BNMU : दर्शन परिषद्, बिहार और ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा के संयुक्त तत्वावधान में “भविष्य के लिए स्थायी रसायन विज्ञान” विषयक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार/वेबीनार का आयोजन

https://youtu.be/1S_SY0YI1Rs

दर्शन परिषद्, बिहार और ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा के संयुक्त तत्वावधान में “भविष्य के लिए स्थायी रसायन विज्ञान” विषयक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार/वेबीनार का आयोजन
—–

आज विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हमने काफी प्रगति की है.। लेकिन हमारी यह भौतिक प्रगति प्रकृति-पर्यावरण एवं मानव जीवन के लिए एक गंभीर खतरा बनकर सामने आई है. इसलिए आज स्थाई विकास, स्थाई प्रगति सस्टेनेबल डेवलपमेंट की बात हो रही है. सस्टेनेबल केमिस्ट्री की बात भी इसी से जुड़ी हुई है. यह बात बीएनएमयू, मधेपुरा के कुलपति डॉ. ज्ञानंजय द्विवेदी ने कही. वे बुधवार को दर्शन परिषद, बिहार और ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सेमिनार/वेबीनार में उद्घाटनकर्ता के रुप में बोल रहे थे। इसका विषय “भविष्य के लिए स्थायी रसायन विज्ञान” था।

कुलपति ने कहा कि सस्टेनेबल केमिस्ट्री और सस्टेनेबल डेवलपमेंट यह हमारे भविष्य के लिए जरूरी शर्त है. यदि मानवता को बचना तो हमें सस्टेनेबल डेवलपमेंट एवं सस्टेनेबल केमिस्ट्री को अपनाना ही होगा.

कुलपति ने कहा कि हमें वही विकास चाहिए जो क्षणभंगुर नहीं हो, स्थाई हो. वैसा विकास, जिसकी कीमत हमें प्रकृति पर्यावरण अत्यधिक दोहन और मानव श्रम के शोषण के रूप में नहीं देना पड़े. https://youtu.be/h6nBfUFZZyA

कुलपति ने कहा कि हमें सर्व खलू इदं ब्रह्म, इशावस्यम इदं सर्वं, आत्मवत् सर्वभूतेषू और सिया राम मय सब जग जानी जैसी भारतीय दृष्टि को जीवन में अपनाएंगे. यह दृष्टि यह मानती है कि संपूर्ण चराचर जगत में ईश्वर या चेतना का वास है. मनुष्य एवं मनुष्येतर प्राणी और संपूर्ण चराचर जगत एक है. मानव इस चराचर जगत चेतनामय है. जीवन एवं जगत में सबों का अपना-अपना महत्व है. मनुष्य प्रकृति का मालिक नहीं है. मनुष्य को भी जीवन जीने का उतना ही अधिकार है जितना पशु, पक्षी, पेड़, पौधों, पहाड़ों, नदियों तालाबों को है.

कुलपति ने कहा कि आज विज्ञान और अध्यात्म के बीच समन्वय की जरूरत है. अध्यात्म के बिना विज्ञान अंधा है और विज्ञान के बिना अध्यात्म लंगड़ा है. यदि जंगल में लगी आग से हमें बचना है यदि हमें दुनिया को बचाना है तो हमें लंगडे एवं अंधे को एक साथ करना होगा. https://youtu.be/ytq-o37EXKo

कुलपति ने कहा कि सेमिनार विज्ञान को नई दिशा देने में रसायन शास्त्र को नई दिशा देने में और हमारे भविष्य को सुरक्षित करने में मददगार साबित होगी।

स्वागत भाषण दर्शन परिषद, बिहार के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. बी. एन. ओझा ने दिया। उन्होंने कहा कि सतत् विकास रसायन शास्त्र का एक अनुवेषी सिद्धान्त है। यह मनुष्यों की मूल सुविधाओं को बिना प्राकृतिक संसाधनों के अनुचित दोहन के पूरा करने पर बल देता है. यह आज के समाज को सतत् विकास मार्ग पर आगे तक ले जाने की क्रिया है। इसमें रसायन शास्त्र का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। आज रसायन विज्ञान को प्रकृति- पर्यावरण का संरक्षण सहित अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. प्रकाश चंद्र झा, संकाय अध्यक्ष स्कूल ऑफ़ अप्लाइड मैटेरियल्स साइंस, केंद्रीय विश्वविद्यालय, गुजरात गांधीनगर, ने रसायन विज्ञान की नई शाखा के उपयोग पर प्रकाश डाला जिसे कम्प्यूटेशनल रसायन विज्ञान कहा जाता है। उन्होंने सामग्री के लिए मॉडलिंग अणुओं के लिए कम्प्यूटेशनल रसायन विज्ञान के आवेदन का प्रदर्शन किया। उन्होंने विभिन्न प्रकार के अणुओं जैसे कि पॉलिमर, आणविक क्रिस्टल, फोटोसेनिज़ियर के अलावा मॉडलिंग के रासायनिक अभिक्रियाओं के महत्व पर भी जोर दिया। उन्होंने दिखाया है कि कैसे कंप्यूटर मॉडलिंग दृष्टिकोण का उपयोग भविष्य कहनेवाला सिमुलेशन के लिए किया जा सकता है।

डॉ. काशीनाथ धूरके, रसायनशास्त्र विभाग एन. आई. टी. वारंगल ने समाज के कल्याण के लिए हरित रसायन के महत्व और दीर्घकालिक लक्ष्य में इसकी स्थिरता पर प्रकाश डाला। उन्होंने सिंथेटिक रसायनज्ञ के लिए नए दृष्टिकोण की आवश्यकता पर भी जोर दिया। रसायनों और इसके उत्पादों के बड़े उत्पादन के लिए हरी सॉल्वैंट्स का चुनाव भविष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

डॉ. एन. अरुल मुर्गन, रसायनशास्त्र विभाग के. टी. एच. रॉयल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नालॉजी, स्टॉकहोलम, स्वीडन ने ड्रग डिजाइनिंग के लिए कंप्यूटर मॉडलिंग दृष्टिकोण पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया है। उन्होंने उपलब्ध आधुनिक उपकरणों और प्रौद्योगिकी और आधुनिक दिनों की गणना में इसकी प्रयोज्यता के बारे में बात की। उन्होंने विशेष रूप से कंप्यूटर मॉडलिंग के बारे में बात की।

डॉ. विश्व दीपक त्रिपाठी, विभागाध्यक्ष रसायनशास्त्र विभाग, महारानी कल्याणी महाविद्यालय, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, ने बताया कि हमें प्रकृति को बचाने के नहीं बल्कि प्रकृति के साथ चलने की जरूरत है, विकास की दौड़ में हम भूल चुके हैं कि प्रकृति के साथ चलकर कि हम प्रकृति की रक्षा कर सकते हैं।

डॉ. त्रिपाठी ने ग्रीन सिंथेसिस ऑफ तराईपैथैनथरिन विषय पर किए गए अपने शोध को प्रस्तुत किया।

प्रोफेसर डॉ. नरेश कुमार विश्वविद्यालय स्नातकोत्तर रसायनशास्त्र विभाग तथा प्रोफेसर इंचार्ज शिक्षाशास्त्र विभाग, मधेपुरा मुख्य वक्ता के रूप में अपना व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि यह विषय आज अत्यंत प्रासंगिक है. उन्होंने कहा कि सस्टेनेबल केमिस्ट्री समाज के पर्यावरणीय एवं आर्थिक जरूरतों के अनुरूप विकसित करने की जरूरत है.

अध्यक्षीय भाषण देते हुए दर्शन परिषद्, बिहार के महामंत्री डॉ. श्यामल किशोर ने कहा कि पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि रसायन विज्ञान को पर्यावरण के अनुकूल बनाया जाए. इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर हरित रसायन एवं सतत रसायन की कल्पना की गई है. इसके तहत सबसे तेज खतरनाक पदार्थों के उपयोग एवं उत्पादन को कम किया जाता है. यह न केवल पर्यावरणीय संरक्षण की दृष्टि से अपितु कार्यक्षमता के विकास तथा आर्थिक समृद्धि की दृष्टि से भी श्रेष्ठ है. वैज्ञानिकों को हरित रसायन के क्षेत्र में प्रयोग करने तथा लोगों को इसके लिए जागरूक करने की जरूरत है.

धन्यवाद ज्ञापन डॉ. के. पी. यादव, प्रधानाचार्य ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा के द्वारा किया गया। संचालन संयोजक डॉ. सुधांशु शेखर, पीआरओ, भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा तथा आयोजन सचिव डॉ. आनन्द मोहन झा, अतिथि सहायक प्राध्यापक, मनोहर लाल टेकरीवाल महाविद्यालय, सहरसा ने किया।

इस अवसर पर इस अवसर पर एनएसएस समन्वयक डाॅ. अभय कुमार, डाॅ. मिथिलेश कुमार अरिमर्दन, डाॅ. नदीम अहमद अंसारी, डाॅ. आशुतोष कुमार झा, डाॅ. जावेद अहमद, अमित कुमार, कुंदन लाल पटेल, विनीत राज, विवेकानंद, मणीष कुमार, सौरभ कुमार चौहान, गौरब कुमार सिंह, डेविड यादव, संतोष कुमार आदि उपस्थित थे।