PDS पीडीएस शोध शुद्धि कार्यक्रम का आयोजन

इन्फलिवनेट, यूजीसी, नई दिल्ली द्वारा ‘पीडीएस शोध शुद्धि’ भारत के सभी विश्वविद्यालयों में अनिवार्यतः लागू कर दी गई है। इसका उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण शोध को बढ़ावा देना और साहित्यिक चोरी (प्लैग्रिज्म) की रोकथाम करना है। इन्हीं मुद्दों को लेकर इन्फलिवनेट, यूजीसी द्वारा जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है और देश के सभी राज्यों के विश्वविद्यालयों को इस अभियान से चरणबद्ध रूप से जोड़ा जा रहा है। बिहार एवं झारखंड राज्य के विश्वविद्यालयों के लिए संयुक्त जागरूकता एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम आज 7 जुलाई, 2021 को आयोजित की गई।

इस कार्यक्रम में सभी विश्वविद्यालयों के प्लैग्रिज्म डिटेक्शन सेंटर (पीडीसी) के विश्वविद्यालय समन्वयकों ने विशेष रूप से भाग लिया। यह कार्यशाला शिक्षकों, शोधार्थियों एवं छात्रों को जागरूक करने के लिए आयोजित की गई थी।

यह कार्यशाला दो सत्रों पर आधारित था। प्रारंभ में युजीसी के सचिव मनोज कुमार ने सभी का स्वागत किया और सभी समन्वयकों का परिचय प्राप्त किया।

उन्होंने अपने अभिभाषण में बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय की प्रशंशा की। उन्होंने कहा कि यह बिहार की पहला विश्वविद्यालय है, जिसने प्लैग्रिज्म लागू किया है। उन्होंने बताया कि बीएनएमयू ने अभी तक 324 थीसिस की जांच की है। इसमें और तेजी लाने की ज़रूरत है। उन्होंने विश्वविद्यालय समन्वयक को इस ओर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने प्लैग्रिज्म से संबंधित नीतियों की जानकारी दी और संबंधित पीएच. डी. अधिनियम 2019 का अनुपालन सुनिश्चित करने पर बल दिया। उन्होंने सभी विश्वविद्यालयों के समन्वयकों से अपील की थेसिस अवार्ड होने के बाद उसे शोध गंगा पर यथाशीघ्र अपलोड करवाएं। उन्होंने इस तरह की कार्यशाला का आयोजन विश्वविद्यालय में भी करवाने की जरूरत बताई।

कार्यशाला में बीएनएमयू, मधेपुरा के विश्वविद्यालय समन्वयक सह निदेशक अकादमिक प्रोफेसर डाॅ. एम. आई. रहमान ने अपनी कई जिज्ञासाएं वक्त कीं और कई संबंधित प्रश्न भी पूछे, जिससे विश्वविद्यालय को इस संबंध में आगे बढ़ने में काफी मदद मिलेगी।

कार्यशाला में उपकुलसचिव अकादमिक डाॅ. सुधांशु शेखर ने भी भाग लिया।

एग्लैक्टिक इंडिया के समन्वयक डाॅ. प्रीति ने विस्तारपूर्वक आयरिजिनल सॉफ्टवेयर जो पहले उर्कुंड के नाम से जाना जाता था, पर चर्चा की। शोध ग्रंथों को अपलोड करने, रिपोर्ट लेने, एनालिसिस करने एवं सिमिलरिटी के निदान करने से संबंधित जानकारी दी।

एग्लैक्टिक इंडिया के इंचार्ज प्रकाश सांडा ने प्लैग्रिज्म डिटेक्शन सॉफ्टवेयर (पीडीएस) से जुड़ी महत्त्वपूर्ण जानकारी दी।

मालूम हो कि बीएनएमयू में शोध का बेहतर माहौल बनाने तथा गुणवत्तापूर्ण शोध को बढ़ावा देने हेतु कई निर्णय लिए गए हैं। विश्वविद्यालय में शोध-प्रबंध को अवार्ड हेतु जमा करने के पूर्व प्लैग्रिज्म जाँच से गुजारा जाएगा। भारत के राजपत्र असाधारण, भाग-3, खंड-4, 23 जुलाई, 2018 की अधिसूचना के आलोक में विश्वविद्यालय के पूर्व स्थापित प्लैग्रिज्मम डिटेक्शन सेंटर (पीडीसी) को पुनः क्रियाशील करने का निर्णय लिया गया है।

विश्वविद्यालय स्तर पर एक शैक्षिक सत्यनिष्ठा पेनल (आईएआईपी) तथा विभागवार विभागीय शैक्षिक सत्यनिष्ठा पेनल (डीएआईपी) के गठन का भी निर्णय लिया गया है। यदि शैक्षिक समुदाय का कोई सदस्य उपयुक्त प्रमाणपत्र के साथ संदेह व्यक्त करता है कि किसी दस्तावेज में साहित्यिक चोरी का कोई प्रकरण बनता है, तो वह इस मामले की जानकारी विभागीय शैक्षिक सत्यनिष्ठा पेनल (डीएआईपी) को देगा। डीएआईपी ऐसी शिकायत की प्राप्ति पर मामले की जाँच करेगा तथा अपनी सिफारिश विश्वविद्यालय स्तर पर एक शैक्षिक सत्यनिष्ठा पेनल (आईएआईपी) को सौंपेगा।

 

आईएआईपी स्वयंमेव भी साहित्यिक चोरी का संज्ञान ले सकते हैं और नियमानुसार कार्रवाई कर सकते हैं।

आगे विश्वविद्यालय में सभी शोध-प्रबंधों को शोधगंगा/इन्फलिवनेट पर अपलोड करने का भी निर्णय लिया जा चुका है।