Webinar। सेमिनार/ शिक्षा, समाज एवं शांति : संपूर्ण कार्यक्रम का विडियो और संक्षिप्त रिपोर्ट

ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में दर्शन परिषद्, बिहार द्वारा प्रायोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार संपन्न हुआ। इसमें आप सभी के सहयोग एवं भागीदारी के लिए हम आप सबों के प्रति हार्दिक आभार एवं कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं। नीचे पूरे कार्यक्रम का वीडियो रिकॉर्डिंग है‌। https://youtu.be/JI3p3hDG1wM

 

https://youtu.be/Y9sJJdbVNYk

कार्यक्रम की संक्षिप्त रिपोर्ट भी आप देख सकते हैं-          ******************************************

अशांति के दो पक्ष हैं-बाह्य एवं आन्तरिक। अभी देश-दुनिया में दोनों तरह की अशांति का माहौल है। ऐसी स्थिति में शिक्षा, समाज एवं शांति पर विमर्श आवश्यक है।

यह बात भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के अध्यक्ष प्रोफेसर डाॅ. रमेशचन्द्र सिन्हा ने कही।

वे बुधवार को ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में दर्शन परिषद्, बिहार द्वारा प्रायोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का उद्घाटन कर रहे थे। इसका विषय शिक्षा, समाज एवं शांति था।

उन्होंने कहा कि अशांति का एक कारण बाॅडर पर मौजूद तनाव है। हम देखते हैं कि चीन एवं भारत और चीन एवं पाकिस्तान के बॉर्डर पर कभी न कभी कुछ न कुछ घटनाएं होती रहती हैं। अन्य अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर भी तनाव है। यह सब वैश्विक अशांति का एक बहुत बड़ा कारण है।

उन्होंने कहा कि हमारे व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में मौजूद गतिरोध भी अशांति का कारण है। संप्रति सम्पूर्ण मानवता कोरोना वायरस से त्रस्त है। कोरोना काल में मनुष्य अवसाद के साथ जीता है। मनुष्य घरों में चुपचाप बंद है, उसकी आर्थिक क्रियाएं बंद है, उसके स्कूल कॉलेज बंद है। ऐसी स्थिति में समाज में एक सन्नाटा छाया हुआ है। इस आंतरिक अशांति के क्षण में शिक्षा ही हमें त्राण दिला सकती है।

उन्होंने कहा कि शिक्षा के जरिये मूल्यों का संघात होता है। शिक्षा हमारी संवेदनाओं को, भावनाओं को संस्कारित करने का माध्यम है। शिक्षा हमें स्वतंत्र एवं सशक्त बनाती है। शिक्षा के जरिये हम सामाजिक सद्भाव, सहिष्णुता, शांति जैसे मूल्यों को जीवन में स्थापित कर सकते हैं।

भारतीय महिला दार्शिनक परिषद् की अध्यक्ष प्रोफेसर डाॅ. राजकुमारी सिन्हा ने कहा कि भविष्य का इतिहास विनाश की ध्वजा को नहीं, वरन् शांति एवं प्रेम की ध्वजा का होगा। यह धन की शक्ति से नहीं, अपितु भिक्षा पात्र की संपत्ति से संपादित होगा। इसलिए विवेकानंद ने कहा है कि अपनी अन्त: स्थिति की दिव्यता को जगाओ।

उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति में शिक्षा को कौशल विकास से जोड़ा गया है। साथ ही यह भारतीय सभ्यता संस्कृति एवं परिवेश के अनुकूल है।

मुख्य अतिथि अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष प्रोफेसर डाॅ. जटाशंकर ने कहा कि जटाशंकर ने कहा कि अच्छी शिक्षा उसे कहा जाएगा, जो अच्छे संस्कार पैदा करे। जब अच्छे संस्कार के साथ व्यक्ति समाज का निर्माण करेगा, तो स्वभाविक रूप से वह समाज अच्छा समाज होगा।

आयोजन के मुख्य संरक्षक दर्शन परिषद्, बिहार के अध्यक्ष प्रोफेसर डाॅ. बी. एन. ओझा ने कहा कि आज पूरा विश्व आतंकवाद एवं अलगाववाद के कारण अशांत है। समृद्ध देशों में भी लोगों में सामाजिक विलगाव, हताशा, निराशा एवं कुंठा का माहौल है। व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में अशांति विश्व की सबसे प्रमुख समस्या बन गई है। ऐसे में विश्व को व्यक्तिगत शांति, सामाजिक शांति, वैश्विक शांति, प्राकृतिक शांति एवं सांस्कृतिक शांति की जरूरत है। इसमें प्राचीन हिंदू धर्म एवं दर्शन में निहित नैतिकता मददगार साबित हो सकती हैं।

उन्होंने कहा कि समाज मनुष्यों के संगठन को कहा जाता है। इस संगठन, इस समुदाय की संरचना में दो चीजें महत्वपूर्ण है। इसका एक प्रयोजन होना चाहिए और कुछ प्रतिबंधात्मक नियम होना चाहिए। जिनका पालन संगठन के प्रत्येक सदस्य को करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि अच्छा समाज वह समाज है, जो शांति को लक्ष्य बनाकर विकसित हो रहा हो।

मुख्य वक्ता शिक्षाशास्त्र विभाग, हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय, हरियाणा के डॉ. दिनेश चहल ने कहा कि शिक्षा एक जरिया है, जिसके माध्यम से समाज में शांति एवं खुशहाली आएगी।

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व कुलपति प्रोफेसर मनोज कुमार ने कहा कि हम जैसा समाज बनाना चाहते हैं उसी के अनुसार शिक्षा व्यवस्था को संचालित करने की आवश्यकता है। न्यायपूर्ण शिक्षा के बगैर न्यायपूर्ण समाज का निर्माण नहीं किया जा सकता है।

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के शिक्षाशास्त्र विभाग के अध्यक्ष डॉ. गोपाल कृष्ण ठाकुर ने कहा कि हम सब उस देश के वासी हैं, जहां पृथ्वी की, जल की, थल की, अंतरिक्ष की, वायु की, अग्नि की, वनस्पति की, वन की, उपवन की, गगन की और सकल विश्व की शांति की बात की जाती है। हम किसी भी अनुष्ठान की शुरुआत और अंत भी इसी शांति पाठ के साथ करते हैं। उन्होंने कहा कि अभी तक हम शांति किस प्रकार लाएं, उस पर चर्चा कर रहे हैं। इसका मतलब है कि शिक्षा अभी तक अपने उद्देश्यों में सफल नहीं हो पाई है।

पटना विश्वविद्यालय, पटना में दर्शनशास्त्र विभाग की पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. पूनम सिंह ने कहा कि पूनम मैडम जिसके द्वारा विद्या का उपादान किया जा सके वह शिक्षा है। शिक्षा से ज्ञान की प्राप्ति होती है। प्रकृति में जो कुछ भी है, उससे हम कुछ ना कुछ सीखते हैं।

आईसीपीआर के प्रोजेक्ट फेलो अलोक टंडन ने कहा कि शिक्षा व्यवस्था पिछली पीढ़ी से नई पीढ़ी को ज्ञान स्थानांतरित करने का माध्यम है। शिक्षा समाज व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए महत्वपूर्ण है।

स्कॉटिश चर्च महाविद्यालय, कोलकाता में हिंदी विभाग की अध्यक्ष डॉ. गीता दुबे ने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य को तमाम अंधविश्वासों एवं रूढ़ियों से मुक्त करके बेहतर मनुष्य बनाना है।

रांची (झारखंड) में कंपनी सेक्रेट्री डॉ. पूजा शुक्ला ने कहा कि शिक्षा, समाज और शांति तीनों जब जुड़ जाते हैं, तब इसका एक व्यापक महत्व हो जाता है। किसी भी देश को, किसी भी समाज को, किसी भी राष्ट्र को अगर प्रगति के पथ पर अग्रसर होना है, तो वहां समाज शिक्षित होना चाहिए।

मैसूर विश्वविद्यालय, मैसूर की डाॅ. रोहिणी बाई एस. ने कहा कि शिक्षा समाज एवं शांति में घनिष्ठ संबंंध है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रोफेसर डाॅ. ज्ञानंजय द्विवेदी ने की। उन्होंने कहा कि आज आतंकवादी हमले, पर्यावरणीय संकट, धर्म के नाम पर फैलने वाले उन्माद, एक राष्ट्र का दूसरे राष्ट्रों से आगे निकल जाने की होड़ में विभिन्न राष्ट्रों द्वारा उठाये जाने वाले कदम- इन सब ने मनुष्य के अस्तित्त्व के सामने ही प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है। सामाजिक विषमता तथा मानवाधिकारों के निरन्तर हो रहे हनन ने तो गरिमा के साथ जीवन जीने की अवधारणा को ही बेमानी कर दिया है।

उन्होंने कहा कि शिक्षा के द्वारा मनुष्य की अन्तर्निहित क्षमता को विकसित कर उसे एक योग्य, कुशल और सक्षम व्यक्ति बनाया जा सकता है जो अपनी क्षमता और कौशल द्वारा समाज को समृद्ध बनाकर उसे उत्कृष्ट दिशा में ले जाने का कार्य कर सकता है। अगर व्यक्ति शिक्षित नहीं होंगे, तो उनका न तो चारित्रिक विकास हो पायेगा और न वे किसी कौशल या क्षमता से सम्पन्न हो सकेंगे। ऐसे लोग समाज को उत्कर्ष की ओर नहीं ले जा सकते। संभव है शिक्षा के बिना अज्ञान के अंधकार में भटकता व्यक्ति न केवल समाज के लिए, बल्कि स्वयं के लिए भी खतरा बन जाय।

उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन में अहिंसा, प्रेम, करूणा, त्याग, परोपकार, विश्व-बन्धुत्व, सर्वकल्यण, सहिष्णुता, उदारता, शांति आदि के पावन संदेश भरे-पड़े हैं। ये संदेश भारतीय संस्कृति की आत्मा हैं। शिक्षा प्रेम, मैत्री, परोपकार, बन्धुत्व, सहिष्णुता, सौहार्द, शांति आदि मूल्यों को बढ़वा देती है। ये मूल्य हमारे सामाजिक सम्बन्धों को सुदृढ़ करते हैं। अतः शिक्षा हमारे सामाजिक सम्बन्धों को मजबूती प्रदान करती है और समाज के विखण्डन और बिखराव को रोकती है। मूल्यों के सृजन में सहयोग कर शिक्षा समाज में शांति लाने में अहम भूमिका निभाती है। वास्तविकता यह है कि शिक्षा, समाज और शांति इन तीनों में अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है।

प्रधानाचार्य डाॅ. के. पी. यादव ने अतिथियों का स्वागत किया। संचालन जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर और एमएलटी काॅलेज, सहरसा के डाॅ. आनंद मोहन झा ने किया।

कार्यक्रम की शुरुआत महाविद्यालय के संस्थापक कीर्ति नारायण मंडल और हाल ही में दिवंगत हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री डाॅ. रघुवंश प्रसाद सिंह के चित्र पर पुष्पांजलि के साथ हुई। असिस्टेंट प्रोफेसर खुशबू शुक्ला ने वंदना प्रस्तुत किया।

इस अवसर पर डाॅ. मिथिलेश कुमार अरिमर्दन, डाॅ. स्वर्णमणि, डाॅ. रोहिणी, विवेकानंद, मणीष कुमार, सौरभ कुमार चौहान, गौरब कुमार सिंह, बिमल कुमार आदि उपस्थित थे।