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BNMU। बीएनएमयू संवाद के एक वर्ष पूरे

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बीएनएमयू संवाद के एक वर्ष पूरे

कोरोना महामारी ने हमारे जीवन के सभी क्षेत्रों पर काफी नकारात्मक प्रभाव डाला है। इससे शिक्षा-व्यवस्था पर भी काफी प्रतिकूल असर पड़ा है और ऑफलाइन शैक्षणिक एवं सृजनात्मक गतिविधियाँ थम-सी गई है। लेकिन कोरोना आपदा को अवसर में बदलते हुए कुछ संस्थानों एवं व्यक्तियों ने ऑनलाइन शिक्षण एवं सृजन को एक नया आयाम देने का प्रयास किया है। इस कड़ी में बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उन्होंने ठीक एक वर्ष पूर्व कोरोना काल में लागू लाॅकडाउन के समय का सदुपयोग करते हुए बीएनएमयू संवाद नामक एक यू-ट्यूब चैनल की शुरूआत की। इसके माध्यम से उन्होंने बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय और शिक्षा जगत की सकारात्मक सूचनाओं एवं गतिविधियों को जन-जन तक पहुंचाने का सार्थक प्रयास किया।

यू-ट्यूब चैनल बीएनएमयू संवाद के एक वर्ष पूरे होने पर बुधवार को डाॅ. शेखर ने इसकी उपलब्धियों एवं कमियों की समीक्षा की। उन्होंने बताया कि अब तक इस चैनल के लगभग 4870 सबस्क्राइबर हो चुके हैं। साथ ही लोग इस चैनल को कुल एक लाख बासठ हजार आठ सौ बार देख चुके हैं। इस पर सात सौ से अधिक विडियो अपलोड किए जा चुके हैं। इनमें से कई विडियो हजार से अधिक लोगों द्वारा देखे गए हैं। एक विडियो को पाँच हजार चार सौ व्यू मिला है।

बीएनएमयू संवाद के माध्यम से एक राष्ट्रीय सम्मेलन, एक अंतरराष्ट्रीय वेबीनार, 7 परिचर्चा, 10 राष्ट्रीय वेबिनार का सफलतापूर्वक आयोजन किया जा चुका है। इसके अलावा इस यू-ट्यूब चैनल पर दर्जनों व्याख्यानों का आयोजन हो चुका है। इसमें पूर्व सांसद एवं संस्थापक कुलपति प्रोफेसर डाॅ. रमेन्द्र कुमार यादव रवि, पूर्व सांसद एवं पूर्व कुलपति पद्मश्री प्रोफेसर डाॅ. रामजी सिंह, कुलपति प्रोफेसर डाॅ. राम किशोर प्रसाद रमण, प्रति कुलपति प्रोफेसर डाॅ. आभा सिंह, पूर्व कुलपति प्रोफेसर डाॅ. अवध किशोर राय, पूर्व प्रभारी कुलपति प्रोफेसर डाॅ. ज्ञानंजय द्विवेदी, पूर्व प्रति कुलपति प्रोफेसर डाॅ. फारूक अली, अकादमिक निदेशक प्रोफेसर डाॅ. एम. आई. रहमान, प्रधानाचार्य डाॅ. के. पी. यादव, बीएनमुस्टा के महासचिव प्रोफेसर डाॅ. नरेश कुमार, सिंडिकेट सदस्य डाॅ. जवाहर पासवान आदि के व्याख्यान हो चुके हैं। इस चैनल पर कई महत्वपूर्ण कार्यक्रमों का लाइव प्रसारण किया गया है। कई कलाकारों को इसमें अपनी प्रतिभा के प्रदर्शन का अवसर भी मिला।

उन्होंने बताया कि सबसे बड़ी कमी एक स्थाई कर्मी का नहीं होना है। यदि एक-दो व्यक्ति इसमें स्थाई रूप से कार्य कर रहे होते, तो आज यह चैनल काफी आगे होता। इसके अलावा विडियो क्वालिटी भी अभी उच्च स्तरीय नहीं है।

उन्होंने आशा व्यक्त की है कि आने वाले दिनों में कमियों को दूर किया जाएगा और सब्सक्रिप्शन बढ़ेंगे। उन्होने इसमें प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से सहयोग करने वाले सभी लोगों विशेष रूप से तकनिकी सहयोगी मणिष कुमार एवं सौरभ कुमार चौहान के प्रति आभार व्यक्त किया है।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

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