BNMU। हिन्दी-साहित्य का देवदूत : दिनकर

हिन्दी-साहित्य का देवदूत : दिनकर

रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हिन्दी-साहित्य के उस देवदूत का नाम है, जो शापित होकर धरती पर उतर आया था। कहते हैं, तब वायु-तरंगों में मस्ती का तरन्नुम बज उठा था, धरती की क्यारी-क्यारी में खुशियों की बेलें लहलहा उठी थीं। कहते हैं, कामदेव ने अपने कमनीय कर-कमलों से सँवारते हुए उन्हें मदिर रागमय व्यक्तित्व सौंपा था तो प्रलयंकर शिव के त्रिनेत्र से निकली महाज्वाला ने उन्हें ‘अंगार-साधक’ की पदवी दे डाली। कंगन और करवाल, पायल और तलवार, फूल और शूल, शबनम और शोला, अमिय व हलाहल की एक समान साधना करने वाले दिनकर का व्यक्तित्व विरोध में अविरोध, असंतुलन में संतुलन का दीप्त उदाहरण है। आज की तिथि 23.09.2020 उनकी 112वीं जन्म-तिथि है। 24 अप्रैल, 1974 को दिवंगत होने से पूर्व दिनकर ने हिन्दी को साहित्य का पुष्कल उपहार दिया। चार दशकों में फैले दिनकर के विपुल साहित्य के कई आयाम हैं; जैसे- प्रबंधकाव्य, मुक्तककाव्य, बालकाव्य, गद्यकाव्य, निबंध, आलोचना, संस्मरण, संस्कृत्यात्मक इतिहास, डायरी, यात्रा-वृत्तांत, अनुवाद इत्यादि। इनके अतिरिक्त इनका मौखिक साहित्य भी कम नहीं है। इसमें संसद और संसद से बाहर दिए गए उनके विचारोत्तेजक भाषण आते हैं।
अंत में, उन्हीं के शब्दों में उनका स्मृत्यर्पण करता हूँ-

“दबी सी आग हूँ भीषण क्षुधा की,
दलित का मौन हाहाकार हूँ मैं।
सजग संसार, तू निज को सँभाले,
प्रलय का शब्द पारावार हूँ मैं।
बँधा तूफान हूँ, चलना मना है,
बँधी उद्दाम निर्झर- धार हूँ मैं।”

# डॉ. बहादुर मिश्र, पूर्व अध्यक्ष, विश्वविद्यालय हिंदी विभाग, तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर, बिहार