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Philosophy। लाभ साहेब से मुलाकात

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*लाभ साहेब से मुलाकात*
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लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ में आयोजित अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के 63 वें अधिवेशन के अंतिम दिन (23 अक्टूबर 2018 को) प्रोफेसर डाॅ. वैद्यनाथ लाभ साहेब, कुलपति, नव नालंदा केन्द्रीय विश्वविद्यालय, नालंदा (बिहार) से मुलाकात का सुअवसर प्राप्त हुआ।

*मेरा संकोच*
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दरअसल, लाभ साहेब 22 अक्टूबर को भी सम्मेलन में आए थे। उन्होंने एक संगोष्ठी की अध्यक्षता भी की थी। मैं भी काफी देर तक उस कार्यक्रम में था। लेकिन मैंने सर से कार्यक्रम के बीच में मिलना उचित नहीं समझा।

फिर 23 अक्टूबर को समापन सत्र में लाब साहेब मुख्य अतिथि थे। यहाँ भी मैंने मंच पर उनसे मुलाकात नहीं की। फिर सभी लोग हाई टी पर आ गए। वहाँ मैं सर से मिलने का मौका ढूंढ रहा था। सोच रहा था कि उन्हें अपना परिचय देकर उनसे मिलूँ।

*लाभ साहेब की नजर*
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इसी बीच लाभ साहेब की नजर मेरे ऊपर पड़ गई। मुझे देखते ही सर ने कहा,”सुधांशु कैसे हो ? आपको दो दिनों से खोज रहा था।” मैंने उन्हें प्रणाम किया। कहा, “ठीक हूँ सर। कल भी आपको देखा। लेकिन मुझे मिलने का उपयुक्त अवसर नहीं मिला।” फिर काफी बातचीत हुई। उन्होंने मेरे कैरियर और परिवार आदि की जानकारी ली। कई उपयोग सुझाव दिए। मुझे जरा-सा भी एहसास नहीं हुआ कि मैं एक कुलपति से बातें कर रहा हूँ।

*सुखद आश्चर्य*
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आज लोग छोटा-छोटा पद पाने के बाद अपने करीबी मित्रों को भूला देते हैं। कुछ दिनों पूर्व मेरे अभिन्न मित्र अश्वनी (कोलकाता) ने मुझे बताया था कि उसके साथ रहकर पढ़ाई करने वाले मित्रों के हावभाव भी असिस्टेंट प्रोफेसर बनने के बाद चेंज हो गए। मेरे एक अन्य मित्र ने बताया कि जो मित्र असिस्टेंट प्रोफेसर बन गए हैं, वे उनसे बात नहीं करना चाहते। वे कहते हैं कि उनकी तो सोसाइटी ही चेंज हो गई।

लेकिन लाभ साहेब जैसे लोग भी हैं, जो महज चंद मिनटों के परिचय को भी 9 वर्षों बाद भी नहीं भूलते हैं। ऐसे लोगों का मिलना सुखद आश्चर्य है और इस मिलन की अनुभूतियाँ जीवन की अमूल्य निधि।

लाभ साहेब से यह मेरी दूसरी मुलाकात थी। करीब 9 वर्ष बाद। इसके बावजूद सर ने मुझे पहचान लिया और उन्होंने काफी स्नेह एवं आशीर्वाद दिया। … और हाँ जब मैं पहली बार सर से मिला था, तो वे महज एक प्रोफेसर थे। लेकिन आज वे कुलपति बन चुके हैं, फिर भी उनकी सहजता, सरलता एवं मृदुलता कायम है।

*पहली मुलाकात*
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मालूम हो कि मैं लाभ साहेब से पहली बार वर्ष 2009 में जम्मू विश्वविद्यालय, जम्मू में मिला था। वहाँ मैं अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के सम्मेलन में गुरूवर प्रोफेसर डाॅ. रामजी सिंह सर के साथ गया था। लाभ साहेब बहुत ही आदरपूर्वक प्रोफेसर डाॅ. रामजी सिंह सर के साथ मुझे भी अपने आवास पर ले गए थे। खूब आदर-सत्कार किया था।

*उपलब्धियाँ*
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यहाँ यह उल्लेखनीय है कि लाभ साहेब लंबे समय तक ‘इंडियन सोसाइटी फाॅर बुद्धिस्ट स्टडीज’ (आईएसबीएस) के महासचिव रहे हैं और उन्होंने स्वयं यह पद छोड़कर एक मिशाल कायम की है। इन्होंने कई महत्वपूर्ण पुस्तकों का संपादन किया है, इनमें आईएसबीएस के कई प्रोसिडिंग्स भी शामिल हैं।

-सुधांशु शेखर, 28 अक्तूबर, 2018

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

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