Philosophy। Art of Life। सकारात्मक सोच के चार चरण

सकारात्मक सोच के चार चरण 

अनिश्चय और संकट काल में नकारात्मकता सामान्य सोचने समझने की क्षमता भी क्षीण कर देती है। पिछले चार महीने से कोविड-19 या कोरोना वायरस के कारण अस्वस्थता एवं मृत्युभय ने भी ऐसी ही नकारात्मकता से जन-मानस को भर दिया है, जिससे बाहर निकलना व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक है। नकारात्मकता से बाहर आने के लिए सकारात्मक सोच, प्रवृत्ति और दृष्टिकोण  अपनाना और बनाना अत्यंत आवश्यक है। परन्तु सवाल है कि यह सकारात्मक सोच आएगी कैसे ? विपरीत परिस्थिति में सकारात्मक सोच के लिए निम्नलिखित चार चरणों पर विचार करके देखा जा सकता है। वास्तव में,  सहनशीलता, संयम, सदाचार और सहजता कैसे सकारात्मक सोच का मार्ग प्रशस्त करते है| 

सहनशीलता : कोरोना के संकट काल में अनेक ऐसी स्थितियां बन रही हैं, जो कष्टप्रद हैं। सामाजिक दूरी, अतिरिक्त स्वच्छता और संक्रमण का भय कष्टकारी बनता जा रहा  है। इन असुविधाजनक स्थितियों  को स्व, परिजन और समाज के हित में सहन करना सीखना होगा। वैसे भी सहनशीलता मानव की विनम्रता एवं सामर्थ्य की सीमा को दर्शाता है और यह रिश्तों को खूबसूरती से बनाए रखने का मूल मंत्र है। दर्शन तथा धर्म में भी विपरीत परिस्थितियों में सामंजस्य के लिए भी सहनशीलता को एकमात्र मार्ग या विकल्प के रूप में सुझाया गया है।

संयम : सकारात्मक सोच के लिए विपरीत स्थितियों को सहन करने की प्रवृत्ति अपना लेने के अतिरिक्त अवांछनीय आकर्षणों के प्रति भागते मन को संयमित करना आवश्यक है। आकर्षणों की प्रवृत्ति ऐसी होतीं हैं कि मानव सही-गलत का विचार किए  बिना उनकी ओर खिंचता चला जाता है। उपलब्धि एक दूसरा आकर्षण रचता है, तो अनुपलब्धि असंतोष। दोनों हो स्थितियों में मानव नकारात्मकता के दुश्चक्र में उलझता जाता है। संयम को योग दर्शन के तकनीकि अर्थ में न भी लिया जाय, तो कम से कम हानिकारक आकर्षणों से विरत रहने के अर्थ में तो स्वीकार कर सकारात्मकता की ओर एक कदम बढ़ाया जा सकता है।

सदाचार : सहनशीलता और संयम विकसित करने के पश्चात मानव के लिए  सदाचार में प्रवृत्त होना सरल हो जाता है। जब चारों ओर संसाधनों की कमी हो, या उनके लेन-देन या आवाजाही से संक्रमण फैलने का डर हो, तो अपने खान-पान, रहन-सहन, मेल-जोल में सदाचार बनाए रखना स्वहित एवं लोक-कल्याण दोनों के लिए आवश्यक हो जाता है। कहते हैं कि सदाचार के साथ सद्बुद्धि आती है। सद्बुद्धि के साथ सकारात्मक सोच स्वतः ही आती हैं। सद्बुद्धि के साथ ही अनावश्यक भय, तुलना, आकर्षण, इर्ष्या और असंतोष के भावों का शमन हो जाता है और विशुद्ध चित्त में विवेकोदय के साथ सकारात्मक वृत्ति संचारित होने लगती है| 

सहजता : सकारात्मकता का  चौथा चरण है- सहजता | सहज भाव से वर्तमान स्थिति की स्वीकृति और प्रतिकूल भावों का अतिक्रमण कर अनुकूलन का भाव विकसित करना। कोरोना काल के बौद्धिक विमर्श में न्यू-नार्मल की चर्चा और विमर्श संभवतः इसी अनुकूलन भाव की ओर इंगित करता है। सकारात्मक सोच की प्रक्रिया में सहनशीलता, संयम और सदाचार मानव वृत्तियों के नियामक या नियंत्रक भूमिका के चरण हैं। इन नियामक चरणों को आवश्यकता या सुरक्षा हेतु अंतिम विकल्प के रूप स्वीकार्यता एवं सामान्य आचरण के रूप में अपनाना ही सहजता है। एक बार मानव संकटकालीन यथार्थ स्वीकार कर ले, तो वह अपनी सुरक्षा और अन्यों के कल्याण के समस्त सकारात्मक निर्णय लेने में सक्षम हो जाता है और सहजता से सकारात्मक कार्य करता है|

यथासंभव प्रत्येक स्तर पर सकारात्मक वातावरण बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं, परन्तु नकारात्मकता दिन-प्रति दिन प्रभावी होती जा रही है। मानव या तो विवश होकर इस कोरोना काल में अपनी सीमा रेखा से बाहर निकलकर संक्रमण तथा स्वयं की अस्वस्थता एवं मृत्यु का आमंत्रण दे रहा है या नितांत अकेलेपन से जूझते हुए आत्महत्या जैसा कदम उठा ले रहा है। ये दोनों ही स्थितियां नकारात्मक सोच के परिणाम हैं। इस नकारात्मक सोच से उबरने के लिए कृत्रिम उपाय तात्कालिक ध्यान हटाने में सफल तो हो सकते है, परन्तु दीर्घकालिक सकारात्मकता के लिए सहनशीलता, संयम, सदाचार और सहजता को अपना आवश्यक है। इन चारों सदगुण़ों को अपनाकर एक ऐसी सकारात्मक वृत्ति बनाई जा सकती है, जो स्व-हित और समाज-कल्याण की स्वस्थ मनोवृत्त्ति हेतु अपरिहार्य है|

प्रो. इन्दू पाण्डेय खंडूड़ी, अध्यक्षा, दर्शन विभाग, हेेेेेमवतीनंंदन  बहुगुणा गढ़वालऐ विश्वविद्यालय, श्रीनगर (गढ़वाल), उत्तराखण्ड