Culture कारपोरेट कल्चर : मंथरा, कैकई एवं विभीषण की पॉपुलरिटी खतरनाक/ लेखक- डॉ. प्रणय प्रियंवद, जमालपुर, मुंगेर, बिहार

  • कारपोरेट कल्चर : मंथरा, कैकई एवं विभीषण कीपॉपुलरिटी खतरनाक
    लेखक- डॉ प्रणय प्रियंवद, जमालपुर, मुंगेर, बिहार

रा = राष्ट्रीय
म= मन

राम कथा का सबसे पसंदीदा पात्र आपके लिए कौन है? किसी को कैकई पसंद नहीं होगी। मंथरा पसंद नहीं होगी। लेकिन समय ऐसा है कि हमारे आस-पास छल-प्रपंच इतना बढ़ गया है कि रामायण के केकई, मंथरा और महाभारत के शकुनी जैसे पात्रों का बोलबाला हो गया है। हर ऑफिस में आपको एक मंथरा मिल जाएगी। जैसे शकुनी भी मिल जाएगा। जैसे वह विभीषण मिल जाएगा जिसका मकसद राम को सही रास्ता दिखाने के बजाय सिर्फ इधर की बात उधर करने वाला है। मंथरा, शकुनी और नए विभीषण जैसे पात्र बॉस के सबसे करीब होते हैं। ये जाति के खेल से लेकर बॉस तक अवैध रम पहुंचाने का भी खेल खेलते हैं। बॉस जैसे भी खुश हो, वह सब करने को तैयार। कोई बॉस राम होने की योग्यता भी नहीं रखता तो उसे सबरी कहां से मिलेगी, लक्ष्मण कहां से मिलेगा। सीता भी मुश्किल से ही मिले। हां उसे राम के बजाय रम जरुर मिलेगा। रामायण की पात्र सबरी एक दलित महिला थी औऱ राम ने उसके हाथ से उसके जूठे बेर खाकर यह बताया कि वे जातिवादी नहीं थे। बुद्ध ने भी सुजाता के हाथों खीर खाया था और ज्ञान की प्राप्ति हुई।

राम की सीता भी भगवान राम की सीता नहीं बल्कि आम राम की पत्नी है जो जीवन में कई तरह से प्रताड़ना झेलती है। संघर्ष करती है। वह अशोक वाटिका से अपने पावर का इस्तेमाल कर कहां भाग पाती है?
राम तो मर्यादा पुरुषोत्तम थे। राम तो इतने विनम्र थे कि वे नदी पार करने के लिए केवट जाति के नाविक का पैर पड़ने लगते हैं। केवट भी राम का पैर इसलिए धोते हैं कि कहीं उनकी नाव से राम के पैर की धूल ना लग जाए और नाव, अहिल्या जैसी कोई औरत न बन जाए। अहिल्या वाले राम भगवान लगते हैं पर ज्यादातर बार तुलसी के राम भगवान राम नहीं हैं बल्कि वे सामान्य मनुष्य की तरह हैं। वे सीता के लापता होने पर व्याकुल हो जाते हैं। पेड़, पौधों, फूलों पत्तियों से पूछने लगते हैं। वे बाली से जीतने के लिए सुग्रीव को बुद्धि देते हैं। वानरों की सेना बनाते हैं। आक्रमण करते हैं। युद्ध लड़ते हैं। लक्ष्मण के मूर्छित हो जाने पर वे कोई जादू कर उसे जगा नहीं पाते। हनुमान जब पहाड़ को उठा कर ले आते हैं तो उस पर उगी संजीवनी बूटी से लक्ष्मण को होश में लाते हैं। रावण के तलवार से लहुलुहान अपने भक्त जटायु के शरीर को जादू से ठीक नहीं कर पाते। तुलसी के राम, खास नहीं आम हैं। इसलिए सत्ता के राम को कैसा होना चाहिए यह समझना चाहिए। बॉस को कैसा होना चाहिए, यह समझना चाहिए। रामचरितमानस जैसी चर्चित और इतनी पढ़ी जाने वाली कथा के उपलब्ध होने के बावजूद मंथरा, और कैकई को नहीं समझ पाए तो ठीक नहीं। ऐसा हो नहीं सकता कि कोई महिला संगठन भी मंथरा और कैकेई को ठीक कहे। यह और बात है अब के दौर में कोई भी फालतू सा नया तर्क गढ़ा जा सकता है। कोई मंथरा नाम का संगठन भी बना सकता है पब्लिसिटी के लिए नए तर्कों के साथ। मेरे शहर में एक महात्मा हर साल आते थे। वे लगातार पांच-सात दिनों तक सड़क किनारे एक निश्चित दूरी तक टहलते और सीता राम.. सीता राम कहते रहते। उनकी खासियत यह कि वह साथ में कबीर के दोहे भी बीच-बीच में गाते। कबीर ने जब रामानंद जी का महात्म्य सुना तो उऩका शिष्य बनने की ठान ली। एक दिन वे रात रहते ही पंच गंगा घाट की सीढ़ियों पर जा पड़े, जहां से रामानंद जी स्नान करने के लिए उतरते थे। स्नान के लिए जाते समय अंधेरे में रामानंद जी का पैर कबीर के ऊपर पड़ गया। रामानंद बड़े संत थे वे बोल पड़े- राम, राम कह। कबीर ने रामानंद के इन्हीं शब्दों को गुरुमंत्र मान लिया और फिर खुद को रामानंद का शिष्य बताने लगे।

गांधी के राम, रामराज्य वाले राम हैं। दांडी मार्च के 20 मार्च, 1930 को नवजीवन पत्रिका में ‘स्वराज्य और रामराज्य’ शीर्षक से एक लेख गांधी ने लिख था। इसमें गांधीजी ने राम राज्य की व्याख्या की- ‘स्वराज्य के कितने ही अर्थ क्यों न किए जाएं, तो भी मेरे नजदीक तो उसका त्रिकाल सत्य एक ही अर्थ है और वह है रामराज्य। यदि किसी को रामराज्य शब्द बुरा लगे तो मैं उसे धर्मराज्य कहूंगा। रामराज्य शब्द का भावार्थ यह है कि उसमें गरीबों की संपूर्ण रक्षा होगी, सब कार्य धर्मपूर्वक किए जाएंगे और लोकमत का हमेशा आदर किया जाएगा। सच्चा चिंतन तो वही है जिसमें रामराज्य के लिए योग्य साधन का ही उपयोग किया गया हो। यह याद रहे कि रामराज्य स्थापित करने के लिए हमें पाण्डित्य की कोई आवश्यकता नहीं है। जिस गुण की आवश्यकता है, वह तो सभी वर्गों के लोगों- स्त्री, पुरुष, बालक और बूढ़ों- तथा सभी धर्मों के लोगों में आज भी मौजूद है। दुःख मात्र इतना ही है कि सब कोई अभी उस हस्ती को पहचानते ही नहीं हैं। सत्य, अहिंसा, मर्यादा-पालन, वीरता, क्षमा, धैर्य आदि गुणों का हममें से हरेक व्यक्ति यदि वह चाहे तो क्या आज ही परिचय नहीं दे सकता?’

गांधी जब राम राज्य की ऐसी व्याख्या करते हैं तो वे राम में राष्ट्रीय मन को जैसे देखते हैं। रा = राष्ट्रीय, म= मन। गांधी के राम उन्माद नहीं फैलाते। वे लड़ाते नहींं, वे जोड़ते हैं। वे सबको सन्मति देते हैं।

कबीर के राम धनुर्धर राम नहीं हैं। वे ब्रह्म के पर्याय राम हैं-कबीर ने कहा-
दसरथ सुत तिहुं लोक बखाना।
राम नाम का मरम है आना।।

कबीर ने लिखा है-
मोमे तोमे सरब मे जहं देखु तहं राम
राम बिना छिन ऐक ही, सरै न ऐको काम।
(मुझ में तुम में सभी लोगों में जहां देखता हूं वहीं राम हैं, राम के बिना एक क्षण भी प्रतीत नहीं होता है, राम के बिना कोई कार्य सफल नहीं होता है।)
कबीर कुत्ता राम का, मोतिया मेरा नाम। गले राम की जेवरी, जित खैंचे तित जाऊं।
(मैं तो राम का कुत्ता हूं, और नाम मेरा मुतिया यानी मोती है, गले में राम की जंजीर पड़ी हुई है, उधर ही चला जाता हूं, जिधर वह ले जाता है।)
राम, रावण से जीत जाते हैं पर वे लव-कुश से हारते हैं। कबीर के उस राम को, तुलसी के राम को और गांधी के राम को मेरा प्रणाम। उस राम को प्रणाम जो लोकगीतों में जन्म से मरण तक साथ रहते हैं। राम नाम सत्य है…। राम जी के भइले जनमवां हो…।

 

फोटो- राजा रवि वर्मा की पेंटिंग