BNMU। राष्ट्रीय सेवा योजना का स्थापना दिवस

राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) को 1969 में शुरू किया गया था।इसका उद्देश्य स्वैच्छिक समुदाय सेवा के माध्यम से युवा छात्रों के व्यक्तित्व और चरित्र का विकास है। यह बात एनएसएस समन्वयक डॉ अभय कुमार ने कही. गुरुवार को राष्ट्रीय सेवा योजना की स्थापना दिवस पर राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई एक ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा द्वारा आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि शुरूआत में राष्ट्रीय सेवा योजना 37 विश्वविद्यालयों में शुरू किया गया था. इसमें लगभग 40 हजार स्वयंसेवियों को शामिल किया गया था। समय बीतने के साथ-साथ यह अखिल भारतीय कार्यक्रम बन गया। वर्तमान में लगभग 39,695 एनएसएस इकाइयों में 36.5 लाख से अधिक स्वयंसेवी हैं, जो देश के 391 विश्वविद्यालयों / +2 परिषदों, 16,278 कॉलेजों और तकनीकी संस्थानों तथा 12,483 वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों में फैले हुए हैं। इसकी स्थापना के बाद से 4.78 करोड़ छात्रों को एनएसएस से लाभ हुआ है।कार्यक्रम के उद्घाटन करता प्रधानाचार्य डॉ. के. पी. यादव ने बताया कि प्रत्येक एनएसएस स्वयंसेवी को प्रति वर्ष कम से कम 120 घंटे अर्थात दो साल में 240 घंटे की सेवा करना अनिवार्य होता है। यह कार्य एनएसएस शाखाओं द्वारा अपनाए गए गांवों/झोपड़ियों या स्कूल / कॉलेज परिसरों में किया जाता है। आमतौर पर अध्ययन के घंटों के बाद इसे सप्ताहांत / छुट्टियों के दौरान किया जाता है। इसके अलावा, प्रत्येक एनएसएस इकाई स्थानीय समुदायों को शामिल करके कुछ विशेष परियोजनाओं के साथ छुट्टियों में अपनाए गए गांवों या शहरी झुग्गियों में 7 दिनों की अवधि के विशेष शिविरों का आयोजन करती है। प्रत्येक स्वयंसेवक को 2 वर्ष की अवधि के दौरान एक बार विशेष शिविर में भाग लेना जरूरी होता है। इस प्रकार, एक इकाई से लगभग 50 प्रतिशत एनएसएस स्वयंसेवी विशेष शिविर में भाग लेते हैं। उन्होंने कहा कि एनएसएस इकाइयां उस गतिविधि का आयोजन कर सकती है जो समुदाय के लिए प्रासंगिक है। समुदाय की जरूरतों के अनुसार गतिविधियां जारी हैं। मुख्य गतिविधियों वाले क्षेत्रों में शिक्षा और साक्षरता, स्वास्थ्य, परिवार कल्याण और पोषण, स्वच्छता, पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक सेवा कार्यक्रम, महिलाओं की स्थिति में सुधार, उत्पादन उन्मुख कार्यक्रम, आपदा राहत तथा पुनर्वास संबंधी कार्यक्रम, सामाजिक बुराइयों के खिलाफ अभियान, डिजिटल भारत, कौशल भारत, योग इत्यादि जैसे प्रमुख कार्यक्रमों के बारे में जागरूकता पैदा करना आदि शामिल है।

शिक्षाशास्त्र विभाग के प्रोफेसर इंचार्ज डॉ. नरेश कुमार ने कहा कि एनएसएस केंद्र सरकार का कार्यक्रम है। फिर भी केंद्र सरकार, राज्य / संघ शासित प्रदेश और शैक्षिक संस्थान इस कार्यक्रम के 3 स्तंभ हैं। देशभर में 29, 000 शैक्षिक संस्थानों का प्रभावी संचालन सीधे केंद्रीय युवा और खेल मंत्रालय के माध्यम से करना अंसभव है। केंद्र और राज्यों के बीच प्रभावी सहयोग/ साझेदारी के कारण राज्यों और शैक्षिक संस्थानों में कार्यक्रम का कार्यान्वयन संभव हो सका है।

उन्होंने कहा कि स्वैच्छिक समुदाय सेवा के माध्यम से छात्रों के व्यक्तित्व और चरित्र के विकास के प्राथमिक उद्देश्य के साथ राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) को शुरू किया गया था। एनएसएस का उद्देश्य ‘सेवा के माध्यम से शिक्षा’ है। एनएसएस की वैचारिक उन्मुखता महात्मा गांधी के आदर्शों से प्रेरित है। एनएसएस का आदर्श वाक्य “नॉट मी, बट यू” है। एक एनएसएस स्वयंसेवी ‘स्वयं’ से पहले ‘समुदाय’ को स्थान देता है। यह शिक्षा के तीसरे आयाम का हिस्सा है, अर्थात् मूल्यवर्धक शिक्षा है जो कि तेजी से महत्वपूर्ण बनती जा रही है। उन्होंने कहा कि स्वयं के व्यक्तित्व को विकसित करने के अलावा एनएसएस स्वयंसेवियों ने समाज के प्रति महत्वपूर्ण योगदान दिया है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए जंतु विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. अरुण कुमार ने कहा कि युवा और खेल मामलों का मंत्रालय बड़े पैमाने पर एनएसएस के विस्तार के लिए प्रतिबद्ध है। अभी तक एनएसएस में शामिल होने वाले छात्रों की संख्या 10% से कम है। एनएसएस के लिए वित्तीय सहायता बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं।

उन्होंने बताया कि छात्रों को एनएसएस के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए, यूजीसी ने सभी विश्वविद्यालयों को एनएसएस को क्रेडिट के साथ एक वैकल्पिक विषय के रूप में शुरू करने के लिए एक एडवाजरी जारी की है। एनएसएस के स्वयंसेवियों द्वारा किए अच्छे कार्यों के लिए मंत्रालय उन्हें पुरूस्कृत भी करता है। इसके तहत राष्ट्रीय स्तर पर वार्षिक एनएसएस पुरस्कार दिए जाते हैं जिसमें एनएसएस स्वयंसेवियों को गणतंत्र दिवस परेड, अंतर्राष्ट्रीय युवा शिविर, साहसिक कैंप आदि में भाग लेने का अवसर दिया जाता है।

कार्यक्रम का संचालन सीनेटर रंजन यादव ने किया. धन्यवाद ज्ञापन जनसंपर्क पदाधिकारी डॉ सुधांशु शेखर ने की. इस अवसर पर इतिहास विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. स्वर्णमणि, शोधार्थी सारंग तनय, संतोष कुमार, मणीष कुमार आदि उपस्थित थे।