Gandhi। मजबूती का नाम महात्मा गांधी/ स्वयं प्रकाश, संपादक, जी न्यूज बिहार-झारखंड

मजबूती का नाम महात्मा गांधी
स्वयं प्रकाश, संपादक, जी न्यूज बिहार-झारखंड
‘मैं कई महीनों से सामाजिक सुधार की जिस पद्धति की तलाश में था, वह मुझे प्रेम और अहिंसा पर गांधीवादी दर्शन में मिली। मुझे लगा कि दलितों के लिए उनके मुक्ति संघर्ष का तरीका नैतिक और व्यावहारिक दृष्टि से ठीक है। – मार्टिन लूथर किंग (‘स्ट्राइड्स टुवर्डस फ्रीडम पुस्तक में)
‘यह कौन दुस्साहसी है, यह कौन योद्धा है।
जो अपने प्यार से, अपनी नि:सीम सद्भावना से।
अपने सत्य से, संसार के सर्वाधिक शक्तिशाली साम्राज्य को चुनौती दे रहा है।– अंग्रेज कवि ब्रेल्सफोर्ड ( ‘ए हिस्टोरिक मार्च पुस्तक में)

‘घने जंगल में थका हारा सिपाही, हताश सो गया।
उसके सपने को कृतार्थ किया एक महात्मा ने, एक गुरुदेव ने।
एक ने मुस्कराते हुए अग्निपथ पर चलने की प्रेरणा दी।
एक ने अमृतवाणी से मूर्छित चेतना को झकझोर दिया।
मेरा नमन लो महात्मा.’ – कवि नक्रुमा (घाना के पूर्व राष्ट्रपति और अफ्रीकी स्वतंत्रता संघर्ष के अप्रतिम सेनानी)

मायावनियों के नीले, मोहक स्वर, पर फैला कर उड़ जाने वाले वे घोड़े।
पहुंच रही है यह खबर, मारा गया वह दुआ देता लोगों को।
आह संघर्ष के वे दिन घर में घरघराते हुए चरखे।
सुनहरे खादी के परिवेश में, दार्जिलिंग की चाय में गुलाब की महक।’- सिसीलिया मेयरलीज़ (ब्राजील की कवयित्री)

आने वाली नस्लें शायद मुश्किल से ही विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना हुआ कोई ऐसा व्यक्ति भी धरती पर चलता-फिरता था – आइंस्टीन
यह संदेश 2 अक्टूबर, 1944 को महात्मा गांधी के 75वें जन्मदिन पर आइंस्टीन ने लिखा था। संसार के महानतम वैज्ञानिकों में से एक माने जाने वाले अल्बर्ट आइंस्टीन। क्या आप जानते हैं एक वैज्ञानिक के रूप में उनके आदर्श कौन थे? शुरू में एक वैज्ञानिक के रूप में उन्होंने दो महान वैज्ञानिकों को अपना आदर्श माना था। एक थे – आइज़क न्यूटन और दूसरे- जेम्स मैक्सवेल। उनके कमरे में इन्हीं दो वैज्ञानिकों की पोर्ट्रेट लगी थीं।
पर अपने सामने ही संसार में तरह-तरह की भयानक हिंसक त्रासदियों को देखा। और आइंस्टीन ने अपने घर में लगे इन दोनों पोर्ट्रेट को हटा दिया। दो नई तस्वीरें टांगीं। एक तस्वीर थी महान मानवतावादी – अल्बर्ट श्वाइटज़र की। दूसरी थी महात्मा गांधी की। इसे स्पष्ट करते हुए आइंस्टीन ने उस समय कहा था- समय आ गया है कि हम सफलता की तस्वीर की जगह सेवा की तस्वीर लगा दें. बता दें कि महात्मा गांधी से उम्र में 10 साल छोटे थे आइंस्टीन। दोनों व्यक्तिगत रूप से कभी एक-दूसरे से मिले नहीं। पर दोनों एक-दूसरे से प्रभावित थे। दोनों एक दूसरे के प्रशंसक भी। दोनों के बीच आत्मीय पत्राचाऱ भी हुआ।
30 जनवरी, 1948 को गांधीजी की हत्या हुई। दुनिया में शोक की लहर फैल गई। आइंस्टीन भी विचलित हुए। 11 फरवरी, 1948 को वाशिंगटन में स्मृति सभा हुई। अपने संदेश में आइंस्टीन ने कहा – ‘वे सभी लोग जो मानव जाति के बेहतर भविष्य के लिए चिंतित हैं। वे गांधी की दुखद मृत्यु से अवश्य ही बहुत अधिक विचलित हुए होंगे। अपने ही सिद्धांत यानी अहिंसा के सिद्धांत का शिकार होकर उनकी मृत्यु हुई। उनकी मृत्यु इसलिए हुई कि देश में फैली अव्यवस्था और अशांति के दौर में भी उन्होंने किसी भी तरह की निजी हथियारबंद सुरक्षा लेने से इनकार कर दिया। यह उनका दृढ़ विश्वास था कि बल का प्रयोग अपने आप में एक बुराई है। जो लोग पूर्ण शांति के लिए प्रयास करते हैं, उन्हें इसका त्याग करना ही चाहिए। अपनी पूरी जिंदगी को उन्होंने अपने इसी विश्वास को समर्पित कर दिया। अपने दिल और मन में इसी विश्वास को धारण कर उन्होंने एक महान राष्ट्र को उसकी मुक्ति के मुकाम तक पहुंचाया। उन्होंने करके दिखाया कि लोगों की निष्ठा सिर्फ राजनीतिक धोखाधड़ी और धोखेबाजी के धूर्ततापूर्ण खेल से नहीं जीती जा सकती है, बल्कि वह नैतिक रूप से उत्कृष्ट जीवन का जीवंत उदाहरण बनकर भी हासिल की जा सकती है। पूरी दुनिया में गांधी के प्रति जो श्रद्धा रखी गई, वह अधिकतर हमारे अवचेतन में दबी इसी स्वीकारोक्ति पर आधारित थी कि नैतिक पतन के हमारे युग में वे अकेले ऐसे स्टेट्समैन थे, जिन्होंने राजनीतिक क्षेत्र में भी मानवीय संबंधों की उस उच्चस्तरीय संकल्पना का प्रतिनिधित्व किया जिसे हासिल करने की कामना हमें अपनी पूरी शक्ति लगाकर अवश्य ही करनी चाहिए। हमें यह कठिन सबक सीखना ही चाहिए कि मानव जाति का भविष्य सहनीय केवल तभी होगा, जब अन्य सभी मामलों की तरह ही वैश्विक मामलों में भी हमारा कार्य न्याय और कानून पर आधारित होगा, न कि ताकत के खुले आतंक पर, जैसा कि अभी तक सचमुच रहा है.’
‘इंडियन पीस कांग्रेस’ को भेजा आइंस्टीन का संदेश देखें- ‘…क्रूर सैन्यशक्ति को दबाने के लिए उसी तरह की क्रूर सैन्यशक्ति का कितने भी लंबे समय तक इस्तेमाल करते रहने से कोई सफलता नहीं मिल सकती। बल्कि सफलता केवल तभी मिल सकती है, जब उस क्रूर बल का उपयोग करनेवाले लोगों के साथ असहयोग किया जाए। गांधी ने पहचान लिया था कि जिस दुष्चक्र में दुनिया के राष्ट्र फंस गए हैं, उससे बाहर निकलने का रास्ता केवल यही है। आइए, जो कुछ भी हमारे वश में है हम वह सब कुछ करें ताकि, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, दुनिया के सभी लोग गांधी के उपदेशों को अपनी बुनियादी नीति के रूप में स्वीकार करें.’ (2 नवंबर, 1948)
गांधी जी के बारे में आइंस्टीन का कहना था – उन्होंने राजनीतिक क्षेत्र में भी मानवीय संबंधों की उस उच्चस्तरीय संकल्पना का प्रतिनिधित्व किया, जिसे हासिल करने की कामना हमें अपनी पूरी शक्ति लगाकर अवश्य ही करनी चाहिए।
देखें आइंस्टीन के आदर्श श्वाइटज़र के विचार। वे महात्मा गांधी के बारे में क्या सोचते थे। श्वाइटज़र की भारत पर पुस्तक है – इंडियन थॉट एंड इट्स डेवलपमेंट। इसमें उन्होंने लिखा- गांधी का जीवन-दर्शन अपने आप में एक संसार है। गांधी ने बुद्ध की शुरू की हुई यात्रा को ही जारी रखा है। बुद्ध के संदेश में प्रेम की भावना दुनिया में अलग तरह की आध्यात्मिक परिस्थितियां पैदा करने का लक्ष्य अपने सामने रखती है। लेकिन गांधी तक आते-आते यह प्रेम केवल आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि समस्त सांसारिक परिस्थितियों को बदल डालने का कार्य अपने हाथ में ले लेता है।
आइंस्टीन ने कहा था- अगला विश्व युद्ध पानी के लिए होगा। और उसमें लड़ाई पत्थरों से होगी। स्टीफेन हाकिंग्स ने कहा कि पृथ्वी मनुष्य के रहने के लायक नहीं है। 50 सालों के अंदर उसे किसे दूसरे ग्रह पर अपना अस्तित्व तलाश लेना चाहिए। दुनिया अभी के बड़े चिंतक हैं – नोआ हरारी। इस्रायल के। उनकी तीन पुस्तकें दुनिया में सर्वाधिक चर्चित हैं। होमो, सेपियंस और ट्वेंटी वन लेशन फॉर ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी। उनका मानना है कि संसार की पांच बड़ी समस्याएं हैं – 1. पर्यावरण परिवर्तन 2.जनसंख्या विस्फोट 3.नैतिक – चारित्रिक मूल्यों व आचार – विचार में गिरावट 4. भोगवाद का तेजी से बढ़ना 5. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस।
पटना का जलजमाव, बिहार में बाढ़-सुखाड़। देश की राजधानी दिल्ली समेत देश के कई शहरों में सांस लेना भी मुश्किल हो गया था। आज जिस तरह से समाज – संसार में चहुंओर संकट है। लूट, हत्या, दुष्कर्म जैसे अपराध। खाने का संकट। पानी का संकट। रोजी-रोजगार का संकट। विश्वास का संकट। युद्ध, गृह युद्ध जैसी वैश्विक संकट और तरह-तरह की समस्याएं………हर घर में परेशानी। हर व्यक्ति परेशान। इन सबके बीच एक ही महापुरुष याद आते हैं – महात्मा गांधी। उनके बताये रास्ते पर चल कर ही व्यक्ति, समाज-संसार की सभी समस्याओं का हल है। कल्याण है। दूसरा कोई विकल्प संसार के पास नहीं है। गांधी रास्ते चल कर सभी समस्याओं से निजात पा सकते है संसार। बहुत लोग कहते हैं मजबूरी का नाम महात्मा गांधी है, पर ऐसा नहीं है। मजबूती का नाम महात्मा गांधी है। संसार में कोई ऐसा देश नहीं जहां किसी न किसी रूप वहां महात्मा गांधी न हों। संसार में सबसे ज्यादा किसी व्यक्ति पर, किसी भाषा में किताबें लिखी गईं, लिखी जा रही हैं, तो एकमात्र नाम हैं गांधी। महात्मा गांधी तब भी प्रासंगिक थे। आज भी हैं। कल और भी अधिक प्रासंगिक रहेंगे।
गांधी जी ने स्वयं कहा था- मेरा जीवन ही संदेश है। फ्रांसीसी मनीषी रोमां रोलां उनसे बहुत इतने प्रभावित हुए कि उनकी जीवनी के प्रारंभ में ही लिखा है – यही हैं वे व्यक्ति, जिन्होंने, 30 करोड़ लोगों को जगा दिया है। कंपा दिया है ब्रिटिश साम्राज्य को। और आरंभ किया है मानव राजनीति का एक ऐसा सशक्त आंदोलन, जिसकी तुलना लगभग दो हजार वर्षों के इतिहास में नहीं है। महात्मा गांधी से मिलने के बाद अमेरिकी पत्रकार लुई फिशर ने ‘सेवेन डेज विद महात्मा गांधी’ में लिखा- ‘गांधीजी से हाथ मिलाते ही मेरे भीतर अहंकार की ग्रंथि पिघलने लगी। अंत में वे एक तरह से लोगों से अपील करते हैं। गांधी के बारे में लिखते हैं – उनका जीवन मानवता की बहुत – सी समस्याओं का हल उपस्थित करता है। बशर्ते कि हम केवल वही करें, जो उन्होंने किया था।