BNMU बच्चे वो भी जो, बिनते है कूड़ा

बच्चे वो भी जो, बिनते है कूड़ा

छोटे- छोटे बच्चे आपने भी कही – न- कही जरूर देखा होगा जो गंदे कपड़े और नंगे पाँव में होगें पीठ पर एक बड़ा -सा बोड़ा लिए , जो कचड़े के ढेर से प्लास्टिक बिनते तो कभी जलावन बिछते रहते. मुहल्ले में भी कभी इस गली तो उस गली से सड़क तक जाते वही जिनकी उम्र स्कूल जाने की होती उन्हें भूख की चिंता सता रही होती . और अब कोरोना जैसी महामारी के साथ विभिन्न प्रकार की महामारी अपना पांव पसारने लगी है लोगों के जीवन पर बढ़ता संकट लगातार अर्थव्यवस्था का गिरता स्तर लोगों की जीवनशैली पर बुरा प्रभाव डाल रहा है |बच्चे खुद के साथ परिवार की चिंता भी करते देखे जाते हैं छोटी -सी उम्र में वे शाम के समय में उतना जलावन चुनते हैं जितने से कम- से- कम पूरे परिवार का खाना बन सकें. लोगों की नजर में ये गंदे बच्चे होतें है ं|गरीबी एक गंभीर समस्या है ,जो चलती ही आ रही हैं |

क्या आपने इसके पीछे की वजह जानने की कोशिश की. मिली जानकारी के अनुसार इनके परिवार के स्तर के बारे में पता चलता हैं कि ये किस तरह अपने परिवार में रह रहे हैं. परिवार की स्थिति क्या है और गरीबी ने इन्हें कितना मजबूर किया हैं बात बिते वर्ष की करे तो कोरोना जैसी वैश्विक महामारी की रोकथाम को लेकर सरकार द्वारा चलाया गया लाॅकडाउन की लंबी अवधि ने इन्हें गरीबी की ओर करीब लाने में कोई कसर नही छोडी एक तो ये पहले से ही गरीब होते हैं ये शिक्षित भी नहीं होते कि कुछ और कर सके. रोजमर्रा के काम के आधार पर अपना और अपने परिवार का भरणपोषण करते है इन तक सरकारी योजनाओं का लाभ भी समुचित रूप से नहीं पहुंच पाता है ं. ये बच्चे भी हमारे देश और देश का ही हिस्सा है ं इनके बेहतर भविष्य की कामना हमसब भी थोड़ा मिलकर करें तो क्या कसूर है. ये बच्चे तो बेकसूर है ं| प्यार और थोड़ा सम्मान इन्हें भी दें . सरकार द्वारा चलाए जा रहे कई योजनाओं की जानकारी सही मायने में नहीं पता होतें और ऊपर से गरीबी का दंश इन्हें झेलना पड़ता हैं. ऐसे में उनके बच्चे की शिक्षा में व्यवधान होना स्वाभाविक है ं. बच्चे भी अपनी छोटी – सी उम्र में अपने स्थिति को देखते हुए परिवार की जिम्मेदारी को समझते हैं और निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ते जलावन की जुगाड़ में में ईधर से उधर भटकते रहते हैं. कचड़े की ढेर से प्लास्टिक या कुछ जरुरी वस्तु चुनते रहते हैं जिसे बेच कर 2-4 रूपये होने की चाह में लगे रहते हैं.जहाँ उन्हें पुस्तक की थैला होना चाहिए था उसकी जगह कचड़े का बोझा और लडखडाते पांव छोटी- सी उम्र में इतनी जिम्मेदारी कहा ं तक सही है ं! इनकी किस्मत क्या यही है ं ? हम सब चाहे तो थोडी़ मदद कर इनकी भविष्य को बेहतर बनाने की ओर पहल कर सकते हैं . बच्चे के लिए शिक्षा कितनी महत्ता रखती है ंं, इसके मायने का होना आत्मनिर्भर बनाने में कितनी अहम योगदान निभाता हैं| बच्चों की शिक्षा पाने में होने वाली कई समस्याएं जिनके कारण उसकी शिक्षा पीछे छूटती चली जाती हैं वही ऐसे बच्चे में हीनभावना अपना घर न कर लें. क्यो न इनके शिकार होने से इन्हें बचाया जाए. वही समाज के लोगों , शिक्षकों की पहल का इस ओर होना अनिवार्य है ं जरूरत है ऐसे बच्चों को भंवर से निकाल कर इन्हें बेहतर भविष्य हेतु आगे की राह दिखाना जिससे एक बेहतर समाज के साथ विकसित देश की कल्पना करना जायज़ होगा . वही सरकार को चाहिए कि वे उन योजना को धरातल पर लाने की ओर विशेष ध्यान दें. ताकि सम्मुख रूप से उन बच्चों तक लाभ आसानी से पहुँच सकें. जिससे बच्चे अपने जीवन को खुशहाल तरीके से निर्वहन कर बेहतर भविष्य बनाने की ओर अग्रसर हो|

कौस्तुभा
अर्थशास्त्र
बी.एन.एम.यू मधेपुरा |