BNMU। ‘हिंदी का बढ़ता दायरा महत्व और चुनौतियां’ विषयक वेबिनार आयोजित

BNMU # भूपेंद्र नारायण मंडल वाणिज्य महाविद्यालय, साहूगढ़-मधेपुरा के तत्वावधान में 10 अक्टूबर, 2020 को पूर्वाहन 11:30 से ‘हिंदी का बढ़ता दायरा महत्व और चुनौतियां’ विषयक वेबिनार का आयोजन किया गया। इस अवसर पर कार्यक्रम की संरक्षक प्रति कुलपति, बीएनएमयू, मधेपुरा डॉ. आभा सिंह ने कहा कि हिंदी विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषा है। आज के परिवेश में संपूर्ण भारत में यहां तक की साउथ के लोग, जो हिंदी से थोड़ा परहेज करते थे, वे भी हिंदी सीखना चाहते हैं। आज सबों को यह महसूस होने लगा है कि हिंदी ही संपूर्ण भारत को जो जोड़ने वाली भाषा है। यह राष्ट्रीय एकीकरण की भाषा है।

उन्होंने कहा कि आज इंग्लिश न्यूज़ चैनल में भी जब गहन विषय पर विवेचन होता है, तो एंकर और जो प्रतिनिधि गण होते हैं, वे हिंदी में बोलने लगते हैं‌। क्योंकि पता है कि हिंदी को सुनने, समझने वाले लोग ज्यादा है। इसलिए वे अपनी बात को संप्रेषित करने के लिए हिंदी का सहारा लेते हैं।

उन्होंने कहा कि हमारे ऊपर अंग्रेजीयत का लबादा है। इसके कारण लोग अशुद्ध अंग्रेजी बोलने वाले को सम्मान की दृष्टि से देखते हैं और शुद्ध हिंदी बोलने वाले को भी उतना ज्यादा महत्व देना नहीं चाहते हैं।

उन्होंने कहा कि आज हिंदी के मूल स्वरूप को जीवित रखना सबसे बड़ी आवश्यकता है। साथ ही हमें हिंदी की लिपि को भी जागृत रखना होगा। हम लोग हिंदी की बात को अंग्रेजी में टाइप कर देते हैं, इससे बचने की आवश्यकता है। हम हिंदी की सेवा करना चाहते हैं तो हिंदी को उसकी लिपी में ही लिखने की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि मातृभाषा का मतलब कि घर में मां के द्वारा बोले जाने वाली भाषा है। मातृभाषा एकीकरण की भाषा है, इसको भी जीवित रखना है। अपनी मातृभाषा भाषा के द्वारा संप्रेषण अधिक सहज होता है।

उन्होंने कहा कि हमें अपनी क्षेत्रीय भाषाओं के प्रति भी आदर एवं सम्मान का भाव जागना चाहिए। आज मैथिली सहित हमारी अन्य क्षेत्रीय भाषाओं की लिपियां धीरे-धीरे खत्म होती जा रही हैं।

डॉ. के. एस. ओझा (प्रधानाचार्य)ने कहा कि हिंदी के महत्व को समझने कि जरूरत है।हिंदी भाषा का लगातार बढ़ता दायरा इस बात की तरफ संकेत करता है कि इस भाषा का विकास निरंतर हो रहा है। मुख्य वक्ता डॉ. अभिषेक कुमार यादव, राजीव गाँधी विश्वविद्यालय, अरूणाचल प्रदेश ने उत्तर-पूर्व भारत में हिन्दी का विकास विषय पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि वर्तमान में उत्तर पूर्वी भारत में हिंदी की स्वीकार्यता लगातार बढ़ रही है। भारत का वह क्षेत्र भाषाई तौर पर बहुत ही समृद्ध है। वहां हिंदी का विकास एक संपर्क भाषा के तौर पर हुआ है जिसके माध्यम से एक समुदाय के लोग दूसरे समुदाय से अपने विचारों का आदान प्रदान करते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि उत्तर पूर्वी भारत में हिंदी का विकास सरकार या सरकारी संस्थाओं से ज्यादा टेलीविजन, रेडियो, हिंदी गानों और हिंदी फिल्मों के कारण हुआ। इसी के साथ हिंदी क्षेत्र से वहां गए प्रवासियों के कारण वहां हिंदी का प्रसार हुआ। यदि हम हिंदी के जनवादी स्वरूप को बरकरार रखते हैं और उसे लचीला बनाए रखते हैं तो यह निश्चित है कि हिंदी का भविष्य उज्जवल है। विशिष्ट वक्ता डॉ. हर्षबाला शर्मा, आई. पी. काॅलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली ने भारत के बाहर हिन्दी की स्थिति विषय पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि हिंदी के विकास के लिए यह जरूरी है कि हम शुद्धतावादी नजरिया त्याग दें। उन्होंने कहा कि भारत के बाहर हिंदी का विकास प्रवासी भारतीयों के कारण हुआ। उन्होंने हिंदी क्षेत्र की अन्य जनभाषाओं के संदर्भ में कहा कि यदि हम हिंदी को इन जनभाषाओं से अलग करके देखेंगे तो हमारा अध्ययन अधूरा रहेगा. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हिंदी में अन्य अनुशासनों के अध्ययन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि विदेश के विश्वविद्यालयों में हिंदी के पठन-पाठन में ‘सुनना, बोलना, पढ़ना और तब लिखना’ की प्रक्रिया का प्रयोग किया जाता है। वेनिनार संयोजक डॉ. शेफालिका शेखर ने कहा कि स्थिति बहुत अच्छी है, देश के अहिंदी भाषी हिस्सों में भी हिंदी का खूब प्रयोग होता है। हिंदी राजभाषा के साथ साथ संपर्क की भी भाषा है।अध्ययन-अध्यापन के विभिन्न क्षेत्रों में हिंदी भाषा में पुस्तक और कोश को विकसित करने की जरूरत है। जबतक अंग्रेजी की अपनिवेशिकता से मुक्त नहीं होंगे, तब तक हम हिंदी की अनिवार्यता और उसके महत्व को नही समझ पाएंगे। इस अवसर पर परामर्श समिति के सदस्य डॉ. अरविंद कुमार, डॉ. पी. एन. पियूष, डॉ. नवीन कुमार सिंह, नवीनचंद्र यादव, श्री मुकेश कुमार, रवि कुमार और आयोजन समिति के सदस्य मीरा कुमारी, अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, डॉ. सरोज कुमार, अतिथि व्याख्याता, हिन्दी विभाग, अंंजली कुमारी, अतिथि व्याख्याता, हिन्दी विभाग आदि उपस्थित थे।

तकनीकी सहयोगी की भूमिका डॉ. सुधांशु शेखर, जनसम्पर्क पदाधिकारी, बीएनएमयू, मधेपुरा, बिहार और डॉ. सत्येंद्र, असिस्टेंट प्रोफेसर, बीएनएमवी कॉलेज, शाहुगढ़, मधेपुरा, बिहार ने निभाई।