Bihar। डाॅ. लक्ष्मी : छोटे कस्बे की लड़की बनी असिस्टेंट प्रोफ़ेसर

डॉ. लक्ष्मी कुमारी, असिस्टेंट प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान विभाग, वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा की कहानी युवाओं के लिए प्रेरणादायी है। मोतिहारी (बिहार) की इस बेटी की कहानी कभी ना हारने वाले उनके जज्बे को बयां करती है। लक्ष्मी उस दौर को याद करते हुए कहती हैं, “छोटे कस्बे में बड़े सपने देखना बहुत बड़ी बात थी। उसमें भी आईएएस के बारे में सोचना तो दूर की कौड़ी।” इनका तीन बहनों वाला परिवार। पिताजी का अगरबत्ती बेचने का छोटा सा व्यवसाय। इन विपरित परिस्थितियों के बीच इंजीनियर बनीं, टॉप एमएनसी (एचसीएल) में प्लेसमेंट पाई। लेेकिन सपनों की उड़ान को थमने नहीं दिया। मन में यह संकल्प था कि कुछ और करना था। अथक प्रयास और संघर्ष ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) का रास्ता आसान बनाया। पिता का सहयोग हर कदम पर मिला। बड़े सपने पूरे करने की चाहत ने पुश्तैनी जमीन तक गिरवी रखने को विवश कर दिया। सफलता मिली तो सही, पर आधी। परिस्थितियों के आगे झुक जाती, तो निसंदेह टूट जाती। ऐसे में हिम्मत को हथियार बनाया। कई बार अंधेरे ने मन के उजास को निकलने की कोशिश की, पर मैं लड़ती रही, अकेले साहस का दिया लिए। आखिर फिर बिखरी उम्मीदों की रोशनी चारों ओर। अगर उन भटकते कदमों को रोक न पाती तो आज दूसरी बहनों को साहस का संबल न दे पाती। लगातार प्रयत्न ने मुझे बीपीएससी के माध्यम से विश्वविद्यालय में प्राध्यापक (राजनीति विज्ञान) बना दिया। शिक्षा ने जो साहस दिया, उसी बूते आज हजारों महत्वकांक्षी आंखों को मार्गदर्शन दे पाने में समर्थ हूं जो कि मुझे काफी संतोष देता है। उन्हें धैर्य और साहस का पाठ पढ़ा रही हूं। तो क्या हुआ, जो आईएएस न बन पाई। अपने ज्ञान की लौ से लोगों को जागरूक और सशक्त तो बना रही हूं।” वास्तव में, हर व्यक्ति की एक विशेषता होती है, बस जरूरत होती है उसे पहचानने की। दूसरों के नजरिया से हटकर खुद की मंजिल तलाशने की। समाज के अनुसार भले ही सरकारी नौकरी बेहतर होती हो, लेकिन हो सकता है कि आपकी रुचि गायकी हो या पेंटिंग नजर में उतरती हो। इसलिए विकल्प खुला रखें। खुद को बांधे नहीं।