Indian Philosophy। भारतीय दर्शन में है मानसिक समस्याओं का समाधान : डाॅ. इंदू

भारतीय दर्शन में है मानसिक समस्याओं का समाधान : डाॅ. इंदू

मानसिक स्वास्थ्य व्यक्ति के मन की उत्तम अवस्था है। इसमें वह अपनी क्षमताओं को समझता है और अपने उद्देश्य हेतु उसका प्रयोग कर सकता है। जीवन के सामान्य दबाव एवं तनाव को अच्छे से संभाल सकता है। वह सकारात्मकता एवं उत्पादकता हेतु कार्य कर सकता है। वह अपने घर परिवार समुदाय और राष्ट्र के लिए अपना योगदान कर सकता है।

यह बात हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय, श्रीनगर-गढ़वाल (उत्तराखंड) में दर्शनशास्त्र विभाग की अध्यक्ष निदेशक, एफडीसी (पीएमएमएमएनएमटी) डॉ. इंदू पांडेय खंडूड़ी ने कही।

वे मंगलवार को भारतीय दर्शन में मानसिक समस्याओं का समाधान विषय पर ऑनलाइन व्याख्यान दे रही थीं। कार्यक्रम का आयोजन बीएनएमयू संवाद व्याख्यानमाला के अंतर्गत किया गया।

उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन के अनुसार मनुष्य का ज्ञान, व्यवहार एवं भावना तीनों स्तर पर संतुलन ही मानसिक स्वास्थ्य है। मानसिक स्वास्थ्य पर शारीरिक स्वास्थ्य का भी प्रभाव पड़ता है। मानसिक स्वास्थ्य का प्रभाव व्यक्ति की दिनचर्या, उसके संबंध और उसके शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ना निश्चित है।

उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन में पंचकोश की अवधारणा है। ये हैं अन्यमय कोष, प्राणाय कोष, मनोमय कोष, विज्ञानमय कोष एवं आनंदमय कोष। इनमें प्रथम तीन कोष मानव व्यक्तित्व एवं मानसिक स्थितियों से संबंधित हैं और बाद के दो बौद्धिक एवं आध्यात्मिक क्षमता से संबंधित हैं। इन पांचों कोषों के केंद्र में मनोमय कोष है।

उन्होंने कहा कि शारीरिक स्वास्थ्य भी मानसिक स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। ऐसा नहीं है कि हम मन के द्वारा शरीर के कष्ट को दूर कर सकता हैं, लेकिन शरीर कष्ट की अनुभूति पर नियंत्रण अवश्य किया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन में मानसिक स्वास्थ्य के लिए तीन शर्तें बताई गई हैं। ये हैं विवेकशीलता यानि सम्यक् विवेक, चित्त की स्थिरता और स्थितप्रज्ञा यानि बुद्धि की स्थिरता। यदि आपमें ये तीनों हैं, तो आप मानसिक रूप से स्वस्थ हैं।

उन्होंने कहा कि कोरोना संक्रमण के कारण समाज में भय, भूख एवं भ्रम का वातावरण है। हमारे मानसिक रूप से विचलित हुआ है और हमारे अंदर असुरक्षाबोध बढ़ा है। सामाजिक मेल-मिलाप की संस्कृति खत्म हो रही है। व्यवहार असंतुलित हो गया है।
रोजगार के अवसर कम हो गए हैं।काम करने के विकल्प काफी कम हो गए हैं।

उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन निराशावादी एवं पलायनवादी नहीं है। इससे हम न केवल आध्यात्मिक लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि व्यावहारिक जीवन एवं जगत को भी स्वस्थ एवं सुंदर बना सकते हैं।

उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन में सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति के उपाय बताए गए हैं। भारतीय दर्शन में निहित मूल्यों को अपनाकर हम स्वयं भी दुखों से मुक्त हो सकते हैं और समाज को भी दुखों से मुक्ति दिला सकते हैं।

उन्होंने कहा कि हमें मानसिक स्वास्थ्य के लिए हमें अपने मन को नकारात्मकता से हटाकर सकारात्मकता की ओर ढकेलना होगा। हम सकारात्मक सोचें। समाजहित में लोककल्याण के लिए कार्य करें। अपने संसाधनों से दूसरों की मदद करें।