Poem। कविता। कैसा होगा देश का नजारा

कैसा होगा देश का नजारा

एक तरफ आजादी तो दूसरी तरफ बंटवारा
कैसा वीभत्स होगा हमारे देश का नजारा,
एक तरफ मिलन तो दूसरी तरफ बेसहारा,
लोगों का प्रेम तो लाशों की ढेर,
बहुत मुश्किल से संभाला होगा
देश हमारा।
वो त्रासदी की रातें कैसे कटी होंगी,
आजादी के लिए लहू से मिट्टी सनी होगी।
अपनों का बिछड़ना क्या मरने से कम होगा,
बिछड़ने वालों की आंखों में आंसू का समंदर होगा,
बच्चों की बेबस आंखें अपनों को ढूंढती होंगी,
अनगिनत लोगों को न जाने कितनी पीड़ा होगी।

जिसके लहू में कट्टरता होगी
उसे ये रात बहुत भाई होगी,
लेकिन देशप्रेमियों की आंखें पथराई होगी।
उस स्नेह का क्या विकल्प होगा,
जिसने ना बिछड़ने की कसम खाई होगी।
उस प्रेम का क्या नाम होगा,
जिसने दूसरे मुल्क में पनाह पाई होगी।
वो द्रवित क्षण, वो द्रवित पल
क्या किसी के मन से भुलाई होगी।
उस विभाजन वेदना से,
किस आंगन की मिट्टी ने शीतलता पाई होगी!
विभाजन बहुत ही द्रवित था,
जाने कितने के लिए मौत के करीब था,
उस रात्रि में असीम पीड़ा समाई होगी,

क्या दास्ता से स्वतंत्रता की खुशी में,
इस वेदना को देशप्रेमियों ने भुलाई होगी ?
-डॉ. कुमारी प्रियंका, इतिहास विभाग, जगदम महाविद्यालय, छपरा, बिहार