Poem। कविता। तेरी लाडो। मोनिका राज

तेरी लाडो

दुआओं को आँचल में लेकर ,
क्यों हुई मेरी विदाई माँ ?
लाँघकर दहलीज़ को तेरे ,
क्या मैं हुई पराई माँ ??

जिस आँगन में बरसों खेला
जिस मिट्टी में मैं पली-बढ़ी ।
उस बगिया को छोड़कर
क्योंकर मैं ससुराल चली ??

कन्यादान औ’ पगफेरे की ,
जाने किसने रस्म बनायी ?
कलतक जो ‘बिट्टो’ थी तेरी ,
आज क्यूँ वो हुई परायी ??

निभाऊंगी हर वादे सारे ,
नहीं पराया धन हूँ मैं ।
मत छोड़ो तुम साथ मेरा, माँ
अब भी तेरी ‘लाडो’ हूँ मैं ।।

– मोनिका राज, पटना विश्वविद्यालय पटना