BNMU : पोषण, पर्यावरण एवं पंचायत विषयक सेमिनार का आयोजन

मानव जीवन अनमोल है. इस मानव जीवन को बचाना और इसके माध्यम से समाज एवं राष्ट्र की सेवा करना हम सबों का परम कर्तव्य है.

यह बात कुलपति प्रोफेसर डॉ. आर. के. पी. रामण ने कही। गुरुवार को ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में दर्शन परिषद्, बिहार द्वारा प्रायोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार में अध्यक्षीय भाषण दे रहे थे। सेमिनार का विषय पोषण, पर्यावरण एवं पंचायत था।

कुलपति ने कहा कि मानव जीवन की रक्षा के लिए आवश्यक पोषण का होना जरूरी है. पोषण एक विशिष्ट रचनात्मक उपापचयी क्रिया है. इनके माध्यम से हमारे शरीर का संरक्षण एवं विकास होता और हमें कार्य करने की शक्ति मिलती है.

उन्होंने कहा कि शरीर मात्र मल-मूत्र की खान नहीं है, वरन् यह आत्मा का मंदिर भी है। इसलिए, हमें हमेशा अपने शरीर का सदुपयोग करना चाहिए। इसकी रक्षा के लिए हमें ऐसा प्रयत्न करना चाहिए, जिससे यह सेवाधर्म का पालन पूरी तरह से कर सके। वास्तव में, यह शरीर ईश्वर का है। ईश्वर ने यह हमें थोड़े समय के लिए स्वच्छ एवं नीरोग रखने हेतु और सेवा के निमित्त दिया है। इसलिए हम इसके ट्रस्टी हैं, मालिक नहीं। हमें ट्रस्टी या रक्षक के रूप में बहुत सावधानी रखनी चाहिए। हमें शरीर का अच्छा से अच्छा उपयोग करना है। हम शरीर के बारे में चिंता तो नहीं करें, लेकिन यथासंभव इसकी देखभाल अवश्य करें. हम शरीर को विषय-भोग का साधन तो कभी नहीं बनाएंगे। तब अपनी शक्ति एवं ज्ञान के अनुसार हम अपने शरीर का सदुपयोग सेवा के लिए करें। संक्षेप में, हमें शरीर को सर्वोदय के आदर्शों के अनुरूप ‘जिओ और जीने दो’ से आगे ‘दूसरों के लिए जिओ’ हेतु तैयार करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि पोषण स्वास्थ्य के लिए जरूरी है. स्वास्थ्य शरीर, मन और आत्मा की सामंजस्यपूर्ण स्थिति है। इस स्थिति में व्यक्ति सभी प्रकार की रूग्नताओं से मुक्त होता है और उसके सभी अंग-प्रत्यंग सुव्यवस्थित एवं सुनियोजित ढंग से कार्य करते हैं।

उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य का पहला नियम यह है ‘मन चंगा, तो शरीर भी चंगा’। नीरोग शरीर में निर्विकार मन का वास होता है, यह एक स्वयंसिद्ध सच्चाई है। मन और शरीर के बीच अटूट संबंध है। यदि मन निर्विकार यानी नीरोग हो, तो वह हर तरह की हिंसा से मुक्त हो जाएगा, फिर हमारे हाथों तंदरूस्ती के नियमों का सहज भाव से पालन होने लगेगा और किसी विशेष प्रयास के बिना ही हमारा शरीर तंदरूस्त हो जाएगा। अतः हमें मन का पोषण भी करना चाहिए. मन के पोषण के लिए अच्छे अच्छे विचारों का श्रवण एवं मनन जरूरी है.

उन्होंने कहा कि जीवन के संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिए समुचित पोषण की आवश्यकता होती है। मनुष्य-शरीर को स्नायु बनाने वाले, गर्मी देने वाले, चर्बी बढ़ाने वाले, क्षार देने वाले और मल निकालने वाले द्रव्यों की आवयकता होती है। मनुष्यों को समुचित एवं संतुलित आहार सहज उपलब्ध होना चाहिए। लेकिन ‘हमें जीने के लिए खाना चाहिए, न कि खाने के लिए जीना चाहिए।’ नशीले, उत्तेजक एवं मादक द्रव्य को हमेशा त्यज्य बताया है।

उन्होंने कहा कि इलाज से परहेज अच्छा होता है. रोग के कारण को रोकना पहला इलाज है और इस इलाज के लिए शुद्ध एवं संतुलित आहार के साथ-साथ सम्यक् विहार का भी काफी महत्त्व है। इसके अंतर्गत स्वच्छता, श्रम एवं संयम की बातें शामिल हैं। हमारे शास्त्रों में कहा गया है ‘स्वच्छता ही देवत्व है’। इसलिए, हमें अपने तन, मन एवं जीवन को स्वच्छ एवं पवित्र बनाने की कोशिश करनी चाहिए। लेकिन, अपनी स्वच्छता के साथ-साथ पास-पड़ोस एवं गाँव-समाज की स्वच्छता भी जरूरी है। आपका पानी, अन्न और हवा ये सब शुद्ध होना ही चाहिए। किंतु, केवल अपने तक स्वच्छता रखने से हमें संतुष्ट नहीं रहना चाहिए। जो स्वच्छता आप स्वयं के बारे में रखना चाहते हैं, उस स्वच्छता का प्रचार-प्रसार अपने आस-पास भी करें. ‘सादा जीवन, उच्च विचार’ को अपनाएं. हम प्रकृति के जितने करीब जाएंगे, उतना ही हम स्वस्थ, प्रसन्न एवं दीर्घायु जीवन जी सकेंगे। संयम और सादगी आदि भारतीय मूल्यों को अपनाकर पूर्ण स्वास्थ की स्थिति को प्राप्त किया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ एवं ‘सर्वे संतु निरामया’ यह संदेश भारतीय संस्कृति की आत्मा हैं। इसमें प्रेम, मैत्री, परोपकार, बन्धुत्व, सहिष्णुता, सौहार्द, शांति आदि मूल्य छिपे हैं।
भारतीय जीवन शैली पर्यावरणीय नैतिकता का पोषक है।

उन्होंने कहा कि पोषण एवं पर्यावरण में अन्योन्याश्रय संबंध है. हम पर्यावरण से ही पोषक तत्व प्राप्त करते हैं. जब हमारा पर्यावरण संतुलित रहेगा तभी हम पर्याप्त पोषण पा सकेंगे. संतुलित पोषण एवं संतुलित पर्यावरण दोनों मानव जीवन के लिए जरूरी है.

उन्होंने कहा कि पंचायतों की जिम्मेवारी है कि वह सभी नागरिकों को पर्याप्त पोषण उपलब्ध कराएं और अपने क्षेत्र अंतर्गत पर्यावरण संरक्षण पर भी ध्यान दें. गाँधी के चिंतन का केंद्र बिन्दु है गाँव। उन्होंने बार-बार यह दुहराया है कि भारत अपने चंद शहरों में नहीं, बल्कि सात लाख गाँवों में बसा हुआ है।
अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. जटाशंकर ने कहा कि पोषण शब्द का प्रयोग जब हम करते हैं तो सामान्यता शरीर के पोषण की बात दिमाग में आती है, लेकिन इस पोषण का एक व्यापक अर्थ है। पोषण का तात्पर्य केवल शरीर को पोषण देना नहीं है। हमारे चतुर्दिक जो कुछ है, उसको हम पोषित करें, वह भी उस में सम्मिलित होता है।

उन्होंने कहा कि व्यक्ति एवं पर्यावरण दोनों एक-दूसरे को पोषित करें। जब तक हमारा जीवन समरस नहीं होगा, तब तक वह अच्छा जीवन नहीं होगा।

उन्होंने कहा कि मानव और प्रकृति दोनों एक दूसरे का पोषण करते हैं। हम प्रकृति का पोषण करते हैं और प्रकृति हमारा पोषण करती है। प्रकृति में हवा, पानी, वृक्ष, कीट-पतंग सहित तमाम दृश्य-अदृश्य सताएं आ जाती हैं। जब तब तक हम उसका पोषण नहीं करेंगे, जो हमारे चारों और हैं, तब तक हम पोषित नहीं हो सकते हैं। जब परस्पर सामान्य जिसके साथ पोषण किया जाता है, तभी उस उसको समपोषण कहा जाता है।‌ समपोषण का मतलब होता है सम्यक् पोषण।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के अध्यक्ष प्रोफेसर डाॅ. रमेशचन्द्र सिन्हा ने कहा कि मानव जीवन में रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा एवं रोजगार की आवश्यकता होती है। लेकिन मानव मात्र शारीरिक सुखों से ही संतुष्ट होकर नहीं रह सकता है। मानव जीवन में आर्थिक के अलावा अन्य पक्षों का भी महत्व है। विशेष रूप से शैक्षणिक, नैतिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक पक्ष भी काफी महत्वपूर्ण है। पोषण, पर्यावरण एवं पंचायत मनुष्य एवं समाज के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भारतीय महिला दार्शनिक परिषद् की अध्यक्षा प्रोफेसर राजकुमारी सिन्हा ने कहा कि भारतीय संस्कृति में कहा गया है कि हम पृथ्वी माता की संतान हैं। मां है, तो हम प्राणियों की रक्षा ही करेंगी, लेकिन जब हम बच्चे उच्छृंखल हो जाते हैं, तब मां कान भी पकड़ती है। उसको वह क्षमता है, वह अधिकार है कि कान पकड़कर एक दिशा-निर्देश दे सके। हमने आज के वैज्ञानिक युग में बहुत सारी उपलब्धियां प्राप्त कर ली हैं और इन उपलब्धियों पर हम इतराने लगे हैं। हम यह नहीं सोच रहे हैं कि हमने विकास के जो नए-नए क्षितिज गढ़े हैं। उसमें हमने विनाश की पृष्ठभूमि रच ली है। एक तरफ हम वैज्ञानिक विकास कर रहे हैं, तो दूसरी ओर प्रकृति का दोहन हो रहा है।

उन्होंने कहा कि मानव विकास के नाम पर प्रकृति का जो विनाश कर रहे हैं। उस विकास से पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है। आवश्यकता इस बात की है कि विकास को सही दिशा दिया जाए। उसे मानव के लिए उपयोगी बनाया जाए तथा उसका पर्यावरण पर कोई बुरा प्रभाव ना पड़े।

 

उन्होंने कहा कि यदि हम नैतिक मूल्यों का अनुशीलन करेंगे, तो समाज, देश एवं विश्व में, जो खिंचाव है, दूरी है, जो ईष्या, द्वेष इत्यादि हिंसा का दौर चलता है, वह नहीं चलेगा। यदि हम सभी अपने-अपने आचरणों में नैतिक मूल्यों का पालन करेंगे, तब हम निश्चित रूप से सशक्त समाज एवं विश्व की कल्पना कर सकते हैं।

आयोजन के मुख्य संरक्षक दर्शन परिषद्, बिहार के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. बी. एन. ओझा ओझा ने कहा कि पोषण, पर्यावरण और पंचायत इन तीनों का आफस में संबंध है। पर्यावरण स्वच्छता से संबंधित है, और पोषण का भी स्वच्छता से संबंध है। अगर स्वच्छता अभियान चलाया जाए, तो पर्यावरण स्वच्छ होगा और पर्यावरण स्वच्छ होगा, तो स्वास्थ्य ठीक रहेगा। पोषण एवं पर्यावरण संबंधी कार्यक्रम ये दोनों सरकार ने पंचायत के माध्यम से करने की योजना बनाई थी।

उन्होंने कहा कि पोषण, पर्यावरण एवं पंचायत की समस्या को पूर्ण रूप से समझने के लिए शिक्षित होना जरूरी है। इसके माध्यम से हम पंचायतों में स्वास्थ्य के महत्व को जान सकते हैं, समझ सकते हैं। पंचायत की शुरुआत एक सामाजिक व्यवस्था के रूप में हुई थी। पंचायत की सारी भूमिकाएं सामाजिक भूमिका है। पंचायत की सामाजिक भूमिकाएं मूलत: पंचायत के सीमा में अवस्थित मानवीय पूंजी को संपोषित करते हुए उस क्षेत्र के सामाजिक जीवन को स्वस्थ एवं स्वच्छ बनाने से संबंधित है। स्वच्छता, स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा, महिला एवं बाल कल्याण चार ऐसे क्षेत्र हैं, जिसमें पंचायत को प्रभावी पहल करनी पड़ेगी। इन चारों क्षेत्रों में केंद्र सरकार द्वारा संपोषित योजनाओं को लागू कराना पंचायतों का ही कार्य है। इन सभी की सफलता पंचायतों पर ही निर्भर करती है, इसलिए पंचायतों को पर्याप्त सहयोग एवं समर्थन देना जरूरी है।

उन्होंने कहा कि यदि वातावरण स्वच्छ रहेगा, तो पर्यावरण का प्रदूषण नहीं होगा। नागरिक स्वस्थ रहेंगे, बच्चे स्वस्थ रहेंगे, बच्चे स्वस्थ रहेंगे तभी तो पोषण की व्यवस्था भी स्वस्थ रहेगी। अतः ग्रामीण पंचायती राज स्वच्छ वातावरण स्वस्थ जीवन की पहली आवश्यकता है, इसके लिए व्यक्ति का लगातार कोशिश करना परम कर्तव्य है। हमारे समाज में विशेषकर ग्रामीण समाज इसकी महत्ता पूजा-पाठ तक सीमित हो गई है। पूजा पाठ कहीं होता है तो स्वछता अभियान तेजी से चलता है। इसके बाद लापरवाही से चलती है। स्वच्छता को आम जीवन में उतारने में हम सफल नहीं हो पा रहे हैं। फलत: पर्यावरण का प्रदूषण व्याप्त होता है।
इस संदर्भ में स्थिति इतनी बुरी है कि बहुत पहले गांधी जी ने इसकी ओर इशारा करते हुए कहा था कि ज्यादातर भारतीय ग्रामों में प्रवेश के समय आंख और नाक बंद कर लेना पड़ता है, क्योंकि वहां की गंदगी और दुर्गंध को सहन कर पाना मुश्किल ही नहीं असंभव है।https://youtu.be/ILJxImxI7Xo

उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी के इन शब्दों से भारतीय गांव का दृश्य सामने आता है। इसमें आज भी कोई सुधार नहीं हो सका है। स्वच्छता एवं पर्यावरण का प्रत्यक्ष सम्बन्ध है। आज पर्यावरण की समस्या एक वैश्विक समस्या है। अस्वच्छता के कारण पर्यावरण पर खतरा पैदा हो गया है। गंदी बस्ती में निवास महानगरों की प्रमुख समस्या है, जैसे- मुंबई, कोलकाता, दिल्ली, चेन्नई जैसे महानगरों में। पोषण आहार संबंधी विज्ञान है, जो एक नई विचारधारा है। इसका जन्म मूलतः शरीर विज्ञान एवं रसायन विज्ञान से हुआ है। मूल तत्वों द्वारा मनुष्य शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन एवं विश्लेषण इसका मुख्य विषय है। पोषण का सम्बन्ध भोजन के सामाजिक-आर्थिक मनोविज्ञान से भी है।

कार्यक्रम में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व माननीय कुलपति प्रोफेसर डॉ. मनोज कुमार जी, मुंगेर विश्वविद्यालय मुंगेर के प्रति कुलपति प्रोफेसर डॉ. कुसुम कुमारी, गांधी विचार विभाग तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय भागलपुर के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. विजय कुमार, एस के महिला कॉलेज बेगूसराय की पूर्व प्रधानाचार्य डॉ. सपना चौधरी, सी. एम. साइंस कॉलेज दरभंगा के प्रधानाचार्य प्रोफेसर डॉ. प्रेम प्रसाद, रांची झारखंड में कंपनी सेक्रेट्री डॉ. पूजा शुक्ला और बीएन मंडल विश्वविद्यालय मधेपुरा शिक्षाशास्त्र विभाग के प्रोफेसर इंचार्ज एवं बीएनमुस्टा के महासचिव प्रोफेसर डॉ. नरेश कुमार ने भी अपने विचार व्यक्त किया।

प्रधानाचार्य डाॅ. के. पी. यादव ने अतिथियों का स्वागत किया। संचालन जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर और राजनीति विज्ञान विभाग के शोधार्थी सारंग तनय ने किया। धन्यवाद ज्ञापन एनएसएस समन्वयक डाॅ. अभय कुमार ने किया।

कार्यक्रम की शुरुआत असिस्टेंट प्रोफेसर खुशबू शुक्ला द्वारा प्रस्तुत मंगलाचरण के साथ हुई।

इस अवसर पर असिस्टेंट प्रोफेसर डाॅ. स्वर्णमणि, सीनेटर रंजन कुमार, शोधार्थी सौरभ कुमार, अमरेश कुमार आमर, विवेकानंद, मणीष कुमार, सौरभ कुमार चौहान, गौरव कुमार सिंह, बिमल कुमार, संतोष कुमार आदि उपस्थित थे।

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