमा ङ्स् ईश सु है।
‘उमा’ के तीन-चार निर्वचनात्मक अर्थ मिलते हैं –
(क) उ = शिव, मा = लक्ष्मी के समान पत्नी, अर्थात् पार्वती।
ओः – शिवस्य लक्ष्मी इव पत्नी या सा उमा अर्थात् शिव की लक्ष्मी!
(ख) उं – शिवं माति पतित्वेन, अर्थात् उ (शिव) को पतिभाव से देखने -पूजने -स्वीकारने वाली नारी उमा कहलायी।
(ग) उ मेति मात्रा तपसो निषिद्धा पश्चादुमाख्यां सुमुखी जगाम (कुमारसम्भवम् : कालिदास, 1/26), अर्थात् माता मेना के द्वारा यह कहकर मना किये जाने पर कि ओह! बस अब (शिव की तपस्या ) मत करो। बहुत हो गया। इसी से वह उमा कहलायी।
अतः, उमा का अर्थ यहाँ उस अविवाहिता पार्वती से है, जो शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या कर रही थी। इसी उमा के ईश (पति) को उमेश कहते हैं।
अब ‘उमेश’ के परार्ध ‘ईश’ पर विचार कर लिया जाए। ऐश्वर्यार्थक ईश् धातु (ईश् ऐश्वर्ये; 2/10) में पुल्लिंग ‘अच्’ प्रत्यय के योग से ‘ईश’ बनता है, जिसका अर्थ स्वामी/अपनाने वाला/ शक्तिशाली/ सर्वोच्च/प्रभुतासम्पन्न होता है। ईश ही वह परम शक्ति है, जो जीवों का (यहाँ उमा के सन्दर्भ में) ईशन या ‘शासन करता है।
पुनश्च, ‘ईश’ में ‘वरच्’ प्रत्यय के योग से ईश्वर (:) बनता है। इसका अर्थ किंचित् विशिष्ट होता है; यथा – ईशों में वरीय या वरिष्ठ, अर्थात् परम शक्तिशाली, सर्वोच्च शासक, सर्वप्रभुतासम्पन्न। कुल मिलाकर, उमेश का अर्थ हुआ — उमा का परम प्रभुतासम्पन्न पति। जब पति प्रभुतासम्पन्न होगा, तब प्रकारान्तर से पत्नी भी होगी। व्याकरणिक दृष्टि से उत्तरपद प्रधान होने के बावजूद व्यावहारिक दृष्टि से पूर्व पद की बलवत्ता स्वयंसिद्ध है।

बहादुर मिश्र
24/07/2021