BNMU। भावी पीढ़ी के निर्माता होते हैं शिक्षक : प्रति कुलपति

नई शिक्षा नीति की यह बड़ी विशेषता है कि यह रटंत विद्या को छोड़कर रचनात्मकता पर जोर देती है। रचनात्मकता की शुरूआत बचपन से ही होती है। अतः स्कूली शिक्षा पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। हमें पाठ्यक्रमों में सम्यक् परिवर्तन लाना होगा और मूल्याकंन पद्धति में आमूल-चूल बदलाव लाने होंगे।

यह बात बीएनएमयू, मधेपुरा के प्रति कुलपति प्रोफेसर डॉ. आभा सिंह ने कही। वे राष्ट्रीय शिक्षण मंडल एवं नीति आयोग के संयुक्त तत्वावधान में संदीप विश्वविद्यालय, मधुबनी में आयोजित राष्ट्रीय वेबिनार में बीज वक्तव्य दे रहे थे। यह वेबिनार राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षकों की भूमिका विषय पर आयोजित की गई थी।

उन्होंने कहा कि शिक्षण-प्रक्रिया में तीन बातें महत्वपूर्ण हैं- गुरू या शिक्षक, शिष्य या विद्यार्थी एवं शिक्षण प्रणाली। गुरु शिष्य के मार्गदर्शक की भूमिका निभाता है। वही भावी पीढ़ी का निर्माण करता है।

  1. उन्होंने कहा कि शिक्षण में शिक्षक के साथ-साथ अभिभावक एवं परिवार की भी भूमिका महत्वपूर्ण है। बच्चों के लिए पहले माँ-पिता एवं अग्रज और फिर शिक्षक आदर्श होते हैं। बच्चे इन सबों का अनुसरण करते हैं। अतः हम जो बच्चों से अपेक्षा रखते हैं, उसे हमें खुद करके दिखाना होगा। उन्होंने कहा कि हमें बच्चों को शुरू से ही नैतिक नियमों की शिक्षा देनी होगी। बच्चों को व्यावहारिक जगत से जोड़कर ये शिक्षाएँ दी जा सकती हैं। हमेशा सत्य बोलें, कभी किसी को कष्ट मत पहुँचाएँ, कभी किसी को धोखा नहीं दें और बड़ों का सम्मान करें आदि इसके कुछ उदाहरण हैं।

उन्होंने कहा कि आज बहुतेरे लोग साक्षर हैं, लेकिन शिक्षित नहीं हैं। हमारी मौजूदा शिक्षण-प्रणाली एवं मूल्याकंन प्रणाली दोनों दोषपूर्ण है। इसमें रटंत विद्या को बढ़ावा देता है। हम जो रटते हैं, उसे ही परीक्षा हाॅल में उगल देते हैं। नई शिक्षा नीति में इसे बदलते हुए सतत मूल्याकंन पर जोर दिया गया है।उन्होंने कहा कि शिक्षकों को विषय में होने वाले नीत नए-नए प्रयोगों एवं विकासों का ज्ञान होना चाहिए। जब शिक्षक स्वयं को अपटूडेट रखेंगे, तभी उनके ज्ञान के प्रकाश से विश्व प्रकाशित होगा।

इस अवसर पर प्रोफेसर डॉ. मनोज दीक्षित, डाॅ. अमरेन्द्र प्रकाश चौबे, शिवलाल कुमार साहनी, रामाकर झा आदि उपस्थित थे।