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Bihar बिहार दिवस पर परिचर्चा आयोजित। काफी गौरवशाली है बिहार का इतिहास : कुलपति

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*बिहार दिवस पर परिचर्चा आयोजित*

बिहार का इतिहास काफी गौरवशाली है। हमें अपनी इस ऐतिहासिक विरासत को संरक्षित एवं संवर्धित करने और उससे प्रेरणा लेकर वर्तमान को संवारने की जरूरत है।

यह बात कुलपति प्रोफेसर डॉ. आर. के. पी. रमण ने कही। वे बुधवार को केंद्रीय पुस्तकालय सभागार में बिहार : इतिहास एवं संस्कृति विषयक परिचर्चा की अध्यक्षता कर रहे थे। कार्यक्रम का आयोजन बिहार दिवस के उपलक्ष्य में किया गया।

उन्होंने कहा कि हमें अपने अतीत से प्रेरणा ग्रहण कर वर्तमान को सजाना-संवारना है। वर्तमान से ही भविष्य की राह निकलती है।

उन्होंने कहा कि बिहार में विद्यार्थियों में प्रतिभा एवं क्षमता की कमी नहीं है। ये विद्यार्थी ही हमारी आन, बान एवं शान हैं।

कुलानुशासक डॉ. बी. एन. विवेका ने कहा कि भारत का इतिहास बिहार के इतिहास के बगैर अधूरा है।

जंतु विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. नरेंद्र श्रीवास्तव ने कहा कि बिहार ने ही दुनिया को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाया है। यहां वैदिक काल में भी सभा एवं समितियां होती थीं और बौद्ध काल में वैशाली में गणतंत्र का उल्लेख मिलता है।

आईक्यूएसी (निदेशक) डॉ. नरेश कुमार ने कहा कि बिहार की सभ्यता-संस्कृति काफी पुरानी एवं समृद्ध है। लेकिन आज सबसे बड़ा सवाल है कि हमारा वर्तमान कैसे संवरेगा ?

विकास पदाधिकारी डॉ. ललन प्रसाद अद्री ने कहा कि आधुनिक बिहार के निर्माण में सच्चिदानंद सिन्हा सहित कई लोगों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

साहित्यकार डॉ. सिद्धेश्वर काश्यप ने कहा कि बिहारी प्रतिभाएं भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी अपनी पहचान बना रही है।

के. पी. कालेज, मुरलीगंज के प्रधानाचार्य डॉ. जवाहर पासवान ने कहा कि गौतम बुद्ध से बिहार की पूरी दुनिया में पहचान है।

कुलसचिव डॉ. मिहिर कुमार ठाकुर ने कहा कि हमें अपने बिहार पर गर्व है। हमें गर्व है कि हम बिहारी हैं।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए उपकुलसचिव (स्थापना) डॉ. सुधांशु शेखर ने कहा कि
बिहार में प्रतिभाओं का खजाना है। बिहारी प्रतिभाएं भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी अपनी पहचान बना रही है।

कुलपति के निजी सहायक शंभू नारायण यादव ने कहा कि प्राचीन काल में बिहार शिक्षा के मामले में विश्व में अग्रणी था। लेकिन वर्तमान समय में शिक्षा-व्यवस्था में गिरावट आई है।

इस अवसर पर दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. शंभू प्रसाद सिंह, डॉ. अभय कुमार, डॉ. उपेंद्र प्रसाद यादव, डॉ. शंकर कुमार मिश्र, डॉ. अनिल कुमार, डॉ. बुद्धप्रिय, डॉ. डी. के. यादव, सुशील कुमार, फिरोज मंसूरी, पृथ्वीराज यदुवंशी, शोधार्थी सारंग तनय, माधव कुमार, अरमान अली, बिमल कुमार, सौरभ कुमार चौहान, आदित्य रमण, ममता कुमारी, अंजली कुमारी, मेघा कुमारी, अंशु कुमारी, सिंपी कुमारी, चांदनी कुमारी, लक्ष्मी कुमारी, नीतू कुमारी, शशिकांत कुमार, सनी कुमार, कृष्णा कुमार, निखिल कुमार, संतोष, दिनकर कुमार, लक्ष्मण कुमार, दिलखुश कुमार, सोनू कुमार, नीतीश कुमार, पावेल कुमार, भवेश कुमार, स्वाति कुमारी ,प्रिया कुमारी, सुमन, उपेंद्र कुमार, चंद्रहास कुमार, अभय कुमार, कुंदन कुमार, डॉ. सर्जुन कुमार, रमन, जयराम, सोनू, भारती, प्रिया, रंजन, काजल, किरण, विनोद कुमार, दीपक कुमार, भगत सिंह, सुशील कुमार, गोल्डन कुमार, डॉ. अभय कुमार, आभास कुमार, मंटू कुमार, अंशु कुमार आनंद, अनिल कुमार, विक्रम कुमार, रूपेश कुमार, अंकिता आनंद, सुनील कुमार, गोलू कुमारी, दीपक कुमार, प्रभास कुमार, देवराज कुमार, कुमार संतोष कुमार राम आदि उपस्थित थे।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

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