BNMU। विश्व दर्शन दिवस पर तीन व्याख्यानों का आयोजन*

तीन व्याख्यानों का आयोजन

राष्ट्र मात्र एक भौगोलिक इकाई नहीं है और न ही यह सत्ता का एक केंद्र मात्र है। वास्तव में राष्ट्र एक सांस्कृतिक एवं मूल्यात्मक इकाई और भावनात्मक एवं आत्मिक संरचना है। यह संरचना राष्ट्र के सभी नागरिकों से मिलकर बनती है। कोई भी राष्ट्र व्यक्तियों का सम्मिलित पूंज है।

यह बात कार्यक्रम के उद्घाटनकर्ता भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. रमेशचन्द्र सिन्हा ने कही। वे भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् द्वारा संपोषित व्याख्यान माला का उद्घाटन कर रहे थे। यह आयोजन स्नातकोत्तर दर्शनशास्त्र विभाग द्वारा विश्व दर्शन दिवस के उपलक्ष्य में गुरुवार को केंद्रीय पुस्तकालय सभागार में आयोजित हुआ।उन्होंने कहा कि प्रत्येक राष्ट्र की अपनी-अपनी अस्मिता होती है। यह अस्मिता ही राष्ट्र की असली पहचान हैं। इसलिए राष्ट्रीय अस्मिता के लिए किसी राष्ट्र के सभी नागरिकों का राष्ट्र के प्रति भावनात्मक लगाव या राष्ट्रभक्ति जरूरी है। किसी भी समान्य मनुष्य का अपनी राष्ट्रीयता से ऊपर उठना संभव नहीं है। राष्ट्रीयता को छोड़ना किसी वृक्ष के अपनी जड़ों से कटने और शरीर से आत्मा के अलग होने के समान है।उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक मूल्यों के कारण ही विभिन्न देश की भिन्न-भिन्न राष्ट्रीयता है। किसी भी राष्ट्र का एक चरित्र होता है और उस चरित्र को उसके मूल्यों के द्वारा ही हम जानते हैं। भारतवर्ष में अध्यात्मिकता पर अधिक बल है और पश्चिम में भौतिकता पर अधिक बल है।उन्होंने कहा कि भारतीय राष्ट्रवाद पश्चिम के राष्ट्रवाद से काफी भिन्न एवं व्यापक है। भारतीय राष्ट्रवाद में वसुधैव कुटुंबकम् एवं सर्वेभवन्तु सुखिनः की भावना का समावेश है। इसमें हिंसा एवं विस्तारवाद के लिए कोई जगह नहीं है।कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बीएनएमयू, मधेपुरा के कुलपति प्रोफेसर डॉ. राम किशोर प्रसाद रमण ने कहा कि शिक्षा ही मानव को पशु से अलग करती है। अतः हमें सभी व्यक्तियों तक शिक्षा को पहुँचाने की जरूरत है।उन्होंने कहा किनैतिक जीवन ही जीने योग्य है। क्योंकि नैतिकता में आंतरिक शक्ति होती है और यही असली शक्ति है।

उन्होंने कहा कि आज हमें प्राचीन मूल्यों एवं आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के बीच समन्वय करने की जरूरत है। हमें यह देखना होगा कि आधुनिकता की दौड़ में हम अपनी जड़ों से नहीं कटें और अपने नैतिक मूल्यों को दरकिनार नहीं करें। अतः शिक्षा में नैतिकता का समावेश करने की जरूरत है। यदि विद्यार्थियों का चरित्र-निर्माण नहीं होगा, तो शिक्षा अर्थहीन हो जाएगी।

उन्होंने कहा कि गाँधी अंतिम व्यक्ति की आवाज थे। गाँधी-दर्शन में ही दुनिया की सभी समस्याओं का सबसे बेहतर एवं कारगर समाधान है। गाँधी विचार के आधार पर हम आतंकवाद, पर्यावरणीय असंतुलन, आर्थिक मंदी आदि सभी चुनौतियों का मुकाबला कर सकते हैं।

इस अवसर पर तीन व्याख्यानों का आयोजन किया जाएगा। प्रथम व्याख्यान भारतीय अस्मिता का पुनरावलोकन विषय पर बीएनएमयू, मधेपुरा की प्रति कुलपति प्रोफेसर डॉ. आभा सिंह का हुआ। उन्होंने कहा कि भारतीयता का अर्थ मानवता है। भारत ने दुनिया को मानवता का संदेश दिया है। भारतीय धर्मों ने कभी भी दुनिया के किसी धर्मों के साथ कोई भेदभाव नहीं किया।

उन्होंने कहा कि भारतीय समाज में कई उच्च आदर्श एवं मूल्य रहे हैं। यही आदर्श एवं मूल्य हमारी अस्मिता का मूलभूत आधार हैं। हमें इन उदात्त मूल्यों को आगे बढ़ाना चाहिए और जो अनुपयोगी परंपराएँ हैं, उन्हें हमें छोड़ देना चाहिए। साथ ही नवीन मूल्यों का सृजन भी होना चाहिए। शिक्षा को मूल्यों से जोड़ना चाहिए।

उन्होंने कहा कि व्यापक अर्थों में संस्कृति जीवनशैली का नाम है। हमारी संस्कृति ने दुनिया को सत्यं शिवम् सुन्दरम् का संदेश दिया है।

शिक्षा, समाज एवं नैतिकता विषय पर द्वितीय व्याख्यान प्रोफेसर डॉ. प्रभु नारायण मंडल, पूर्व अध्यक्ष दर्शनशास्त्र विभाग, तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर का हुआ। उन्होंने कहा कि समाज नियमों से चलता है। एक व्यवस्था एवं नैतिकता ही समाज को संचालित करता है। नैतिक जीवन ही श्रेष्यष्कर है।

उन्होंने कहा कि नैतिक कर्मों का परिणाम सुखद एवं हितकारी होता है। अनैतिक कर्म दुखदायी होते हैं। नैतिक कर्मों का पालन करने से हमारा जीवन बेहतर होता है और हमें आत्मसंतुष्टि भी मिलती है। अतः हमें समाज में नैतिकवानों का सम्मान करना चाहिए, अनैतिक लोगों का नहीं।

उन्होंने कहा कि व्यक्ति के अस्तित्व की निरन्तरता, उसकी सुरक्षा एवं संरक्षा, गरिमा के साथ जीवन जीना-मुख्य रूप से ये ही वे उद्देश्य हैं जिनके लिए समाज का निर्माण हुआ है। वस्तुतः समाज व्यक्ति के लिए एक अनिवार्यता है, क्योंकि इसके बिना वह जीवित नहीं रह सकता, गरिमा के साथ जीने की बात तो दूर।

उन्होंने कहा कि बेहतर भविष्य के निर्माण के लिए नए मूल्यों को भी स्वीकारने की जरूरत है और साथ ही अतीत के उन मूल्यों का परित्याग करने की भी आवश्यकता है जो भविष्य में बेहतर समाज के निर्माण में बाधक होते हैं।

तीसरे व्याख्यानकर्ता गाँधी विचार विभाग, तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. विजय कुमार समकालीन चुनौतियाँ और गाँधी विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि आज की पहली सबसे बड़ी चुनौती है कि हम उच्च विचारों को यथार्थ की धरातल पर उतारें और दूसरी चुनौती है कि हम अपनी मुक्ति से आगे बढ़कर सर्वमुक्ति की ओर बढ़ें।

उन्होंने कहा कि आज पूँजी का पाप, हिंसा का श्राप एवं धरती का ताप बढ़ता जा रहा है।

उन्होंने कहा कि आज गाँधी के विचारों की प्रासंगिकता बढ़ गई है। आज गाँधी को अपनाना हमारी मजबूरी हो गई है। क्योंकि गाँधी दर्शन में ही आतंकवाद, पर्यावरणीय असंतुलन, आर्थिक मंदी आदि सभी चुनौतियां का समाधान निहित है।

उन्होंने कहा कि आज गाँधी विचार की आलोचना या गुणगान करने का समय नहीं है।आज गाँधी विचार को जीवन में उतारने का समय है। गाँधी का जीवन एवं विचार हमारे लिए चुनौती है। हम इसे जितना आत्मसात कर सकेंगे, देश-दुनिया का उतना ही भला होगा।

स्वागत भाषण एवं विषय प्रवेश की जिम्मेदारी पूर्व कुलपति प्रोफेसर डॉ. ज्ञानंजय द्विवेदी ने किया। उन्होंने कहा कि विश्व दर्शन दिवस प्रत्येक वर्ष नवंबर महीने के तीसरे गुरूवार को मनाया जाता है। यह महान मानवतावादी विचारक सुकरात सहित उन सभी दार्शनिकों के सम्मान में मनाया जाता है, जिन्होंने सम्पूर्ण विश्व को स्वतंत्र विचारों के लिए स्थान उपलब्ध कराया। इस दिवस का उद्देश्य दार्शनिक विरासत को साझा करने के लिए विश्व के सभी लोगों को प्रोत्साहित करना और वैचारिक सहिष्णुता को बढ़ावा देना है। यह विरोधी विचारों का भी सम्मान करने और समसामयिक चुनौतियों के समाधान हेतु विचार-विमर्श करने की प्रेरणा देता है।

आयोजन सचिव सह जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर ने बताया कि बीएनएमयू, मधेपुरा में विश्व दर्शन दिवस का आयोजन काफी खुशी की बात है। यह आयोजन वर्ष 2019-20 में ही होना था। लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण अब तक नहीं हो पाया था। अब दर्शन परिषद्, बिहार के सम्मेलन की सफलता के बाद इसे आयोजित करने का निर्णय लिया गया है। इस बावत शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत संचालित आईसीपीआर, नई दिल्ली से अनुमति पत्र प्राप्त हो चुका है।

कार्यक्रम की शुरुआत अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलित कर की। अतिथियों का अंगवस्त्रम् एवं पुष्पगुच्छ से स्वागत किया गया। प्रश्नोत्तर कार्यक्रम में वक्ताओं ने प्रतिभागियों के सवालों का जवाब दिया। धन्यवाद ज्ञापन स्नातकोत्तर दर्शनशास्त्र विभाग के अध्यक्ष शोभाकांत कुमार ने किया।

इस अवसर पर अकादमिक निदेशक प्रोफेसर डॉ. एम. आई. रहमान, सीनेटर प्रोफेसर डॉ. नरेश कुमार सिंडिकेट सदस्य डाॅ. जवाहर पासवान, डाॅ. अरूण कुमार, प्रज्ञा प्रसाद, डाॅ. शंकर कुमार मिश्र, शंभू नारायण यादव, डाॅ. शिवेन्द्र प्रताप सिंह, डाॅ. फिरोज मंसुरी, राॅबिन्स कुमार, गुड्डू कुमार, रूची सुमन, रंजन कुमार, सौरभ कुमार, सारंग तनय, बिमल कुमार, माधव कुमार, डाॅ. दीपक कुमार सिंह, गौरब कुमार सिंह, डाॅ. लखन कुमार यादव, डेविड यादव आदि उपस्थित थे।